Saturday, November 23, 2024
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Success Story;20 किमी साइकिल चलाकर जाती थीं कॉलेज,दादी के कांपते हाथ बने सोनाक्षी की कलम का सहारा, चांदनी का सपना…

Success Story;पटना।बाराबंकी)। तीन साल पहले जब सोनाक्षी के पिता की कैंसर से मौत हुई तो घर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। इलेक्ट्रिशियन पिता अमित कुमार की सारी जमा पूंजी इलाज में खर्च हो चुकी थी। घर की इकलौती और मेधावी बेटी सोनाक्षी की आगे की पढ़ाई पर भी संकट खड़ा हो गया।

ऐसे में बेसिक हेल्थ वर्कर पद से सेवानिवृत्त हुई दादी के कांपते हाथ सोनाक्षी की कलम का सहारा बन गए। दादी आशा ने अपनी मामूली पेंशन से केवल घर को ही नहीं संभाला, बल्कि पौत्री को भी प्रदेश की मेरिट तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की। माता किरन कहती हैं कि पति की मौत के बाद कमाई का जरिया खत्म हो चुका था। दो बीघा खेती बंटाई पर है। इकलौती बेटी ही घर की एकमात्र उम्मीद है। बूढ़ी सास ने ही बेटी को इस मंजिल तक पहुंचाया है। अब बिटिया अपनी मंजिल पा ले बस यही तमन्ना है।

थोड़ी खेती से आठ लोगों का खर्च
मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली उमरी की चांदनी देवी ने भी अपनी पढ़ाई के रास्ते में अनेक झंझावातों का सामना किया है। चांदनी कहती हैं कि परिवार की इतनी आय नहीं होती है, जिससे घर का खर्चा आसानी से चल सके। पिता लवकुश अपनी थोड़ी खेती से आठ लोगों के परिवार का खर्च चलाते हैं। चांदनी कहती है कि कभी कभी आर्थिक तंगी से कॉलेज की फीस नही जमा हो पाती थी, लेकिन मन मसोस कर रह गई पर धैर्य नहीं छोड़ा। सपना है कि वह लगन से पढ़ाई कर शिक्षक बन जाए, जिससे पापा की जिम्मेदारियों में अपना हाथ बंटा सके।

20 किमी साइकिल चलाकर जाती थीं कॉलेज
रेवरी की रिया यादव और क़ुर्ख़िला की प्रियंका सिंह ने भी अनेक दुश्वारियों को झेलकर अपनी मेधा का लोहा मनवाया है। रिया दिन में 20 किमी साइकिल चलाकर साइकिल से कॉलेज जाती थीं।प्रियंका सिंह के घर की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। पिता कम्प्यूटर ऑपरेटर से होने वाली कमाई से ही खर्च चलाते हैं। प्रियंका कहती हैं कि घर की दयनीय दशा उसके मन को कचोटती थी। अब सपना है कि किसी तरह पढ़कर आईएएस बन जाएं, फिर घर और परिवार की तकदीर बदल जाएगी।”

Kunal Gupta
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