Saturday, May 18, 2024
DalsinghsaraiSamastipur

आरबी कॉलेज में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का शुभारंभ, वक्ताओं ने कहा नवीन दृष्टि अपनाते हुए हकीकत की खोज कर नये सिरे से इतिहास लेखन करें

दलसिंहसराय,आरबी कॉलेज में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.संजय कुमार चौधरी की अध्यक्षता एवं महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रो. संजय झा के संयोजकत्व में ‘ बढ़ती स्व-चेतना के मध्य वर्तमान भारतीय इतिहास चिंतन एवं लेखन’ विषय पर केन्द्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का शुभारंभ किया गया.सेमीनार भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद,नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित एवं स्नातकोत्तर इतिहास विभाग,आर. बी. कालेज, , स्नातकोत्तर इतिहास विभाग,ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, एवं इतिहास संकलन समिति, उत्तर बिहार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया.उद्घाटन आये अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया.इस दौरान कॉलेज के छात्रों द्वारा सरस्वती वंदना एवं कुलगीत गाया गया.स्वागत गीत सुप्रिया एवं उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत किया गया.प्रोफेसर झा ने अतिथियों को पाग, चादर, गुलदस्ता एवं प्रतीक चिन्ह के साथ सम्मानित करते हुए उनके प्रति स्वागत संबोधन प्रस्तुत किया.

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पूर्व सदस्य,आई. सी.एच.आर. प्रो. राजीव रंजन ने अपने संबोधन में कहा कि इतिहास को जिस रूप में प्रचारित – प्रसारित किया गया है,वह हमारे साथ धोखा है.अपनी गुलाम मानसिकता को त्यागकर स्वचेतना के साथ पुनः इतिहास लेखन की आवश्यकता है.मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय के प्रो.अजीत कुमार ने स्व शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि हमारे इतिहास में इतना अधिक झूठ परोसा गया है कि चाहकर भी हमारे युवा उससे मुक्त नहीं हो पा रहे हैं.आवश्यकता है कि हम स्वचेतना का मार्ग अपनाते हुए नवीन व सकारात्मक इतिहास लेखन को प्रश्रय दें. मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्यामा राय ने अपने संबोधन में कहा कि इतिहास आज हमसे स्व की मांग कर रहा है.अपने अतीत को स्वाभिमान में बदलने हेतु हमें पुनः स्व के बोध के साथ इतिहास लेखन की जरूरत है.विदेशियों के चश्मे से लिखे गए इतिहास को बदलने की जरूरत है.


मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शशि प्रताप साही ने संबोधित करते हुए कहा कि हम भारतीय इतिहास की बनी बनाई पूर्व परिपाटी को ही ढो रहे हैं,जो हमारी अस्मिता की सही परख नहीं कराता.इतिहास को नवीन चेतना व स्वानुभूति के बल पर नये सिरे से लिखने की जरूरत है।

अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सह उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. बाल मुकुंद पाण्डेय ने अपनी अभिव्यक्ति में स्व की शास्त्रीय व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि स्व को जानने की परंपरा की नींव भारतीय मनीषियों ने दी है.स्व का बोध व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को स्वाभिमानी बनाता है.कालांतर में हम विदेशियों,आक्रमणकारियों के कुप्रभाव से धीरे -धीरे स्व चेतना से विमुख होकर उनके द्वारा स्थापित इतिहास के प्रति गलत धारणा को आज भी ढो रहे हैं.आज हम राष्ट्रवादियों के लिए जरूरत है कि हम हर स्तर पर नवीन दृष्टि अपनाते हुए हकीकत की खोज कर नये सिरे से इतिहास लेखन करें.ऐसा करके ही हम नवीन,स्वतंत्र, समृद्ध, विकसित एवं आत्मनिर्भर भारत का निर्माण कर पाएंगे.वही उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि कुछ इतिहासकार भारत के इतिहास को सही से नहीं दिखाए है जिस कारण आज के युवा असली इतिहास से अनभिज्ञ है.हमारा समाज लाखों करोड़ो वर्ष पुराना है.जब दुनिया का नामो निशान नहीं था तब भारत का परचम पुरे संसार में था.महाभारत,गीता जैसे ग्रंथो से इतिहास को निकलना चाहिए. देश के महान योद्धा के बारे में भी इतिहासकारो ने पुरे तरिके से नहीं बताया है.

अध्यक्षीय उद्बोधन प्रस्तुत करते हुए प्रो. चौधरी ने कहा कि तत्कालीन परिस्थिति एवं परिवेश के प्रभावानुसार इतिहास लेखन होता रहा है. समयानुसार उसकी समीक्षा करते हुए अपनी स्व चेतना के साथ तर्कपूर्ण दृष्टि से, तटस्थ होकर इतिहास लेखन किया जाय तो समाज एवं राष्ट्र के हित में होगा.इस ज्वलंत मुद्दों पर केन्द्रित सेमीनार करने हेतु समस्त महाविद्यालय परिवार को शुभकामनाएं दी.मंच संचालन डॉ. प्रतिभा पटेल,शिवानी प्रकाश एवं वेदिका ने किया.धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राजकिशोर ने किया.मौके पर सैकड़ों इतिहासविद, प्राध्यापक,शोधकर्ता एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे. राष्ट्रगान की सामूहिक प्रस्तुति के साथ उद्घाटन सत्र की समाप्ति हुई।