“सेक्स वर्कर्स पर फिल्म बनाई, मां बोली-बेटी हाथ से गई,निशांत ने शादियों में खींची फोटो, अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सिलेक्ट
पटना.गोवा में 55वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल (IFFI) का आयोजन किया गया। इस फिल्म फेस्टिवल के लिए देशभर से 100 कलाकार चुने गए, जिसमें 3 युवा कलाकार बिहार के थे। इसमें पटना के अमित राज, औरंगाबाद के निशांत कुमार और पूर्णिया की संध्या भारती शामिल थीं।
औरंगाबाद के निशांत ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर हाथ में कैमरा पकड़ लिया। शादियों में फोटो खींचकर अपना पॉकेट खर्च निकालते थे। वहीं, पूर्णिया की संध्या अपनी शॉर्ट फिल्म के लिए सोनागाछी रेड लाइट एरिया भी गईं। उनकी मां कहती थीं कि बेटी हाथ से निकल गई।
चैनल में रिपोर्टर की नौकरी छोड़कर एडिटिंग शुरू की। उनके पिता एक ड्राइवर थे। इसके साथ ही पटना के अमित राज ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड पर अपनी शॉर्ट फिल्म बनाई। पढ़िए अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सिलेक्ट 3 बिहारी युवा फिल्मकारों की कहानी…
निशांत ने कैमरा खरीदने के बाद गांव-घर में फोटो खींचनी शुरू की।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ पकड़ा कैमरा
औरंगाबाद के सिनेमैटोग्राफर निशांत कुमार (26) ने बताया कि ‘मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर फिल्म में अपनी किस्मत आजमाई। 10वीं की परीक्षा देने के बाद मेरे पास कोई लक्ष्य नहीं था। मेरे दोस्त इंजीनियरिंग का एग्जाम दे रहे थे तो लगे हाथ मैंने भी फॉर्म भर दिया। मेरी किस्मत अच्छी थी कि पहले ही अटेम्प्ट में क्वालीफाई कर गया और ITI, छपरा में मेरा एडमिशन हो गया।’
‘एडमिशन के बाद मैं कॉलेज में पढ़ाई करने गया तो मेरा मन नहीं लगा। 3 महीने में ही मैंने कॉलेज छोड़ दिया। घर वापस आकर बैठ गया। कुछ दिन बाद मेरी बात अपने दोस्त उज्जवल से हुई। उसने मुझे केंद्रीय विश्वविद्यालय, रांची से मास कम्युनिकेशन के कोर्स करने की सलाह दी। मैंने सिलेबस देखा तो मन में यही बात आई कि बस यही तो करना है। इसमें ही मेरा करियर है।’
कैमरे के लिए पिता से पैसा मांगने में हो रही थी हिचक
निशांत को बचपन से ही कैमरा का शौक था। इसी पैशन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने केंद्रीय विश्वविद्यालय, रांची में फॉर्म भरा और पहले अटेम्प्ट में क्वालीफाई करके एडमिशन ले लिया। सेकेंड सेमेस्टर में फोटोग्राफी की क्लास के दौरान अपने दोस्त को कैमरा लिए देखकर कैमरा खरीदने का सोचा। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिस कारण वह पिता को कैमरा खरीदने की बात कहने में हिचक रहे थे। हिम्मत करके उन्होंने पिता से कैमरा खरीदने की बात कही तो उन्होंने मना कर दिया। हालांकि, बाद में खुद ही पैसे भेज दिए।
निशांत ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से फोटोग्राफी कोर्स किया।
शादियों में दूल्हा-दुल्हन की फोटो खींचते थे
निशांत ने बताया कि ‘कैमरा लेना एक सीढ़ी थी, जिससे एक पहचान मिली। लोग भी उनके खींचे फोटो की तारीफ करने लगे। इसके बाद निशांत अपना पॉकेट मनी निकालने के लिए शादी-विवाह में जाकर फोटो खींचने लगे। उन्हें एक दिन के 2 हजार रुपए मिलते थे।
फोटोग्राफी के बाद फिल्मों का लगा चसका
निशांत को चिंता होने लगी कि कब तक शादियों में फोटो खींचते रहेंगे। इसलिए उन्होंने अपने दोस्त के कहने पर जामिया मिलिया इस्लामिया से 1 साल का फोटोग्राफी कोर्स किया। यहीं उन्हें फिल्मों का चसका लगा। उन्होंने फिल्म निर्माण में अपना करियर बनाने की सोची। फिलहाल, निशांत सत्यजीत रे फिल्म और टेलिविजन संस्थान में सिनेमैटोग्राफी के फाइनल ईयर के स्टूडेंट हैं।
कॉलेज के दिनों में फोटोग्राफी करते निशांत।
भोजपुरी गानों को लेकर दोस्त उड़ाते थे मजाक
अपने कॉलेज में निशांत को बिहार के गानों को लेकर शर्मिंदा होना पड़ता था। भोजपुरी फिल्मों की अश्लीलता को लेकर उन्हें कई बातें भी सुननी पड़ी। निशांत कहते हैं कि ‘मेरा सपना बिहार में एक अच्छी फिल्म बनाने का है, जिसके जरिए अपनी संस्कृति और भाषा को एक अलग पहचान दिला सकें।’
फिल्म फेस्टिवल में भेजी थी 7 मिनट की शॉर्ट फिल्म
गोवा फिल्म फेस्टिवल में चयन के लिए निशांत ने 7 मिनट की शॉर्ट फिल्म ‘विंड ऑफ योर’ भेजी थी। यह एक सिंगल टेक फिल्म थी, जिसमें कैमरा कहीं भी कट नहीं हुई है। इस फिल्म में एक ऐसी बेटी की कहानी है, जो अपनी मां की मृत्यु के बाद उसे घर में याद करती है।
यह कहानी असम के बैकग्राउंड पर आधारित है। इसकी शूटिंग एक प्रोजेक्ट के तौर पर हुई थी, जिसे निशांत ने अपने कॉलेज में ही बनाई सेट पर की थी। यह शॉर्ट फिल्म पूरी तरह से उनके कॉलेज की ओर से फंड की गई थी।
गोवा में 48 घंटे में बनाई शॉर्ट फिल्म
IFFI, गोवा में निशांत ने दूसरे राज्यों के कलाकारों के साथ एक फिल्म बनाई, जिसका नाम विंडो था। इस फिल्म में मोबाइल में घुसे बच्चे कैसे आसपास के लोगों से दूर होते जा रहे हैं। कैसे रिश्तों पर असर पड़ रहा है। यह फिल्म 48 घंटे में बनकर तैयार की गई। इस फिल्म में निशांत असिस्टेंट सिनेमैटोग्राफर थे।
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड पर बनाई फिल्म
पटना के 20 वर्षीय अमित राज का चयन उनकी 5 मिनट की शॉर्ट फिल्म ‘आबरू’ के स्क्रीन राइटिंग के लिए हुआ है। वह एक एडिटर और डायरेक्टर भी है। उन्होंने यह फिल्म 2 महीने पहले ही बनाई है। आबरू को अमित ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड और अन्य रेप पीड़िताओं के साथ हुए घटना पर बनाया है। इस फिल्म की शूटिंग पटना में की गई है। अमित ने अपने पांच दोस्त कृष्णा, कुणाल, रोहित, शिव, आकाश और भारती के साथ मिलकर यह फिल्म तैयार की है।
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड पर अमित राज ने शॉर्ट फिल्म बनाई है।
रेप पीड़िता की कहानी है ‘आबरू’
आबरू में एक मुस्लिम महिला को दिखाया गया है, जिसके पति की मृत्यु हो गई है और घर में उसका देवर उसके साथ गलत हरकत करता है। परिवार और समाज के कारण वह अपनी आवाज को दबा देती है। लेकिन बेटी के साथ गलत हरकत होता है तो वह अपनी चुप्पी तोड़ती है और अपने हक के लिए आवाज उठाती है।
जुगाड़ करके बनाई शॉर्ट फिल्म
अमित ने बताया कि ‘इस फिल्म को जुगाड़ से बनाया है। अपने प्रोफेसर के घर को सजाया। सीनियर से लेंस उधार लिए, सेट को भाड़ा पर लाए। किसी के घर से पलंग, तो किसी के घर से अलमीरा, लूंगी, सिलाई मशीन मंगाई। इस फिल्म को तैयार करने में लगभग 30 हजार रुपए लगे।’
भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के स्टेज पर अमित राज।
पेपर में फोटो और इंटरव्यू की लालच में चुना थिएटर
अमित पहले बूगी बूगी में डांस सीखते थे। फिर उनके माता-पिता ने किलकारी में एडमिशन करवा दिया। यहां उन्हें थिएटर में दिलचस्पी बढ़ी। दूसरे बच्चे यहां से निकलकर बड़े-बड़े कलाकारों के साथ काम कर रहे थे और साथ में उनकी फोटो पेपर में आती थी। अमित के मन में भी यह जिज्ञासा जगी। पेपर में फोटो और इंटरव्यू की लालच में उन्होंने थिएटर की ओर कदम बढ़ाया। थिएटर में काम के दौरान उन्हें लगा हम कैमरे के पीछे अच्छा काम कर सकते हैं।
अमित के पापा PMCH में खाना सप्लाई करते हैं। वह चाहते थे कि अमित एक इंजीनियर बने, लेकिन JEE में अमित के खराब मार्क्स आने पर निराशा हाथ लगी। अमित ने हाल में पटना कॉलेज से मास कम्युनिकेशन का कोर्स पूरा किया है। अभी वह FTI में जाने की प्रिपरेशन कर रहे हैं।
अपनी शॉर्ट फिल्म बनाने के लिए सोनागाछी रेड लाइट एरिया गई
पूर्णिया की संध्या भारती ने बताया कि IFFI गोवा में उनका चयन शॉर्ट फिल्म ‘शैंपू का ठुमका’ के लिए हुआ है। इसमें उन्होंने प्रोडक्शन डिजाइनर की भूमिका निभाई है। इस फिल्म के लिए संध्या ने सोनागाछी और अन्य रेड लाइट एरिया गई। यह फिल्म एक कॉलेज प्रोजेक्ट के तौर पर साल 2022 में तैयार किया था। इसे बनाने में 3 महीने का समय लगा था।
इस फिल्म की कहानी एक छोटी बच्ची ‘शैम्पू’ पर आधारित है, जो रेड लाइट एरिया में जन्मी है। उसे नाचना बहुत पसंद है और अपनी मां को देखकर उसे भी सबके सामने नाचने की इच्छा होती है। लेकिन काफी छोटी होने की वजह से कोई इजाजत नहीं देता है। जब उसकी मां महफिल में नाचने जाती है तो एक जगह उसकी परछाई पड़ती है, जिसे देखकर उसकी बेटी भी पर्दे के पीछे नाचने लगती है।
रेड लाइट एरिया की बच्ची पर शॉर्ट फिल्म बनाई है।
चैनल में रिपोर्टर की नौकरी छोड़ एडिटिंग में आई
27 वर्षीय संध्या ने बताया कि जर्नलिज्म की पढ़ाई की थी। इसके बाद कॉलेज में रहते हुए ही आज तक चैनल में जॉब लगी। 6 महीने रिपोर्टर के तौर पर काम करने के बाद नौकरी छोड़ दी। संध्या कहती हैं कि ‘शुरुआत दिनों में रिपोर्टिंग कर लौटती थी तो वीडियो भी खुद एडिट करनी पड़ती थी।’
मां कहती थी कि बेटी हाथ से निकल गई
संध्या कहती है कि ‘एक स्टूडियो में बॉलीवुड डायरेक्ट सुजीत सरकार आए थे, जिनसे बातचीत के दौरान फिल्म इंस्टीट्यूट की जानकारी मिली। फिर सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट में एडमिशन लिया। इस दौरान घर में काफी महाभारत हुआ। मां कहती थी कि बेटी हाथ से निकल गई है। वह अपना करियर बर्बाद कर लेगी।’
पत्रकारिता की नौकरी छोड़ एडिटिंग की दुनिया में आई संध्या।
पिता ने ड्राइवर की नौकरी कर बच्चों को पढ़ाया
संध्या के पिता एक ड्राइवर थे। कुछ साल पहले तबीयत खराब होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। आज भी अपने पिता को याद करते हुए संध्या भावुक हो जाती हैं। वह कहती हैं कि ‘शुरुआत में मां मेरे खिलाफ थी, लेकिन पिता ने हमेशा साथ दिया और प्रेरणा दी। अपने तीन बच्चों को उन्होंने पढ़ाया-लिखाया और काबिल बनाया। अब मुंबई जाकर बॉलीवुड फिल्मों में प्रोडक्शन डिजाइन करना चाहती हूं।’ सोर्स :दैनिक भास्कर।