अनोखी होली,मटिहानी की होली को लेकर कुआं पर उमड़ आता है पूरा गांव,रंग डालो प्रतियोगिता
बेगूसराय.होली एक ऐसा त्योहार है जिसका नाम सुनते ही बच्चे से लेकर बूढ़े तक में लाल-हरे रोगों की खुमारी छा जाती है। 25-26 मार्च को मनाए जाने वाले होली को लेकर तैयारी शुरू हो गई है। बच्चे और युवा ही नहीं, बुजुर्गों ने भी होली के लिए प्लानिंग शुरू कर दी है। द्विअर्थी होली गीत और नशा के जाल में उलझ कर लोग होली के संदेश को बदलने लगे हैं।लेकिन इन सबके बीच बेगूसराय में मटिहानी नाम का एक ऐसा गांव है, जहां होली का इंतजार सिर्फ गांव के लोग ही नहीं, दूर-दूर के लोग एक साल तक करते हैं। यहां दो दिन मनाए जाने वाले रंगों के उत्सव में लोग रंग बाल्टी या ड्रम में नहीं घोलते, बल्कि कुआं में ही घोल दिया जाता है। पूरे गांव के लोग एक जगह जमा होकर रंग डालो प्रतियोगिता करते हैं।
कई दशक से हो रहे इस अनोखे होली की इस बार भी व्यापक तैयारी की जा रही है। पहले यहां सिर्फ पुरुषों की टोली होती थी, लेकिन 2023 में महिलाओं की टीम भी शामिल किया गया है। मटिहानी गांव में इस चर्चित होली में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। गांव के लोग जहां होली खेलते हैं, वहीं इस अनोखे होली को देखने के लिए दूर-दूर से लोग जमा होते हैं।
यहां हजारों लोग एक जगह जुटकर ब्रज की लठमार होली नहीं, बल्कि रंगों के बरसात की प्रतियोगिता में शामिल होते हैं। मटिहानी में दो दिन मनाए जाने वाले होली की खास बात है कि कथित आधुनिकता के युग जहां कुआं विलुप्त हो गया है तो, यहां कुंआ को जिंदा रखा गया है और कुआं पर ही सामूहिक होली खेली जाती है। पहले दिन सभी लोग चार कुआं पर जमा होते हैं और कई ड्रम, नांद एवं अन्य बड़े बर्तन में रंग रखा जाता है।इसके बाद अलग-अलग ग्रुप में बंटकर लोग कतार में रंग के भरे बर्तन के सामने खड़े होकर तथा एक-दूसरे पर पिचकारी से रंग डालते हैं। जो पक्ष दूसरे को रंग डालकर भागने पर मजबूर कर देगा, वह विजेता घोषित होता। यही सिलसिला होली के दूसरे दिन दो कुआं पर चलने के बाद विजेता एवं उप विजेता की घोषणा किया जाता है।
रंगों की बरसात प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए बेहतर पिचकारी की आवश्यकता होती है। बाजार में बिकने वाली बड़ी पिचकारी नहीं साइकिल में हवा देने वाला पंप और बांस की पिचकारी भी तैयार कर लिया जाता है। लोगों का कहना है कि इस गांव में 80-82 पूर्व राजस्थान से आए माड़वार समाज के एक परिवार रहते थे, जो राजस्थान से पिचकारी लेकर यहां आए थे। पहली बार उन्होंने ही 7 कुआं पर एक साथ होली की शुरूआत कराई।माड़वार समाज का वह परिवार अब यहां नहीं है। लेकिन लोगों ने अपने पुरखों की परंपरा को आज भी बरकरार रखा है। इस होली में सिर्फ आम ही नहीं, बल्कि खास लोग भी शामिल होते हैं। गांव से बाहर रहने वाले लोग भी होली के अवसर पर गांव पहुंचते हैं तथा होली में शामिल होकर पर्व का आनंद लेते हैं।
लोग कहते हैं कि कोशिश है सामाजिक एकता की यह परंपरा सदियों तक चलती रहे। हम अगली पीढ़ी को इसकी ऐतिहासिकता दिखा रहे हैं। फिलहाल यहां होली की जोरदार तैयारी चल रही है और इस वर्ष भी महिलाओं की एक टोली अलग कुआं पर रंग भरी होली खेलेंगी। इस टीम की सभी सदस्य भी महिलाएं होगी, स्वयंसेवक और निर्णायक मंडल भी महिलाएं होगी, पुरुष सिर्फ दर्शक दीर्घा में सहयोग करेंगे।