Wednesday, September 25, 2024
Vaishali

800 फीट ऊंचे पर्वत के चारों ओर है विशाल सर्प का चिह्न, कभी हुआ करते थे सैकड़ों तालाब और ढेरों मंदिर..

 

बिजेंद्र कुमार राजबंधु, बांका। Mandar Parvat Banka Bihar : बिहार के बांका जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर मंदार पहाड़ अवस्थित है। इसे तीन धर्मों की संगम स्थली भी कहा जाता है। ऐतिहासिक मंदार पर्वत पर पुरातात्विक अवशेषों का भंडार है। पर्वत की तराई से लेकर शिखर तक मंदिर के अवशेष चिल्ला-चिल्ला कर गवाही दे रहे हैं कि एक समय में यहां सैकड़ों मंदिर हुआ करते थे।

समय-समय पर पर्वत के कई स्थानों पर मंदिर की प्रतिमाएं एवं अवशेष भी निकलते रहते हैं। इससे यह प्रमाणित भी होता है। मंदार की चर्चा कई ग्रंथों एवं काव्यों में मिलती है। यहां जनवरी माह में सफा, सनातन एवं जैन समुदायों के धर्मावलंबियों का जमघट लगता है। सफाधर्म के संस्थापक चंदर बाबा के आदर्शों की पूजा सफा धर्म के लोग मंदार पर आकर करते हैं। इस क्रम में बिहार, झारखंड, बंगाल सहित अन्य प्रांतों के लोग पहुंचते हैं।

मंदार पर्वत से समुद्र का मंथन हुआ था

पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी मंदार पर्वत से समुद्र का मंथन किया गया था। वासुकि नाग की मथानी बनाई गई थी। पर्वत पर इसके चिह्न अभी भी मौजूद हैं। पूर्व काल में मंदिर के आसपास सैकड़ों तालाब हुआ करते थे। आज भी कई तालाब यहां मौजूद हैं। पूर्व काल में इस स्थान को बालिसानगर कहा जाता था। अभी इस स्थान को बौंसी के नाम से जाना जाता है। मंदार का शिखर 800 फीट ऊंचा है।

मंदार पर्वत पर सालों भर देशभर के पर्यटक घूमने के लिए आते रहते हैं। विशेष रूप से 14 जनवरी मकर संक्रांति के अवसर पर यहां चार दिवसीय विशाल मेला का आयोजन होता है। जानकार बताते हैं कि मंदार के सानिध्य में कई बड़े सिद्धों व योगियों ने अपना समय व्यतीत किया है।

चार लाख की लागत से हुई सीताकुंड की सफाई : इतिहासकर मनोज मिश्रा ने बताया कि पर्वत शिखर पर भगवान काशी विश्वनाथ का मंदिर है। इसके अलावा जैन समुदाय के भी मंदिर हैं। पर्वत पर सीताकुंड, शंखकुंड, आकाशगंगा, भगवान नरसिंह की गुफा, सुखदेव मुनि की गुफा, राम झरोखा (वर्तमान में तपस्थली), मधु कैटभ की पत्थर की आकृति आदि समेत आस्था से जुड़ीं कई अन्य चीजें मौजूद हैं। पर्वत की तराई में आस्था से जुड़ा सीता कुंड है। यहां मकर संक्रांति के अवसर पर हर वर्ष विभिन्न राज्यों से हजारों श्रद्धालु स्नान करने के लिए जुटते हैं। लगभग चार लाख की लागत से सीताकुंड की सफाई पिछले माह पर्यटन विभाग ने कराई है। कई किंवदंतियों के अनुसार यहां माता सीता आई थीं।

कभी एक लाख दीपों से जगमग हुआ कर था लखदीपा मंदिर

पर्वत की तराई के पूरब जंगल में लखदीपा मंदिर स्थित है। यहां कभी लाखों दीपक जला करते थे। मंदिर के भग्नावशेष आज भी मौजूद है। दीपावली में आज भी लोग श्रद्धापूर्वक दीये जलाने के लिए यहां पहुंचते हैं। कहा जाता है कि यह विश्व का इकलौता लखदीपा मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर सातवीं सदी से आठवीं सदी के बीच भव्य मंदिर हुआ करता था। यहां दीप जलाने के लिए एक लाख ताखा हुआ करते थे। इसमें मंदार क्षेत्र के आसपास के श्रद्धालु दीपावली में पहुंचकर एक लाख से अधिक दीपक जलाया करते थे। वर्तमान में भी ताखों के अवशेष बचे हुए हैं। समय के साथ-साथ लखदीपा मंदिर का वर्तमान में एक छोटा सा अवशेष बचा हुआ है। यह मंदिर अभी भी अपनी भव्यता का गवाही दे रहा है। तत्कालीन भागलपुर के डीआइजी विकास वैभव ने लखदीपा मंदिर में दीप जलाने की परंपरा की फिर से शुरुआत की थी। चार साल पूर्व डीआइजी के सहयोग से हजारों दीप जलाए गए थे। उस कार्यक्रम में भागलपुर व बांका से कई लोग शामिल हुए थे। बताया जाता है कि काला पहाड़ के आक्रमण में यह मंदिर ध्वस्त हुआ था।

सामाजिक कार्यकर्ता राहुल डोकानिया व राजाराम अग्रवाल ने बताया कि लखदीपा मंदिर के ऊपर भगवान मधुसूदन का मंदिर अवस्थित था। पाल वंश के पहले शासक धर्मपाल ने मंदिर का निर्माण करवाया था। बाद में आक्रमणकारी काला पहाड़ के आक्रमण से मंदिर ध्वस्त हो गया। भगवान मधुसूदन की प्रतिमा दूसरी जगह स्थापित की गई। मान्यता है कि मधु दैत्य का वध करने के दौरान मधु ने भगवान से उसी जगह पर स्थापित होने की प्रार्थना की थी। तब, भगवान मधुसूदन रूप में वहां अवस्थित हुए।

 

पटना के पुरातत्व विभाग द्वारा लखदीपा मंदिर का कई बार सर्वेक्षण भी किया गया है। इसके ठीक सामने अवंतिका नाथ मंदिर है। यहां भगवान मधुसूदन वर्ष में एक बार मंदार भ्रमण के लिए निकलते हैं। मंदार पर्वत के पूरब में कामधेनु मंदिर है। इस विश्व के इकलौते मंदिर में पत्थर के बछड़े व गाय की मूर्ति है। बताया जाता है कि यह आपरूपी है और सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र है।

 

54 करोड़ से हो रहा मंदार का विकास : हाल के वर्षों में पर्यटन विभाग द्वारा 54 करोड़ की राशि से विभिन्न प्रकार का सुंदरीकरण कार्य हुआ है। इसमें प्रमुख रूप से बिहार का दूसरा रोपवे शामिल है। इसका पिछले वर्ष 21 सितंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा उद्घाटन किया गया था। इसके अलावा पर्यटन विभाग द्वारा पापहरणी सरोवर के बगल में रेन शेल्टर, कैफेटेरिया, मंदार के नजदीक आर्ट एंड क्राफ्ट विलेज, पर्यटन आइबी, तोरण द्वार, परिक्रमा पथ का सुंदरीकरण, पेयजल सेंटर, डीलक्स शौचालय सहित अन्य प्रकार का कार्य हुआ है। इससे पर्यटकों की संख्या में काफी तेजी आई है।

 

लक्ष्मी नारायण मंदिर भी है यहां

पापहरणी तालाब के मध्य स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर भी श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र है। यहां मंदार आनेवाले श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। इस मंदिर का निर्माण पापहरणी सरोवर के बीच हुआ है। सरोवर में गाद की समस्या है। तत्कालीन डीएम सुहर्ष भगत ने पर्यटन एवं राजस्व विभाग से मिलकर इसकी सफाई की योजना बनाई थी। फिलहाल, यह योजना खटाई में।

 

स्थानीय विधायक डा. निक्की हेंब्रम ने बताया कि मंदार के विकास के लिए उन्होंने पहल की है। कई बार विधानसभा में इसके लिए आवाज उठाई गई है। पूर्व मंत्री रामनारायण मंडल ने बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में बौंसी को राजकीय मेला का दर्जा दिलाया है। मेला आयोजन की जिम्मेदारी सरकार की होती है। इसका स्वरूप निखारने की जरुरत है। राज्य सरकार के पर्यटन विभाग को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।

 

वेदवि‍द्यापीठ गुरुधाम : बौंसी इलाके में वेदवि‍द्यापीठ गुरुधाम भी है। यह स्‍थान मंदार पर्वत के पांच किलोमीटर की दूरी पर है। यहां सस्‍कृत, वेद सहित कर्मकांड व धार्मिक अनुष्‍ठान के पढ़ाई होती है। यहां संस्‍कृत महाविद्यालय भी है। साथ ही काफी संख्‍या में यहां ब्रह्मचारी वेद अध्‍ययन करते हैं। सरस्‍वती पूजा और गुरु पूर्णिमा पर यहां पांच दिवसीय समारोह होता है। गुरुधाम के वर्तमान आचार्य प्रभात कुमार सान्‍याल हैं।

कैसे आएं यहां- यह है मार्ग

मंदार पर्वत सहित अन्‍य धार्मिक स्‍थल बांका जिला मुख्‍यालय से 15 किमी दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र बांका जिले के बौंसी में है। बांका से आप टेम्‍पो सहित अन्‍य वाहन से यहां जा सकते हैं। इसके अलावा भागलपुर रेलवे जंक्‍शन से आप ट्रेन से बांका, बौंसी या बाराहाट में उतरकर यहां पहुंच सकते हैं। भागलपुर से दुमका या कोलाकता जाने वाली ट्रेनों से आप बौंसी मंदारहिल स्‍टेशन पर उतर सकते हैं। यहां से दो किमी की दूरी पर यह क्षेत्र है। इसके अलावा अगर आप भागलपुर से बांका जाने वाली ट्रेन पर सवार हैं तो आप बाराहाट में उतर जाएं या फ‍िर बांका में। बाराहाट और बांका से आप टेम्‍पो सहित अन्‍य वाहन से बौंसी जा सकते हैं। वहीं, भागलपुर से अगर आप बस जा रहे हैं तो भागलपुर-हंसडीहा मार्ग के बस पर चढ़ जाएं। यह बस बौंसी होकर दुमका सहित अन्‍य जगहों पर जाएगी। भागलपुर से बौंसी के लिए भी बस और एक पैसेंजर ट्रेन भी है। इसके अलावा आप देवघर से भी यहां आ सकते हैं। मार्ग काफी सुगम है।

Kunal Gupta
error: Content is protected !!