Tuesday, November 26, 2024
Patna

यूक्रेन-रुस के युद्ध:10 दिनों तक बर्फ को गला कर पीते रहे सूमी के मेडिकल छात्र

पटना। यूक्रेन-रुस के युद्ध में सबसे अधिक परेशानी यूक्रेन में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों को हुई। केंद्र सरकार की पहल के बाद भारतीय छात्रों को घर वापसी का मौका मिला। भारतीय छात्रों के साथ-साथ दूसरे देशों के भी सैकड़ों छात्र भारत की मदद से बाहर निकले। सूमी रुस के सबसे नजदीकी शहर होने के कारण तबाही का मंजर यहां सबसे अधिक देखने को मिला। पावर प्लांट उड़ा देने के कारण यहां के लोगों को बिजली के साथ-साथ पीने के पानी का भी संकट हो गया था।

 

सूमी से वापस लौटी शिवांगी ने बताया कि वह 2017 से ही यहां के मेडिकल कालेज में पढ़ रही है। पहली बार इस तरह की संकट का सामना करना पड़ा। 24 फरवरी से वह हास्टल के बंकर में अपने दोस्तों के साथ छिपी हुई थी। पहले से स्टाक किया भोजन व पानी ही उनका सहारा था। बाहर सड़कों पर बमबारी हो रहा था। बमों के धमाके से बंकर की दीवारे तक कांपने लगती थी। वे लोग दहशत में जी रहे थे। 27 फरवरी को पावर प्लांट के उड़ा देने से पूरा शहर अंधेरे के आगोश में आ गया था। बिजली संकट के कारण पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा था। काफी संकट भरा समय था। जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे परेशानियां बढ़ने लगी थी। बर्फ को गलाकर पीने की थी मजबूरी

 

शिवांगी ने बताया कि 28 फरवरी से 9 मार्च तक पीने का पानी उपलब्ध नहीं था। उनलोगों के पास जो भोजन का स्टाक था अब समाप्त हो चुका था। बंकर में उतनी ठंड नहीं थी परंतु बाहर में बर्फवारी हो रहा था। वे लोग छत से गिरने वाले रेन वाटर से बर्फ का पानी छानकर इसे उबालकर पी रहे थे। इसी बर्फ के सहारे उनलोगों का जीवन चल रहा था। कुसुम फार्मा की मदद से अंतिम पांच दिन मिला भोजन

 

यूक्रेन के सूमी शहर में भारतीय मूल के ही एक व्यक्ति द्वारा कुसुम फार्मा नाम से मेडिकल उपकरण व दवा की कंपनी का संचालन किया जा रहा था। जब उनलोगों का भोजन समाप्त हो गया तो इसकी सूचना कुसुम फार्मा के मालिक को मिली। उनके द्वारा हास्टल में रहने वाले भारतीय छात्रों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई थी।

 

 

भारत सरकार की पहल पर कारीडार बनाकर निकाला गया छात्रों को

 

रुस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध में रुसी सेना पूरे सूमी में भर गई थी। जगह-जगह पर बम फोड़े जा रहे थे। गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच रातें बीतती थी। जैसे-जैसे दिन बीत रहा था जीने की उम्मीद कम होते जा रही थी। इसी बीच सूचना मिली कि कल बस में सवार होकर सूमी से लवीव के लिए निकलना है। परंतु जैसे ही वे लोग बस में सवार हुए की गोलीबारी शुरू हो गई। वे लोग वापस हास्टल लौट आए। बाद में भारत सरकार की पहल पर सेना की निगरानी में उनलोगों को बस से सूमी से पुलतावा के लिए निकाला गया। बस के आगे दस से बारह गाड़ियों पर सेना के जवान चल रहे थे। पीछे रेड क्रास व सुरक्षाकर्मी की गाड़ियां थी। उनलोगों को सूमी से पुलतावा आने में तीन घंटे के बजाय 16 घंटा लगा। काफी घूमकर आना पड़ा। पुलतावा से ट्रेन से लवीव पहुंचे। ट्रेन में भारतीयों के प्रयास से कई चीनी व तंजानियन नागरिक भी निकले। लवीव से वे लोग पोलैंड पहुंचे जहां काफी स्वागत किया गया। भारतीय इंबैसी अपने नागरिकों के लिए काफी प्रयास की।

Kunal Gupta
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