क्लास में अबसेंट यानी 10 डालर का जुर्माना, आकांक्षा ने बताए- यूक्रेन में पढ़ाई के सख्त नियम
नई दिल्ली।कानपुर, । भारत में अन्य राज्यों की तरह यूपी में कानपुर से बहुत से छात्र-छात्राएं मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गए और रूस के हमले के बाद फंस गए। अब जब वे घर वापसी कर रहे हैं तो सामने आ रहा है कि युद्ध की आहट के बावजूद क्यों देरी हुई और क्यों समय रहते यूक्रेन की यूनीवर्सिटी से निकलकर घर नहीं आ सके। बर्रा सात की रहने वाली आकांक्षा कटियार ने वार्ता में यूनीवर्सिटी में पढ़ाई के नियमों के बारे में बताया तो पनकी पड़ाव में रहने वाले राहुल कमल ने यहां तक आने का सफर बयां किया।
यूक्रेन में फंसी बर्रा सात निवासी व्यवसायी लल्लन कुमार कटियार की बेटी आकांक्षा कटियार भी घर लौटकर आ गई हैं। मां राखी और भाइयों आर्य व आकाश ने उन्हें गले से लगा लिया। आकांक्षा ने बताया कि वह खार्कीव मेडिकल विवि में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की छात्रा हैं। 24 फरवरी की सुबह पांच बजे से वह भी मौत के साये में जीती रहीं। 15 को दूतावास ने एडवाइजरी निकाली, लेकिन विवि ने क्लास जारी रखी। क्लास छोड़ नहीं सकते थे, क्योंकि प्रतिदिन के हिसाब से 10 डालर का फाइन लगता है। इसी वजह से हम भी फंसे रहे। 20 तारीख को दूसरी एडवाइजरी जारी हुई तो हमें दो मार्च का टिकट मिला, लेकिन देर हो चुकी थी। सभी एयरस्पेस बंद हो गए थे। टिकट का पैसा 30 हजार भी अब तक वापस नहीं हुआ।
28 तारीख तक किसी तरह हास्टल के अंधेरे बंकर में रहे। मोबाइल की रोशनी में खाना बनाते थे। बुआ का लड़का अर्पित भी साथ था। एक मिसाइल तो हमारे हास्टल के बगल में ही गिरी। वहां गए एक भइया की मौत हो गई थी। किसी तरह एक मार्च को बमबारी के बीच निकल पड़े। कोई कैब तो कोई पैदल ही रेलवे स्टेशन गया। इसके बाद ट्रेन से लवीव गए, जहां से 13 घंटे पैदल चलकर बार्डर पहुंचे। पोलैंड में आने के बाद भारतीय एंबेसी ने होटल में ठहराया और चार मार्च को एयरपोर्ट ले गए। वहां से पांच मार्च को दिल्ली आए। आकांक्षा ने बताया कि वह केवल अपने दस्तावेज ला सकीं। लैपटाप भारी था, इसलिए हास्टल में छोड़ आईं।
फ्लाइट पकडऩे गए लेकिन बंद हो गईं उड़ानें : पनकी पड़ाव निवासी एलआइसी के प्रशासनिक अधिकारी वीरेंद्र कमल के पुत्र राहुल कमल भी रविवार को घर लौट आए। मां मीना कमल, भाई अंकित और बहन शालू ने उन्हें खूब प्यार दुलार दिया। राहुल ने बताया कि वह डेनिप्रो मेडिकल विवि में चौथे वर्ष के छात्र हैं। हमले की आशंका और दूतावास की एडवाइजरी जारी होने पर 22 फरवरी को ही भारत के लिए टिकट करा ली थी। 24 फरवरी को सुबह साढ़े नौ बजे बोरस्पिल एयरपोर्ट से फ्लाइट थी। सुबह साढ़े पांच बजे ही यहां पहुंचे तो देखा कि यात्रियों को एयरपोर्ट से निकाला जा रहा है। बाद में बताया गया कि फ्लाइट कैंसिल हो गई है। टिकट का पैसा भी रिफंड नहीं हुआ। इसके बाद हम वहीं से बस लेकर कीव के पास स्थित आखिरी स्टाप पर उतरे। वहां एक एजेंसी बाब ट्रेड ने शेल्टर दिया। तीन दिन तक वहीं रुके और फिर बस से रोमानिया बार्डर पहुंचे। 10 घंटे इंतजार करने के बाद बार्डर पार किया। चार तारीख को हम रोमानिया से चले और पांच को दिल्ली पहुंचे।