Tuesday, November 26, 2024
Patna

लुधियाना की पूजा काे अब भी सुनाई दे रही धमाकों की गूंज, माता-पिता ने पुष्पवर्षा से किया स्वागत

लुधियाना। Russia Ukraine War: रेलवे कालोनी शेरपुर की रहने वाली 19 साल की पूजा रानी शुक्रवार सुबह घर लौटी। बेटी को देखते ही पिता कलेश्वर यादव व मां ललिता की आंखे भर आई। माता-पिता ने पुष्पवर्षा कर बेटी का स्वागत किया। करीब एक घंटे तक पूजा कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं दिखी। धीरे-धीरे सामान्य होने पर पूजा ने कहा कि अब भी उसे धमाकों की आवाज सुनाई दे रही है। भगदड़ आंखों के सामने घूम रही है। पूजा ने कहा कि 3 महीने पहले ही यूक्रेन की कीव स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस करने गई थी। सोचा था कि डिग्री पूरी करके डाक्टर बनने के बाद ही देश लौटूंगी। लेकिन, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उसने बताया कि 24 से 27 फरवरी तक वे बंकरों में भूखे रहने के लिए मजबूर थे।

 

28 फरवरी की सुबह यूनिवर्सिटी के टीचर्स की तरफ से कहा गया कि हालात और बिगड़ सकते हैं। ऐसे में हमने फैसला लिया कि हम जोखिम लेकर निकलेंगे। करीब 55 स्टूडेंटस यूनिवर्सिटी से मैट्रो स्टेशन पहुंचे। वहां बगजार के लिए ट्रेन ली। फिर लवीज के लिए ट्रेन ली और फिर वहां से बस लेकर पौलेंड बार्डर पर पहुंचे। वहां से इंडियन एंबेंसी ने हमें संभाला। पूजा कहती है कि घर आने के बाद उसे अपने भविष्य की चिंता सता रही है।  परिजनों ने लाखों रूपये खर्च करके उसे भेजा था। अब जंग की वजह से पढ़ाई बीच में छूट गई। वहीं मां ललिता कहती हैं कि कई दिनों से हम एक पल के लिए सो नहीं पा रहे थे। भूख प्यास खत्म हो गई थी। बेटी के आने के बाद खुशियां लौटी है।

घर आकर जिंदा होने का अहसास हो रहा

 

चंडीगढ़ रोड जमालपुर की रहने वाली 20 साल की दामिनी ठाकुर शुक्रवार रात्रि यूक्रेन से घर लौटी। दामिनी पुलतावा स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस सेकेंड इयर में पढ़ रही थी। माैत से बचकर जैसे ही बेटी ने घर की दहलीज पर कदम रखा,तो परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को गले लगाया और मंदिर व गुरूद्वारा साहिब में जाकर इश्वर का आभार जताया। इस दाैरान दामिनी और परिजनों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। पिता बिक्रमजीत सिंह और मां प्रिया ठाकुर ने कहा कि उनकी बेटी मौत के मुंह से बचकर आई है, उसका दूसरा जन्म हुआ है। अभिभावकों ने बेटी के लौटने की खुशी में केक काटा। दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए दामिनी कहती हैं कि घर आकर जिंदा होने का अहसास हो रहा है। जब तक यूक्रेन में थे, तब तक यहीं लग रहा था कि बचने वाले नहीं है। हालांकि यूक्रेन के अन्य शहरों के मुकाबले पुलतावा में हालात बहुत ज्यादा खराब नहीं थे, लेकिन बम धमाकों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। 24 फरवरी की शाम को हमें बंकर में भेज दिया गया। करीब चार दिन बंकर में रहे।

 

सोचा कि आखिर कब तक बंकर में छिपे रहेंगे। साथ रह रहे दूसरे स्टूडेंटस से बात की कि रिस्क लेकर घर के लिए निकलते हैं। सब ने हामी भरी तो सौ-सौ डालर इकटठा करके हंगरी के जहौनी बार्डर तक जाने के लिए बस की। 22 घंटे तक भूखे प्यासे रहते हुए 1500 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद जब बार्डर पहुंचे, तब सांस में सांस आइ। लेकिन बेचैनी तब खत्म हुई, जब अपने वतन में कदम रखा। घर आकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा है। पड़ोसियों ने एक विजेता की तरफ स्वागत किया।

Kunal Gupta
error: Content is protected !!