सुहागिन महिलाएं करेंगी वट सावित्री का व्रत,जानें पूजा का शुभ मुहूर्त
समस्तीपुर:अखंड सौभाग्य की कामना से सुहागिन महिलाएं सोमवार को वट सावित्री का व्रत करेंगी। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या में भरणी और कृत्तिका नक्षत्र का युग्म संयोग के साथ शोभन योग रहेगा। वट वृक्ष को देव वृक्ष माना गया हैं।इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं। महिलाएं वट वृक्ष को अक्षत, पुष्प, चंदन, ऋतुफल, पान, सुपारी, वस्त्र, धुप-दीप आदि से पूजा कर पंखा भी झलेंगी।
मिलेगा अखंड सुहाग का वरदान
पंडित राकेश झा ने स्कन्द पुराण के हवाले से बताया कि वट सावित्री का व्रत एवं इसकी पूजा व परिक्रमा करने से सुहागिनों को अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख-शांति तथा वैवाहिक जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं। पूजा के बाद भक्तिपूर्वक सत्यवान-सावित्री की कथा सुनना और वाचन करना चाहिए। इससे परिवार पर आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं तथा घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
नवविवाहिता महिलाएं करेंगी विशेष पूजा
महिलाएं पूरे दिन उपवास करेंगी और सोलह श्रृंगार कर आंगन को अरिपन से लेप कर पति-पत्नी संग में वट की पूजा नियम-निष्ठा से करने के बाद चौदह बांस से निर्मित लाल-पीला रंग में रंगा हुआ हाथ पंखा से वट वृक्ष को हवा देंगी। इस पूजा में आम और लीची की प्रधानता रहती है। गुड्डा-गुड़िया को सिंदूर दान भी होगा। रंगा हुआ घड़ा में पूजन की दीपक प्रज्ज्वलित रहेगी। पूजा के बाद नव दंपति को बड़े-बुजर्ग महिलाएं धार्मिक व लोकाचार की कई कथाएं सुनाएगी। उसके बाद पांच सुहागिन महिलाएं नवविवाहिता के साथ खीर, पूरी व ऋतुफल का प्रसाद ग्रहण करेंगी।
यम के भय को दूर करता वट वृक्ष
वैदिक गंथों और पौराणिक ग्रंथों में मृत्यु को भी चुनौती देने वाले वट प्रजाति के वृक्षों में बरगद को अमूल्य बताया गया है। इसकी जड़, छल, पत्ता, दूध, छाया तथा हवा न सिर्फ मनुष्यों बल्कि पृथ्वी, प्रकृति और समस्त जीव-जंतुओं के लिए जीवन रक्षक माना गया है। मनुष्य के शरीर में बिमारियों के रूप में यदि यमदूत प्रवेश कर गया हो और वह इस वृक्ष की शरण में चला जाए, तो जैसे सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के हाथ से जीवित लौटने में सफलता हासिल की थी। उसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी यमदूतों से मुक्ति पा सकता है।
अंकुरित चने का आध्यात्मिक महत्व
भविष्य पुराण के अनुसार यमराज ने चने के रूप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को वापस दिए थे। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आईं और चने को सत्यवान के मुख में रख दिया, इससे सत्यवान फिर जीवित हो गए थे। चना के प्राणदायक महत्व होने के कारण इसे वट सावित्री की पूजा में अंकुरित चना अर्पण किया जाता है।
वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि: दोपहर 11:02 बजे से पूरे दिन
अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:20 बजे से 12:14 बजे तक
गुली काल मुहूर्त: दोपहर 01:28 बजे से शाम 03:10 बजे तक
चर-लाभ-अमृत मुहूर्त: दोपहर 01:28 बजे से शाम 06:32 बजे त