बेगूसराय में विश्वनाथ मंदिर बीहट में वैदिक तरीके से विवाह पंचमी संपन्न, लोगों की उमड़ी भीड़
बेगूसराय.मिथिलांचल के दक्षिणी प्रवेश द्वार पर माधुर्य वैष्णव भक्ति के परिचायक विश्वनाथ मंदिर बीहट में गुरुवार की देर रात प्रभु श्रीराम और माता जानकी के विवाह की रस्म पूरा करने के साथ ही अलौकिक एवं अद्वितीय 93वां श्री जानकी विवाह महोत्सव की तीसरी कड़ी पूरी हो गई। इस बेमिसाल विवाह महोत्सव को देखने-सुनने के लिए बीहट स्थित विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।
वहीं, देर रात विवाह की प्रक्रिया संपन्न होने तक ठंड में भी लोग डटे रहे तथा पूरा इलाका मैथिली विवाह, भक्ति और लोकगीतों से गुंजायमान होता रहा। विवाह की रस्म पूरी कराए जाने से पहले पूरे विधि-विधान से दूल्हा बने अयोध्या से आए राम रुपी बालक को मौड़ी पहनाया गया।
इसके बाद बैंड-बाजे के साथ मंदिर के अवध द्वार से भगवान श्रीराम की बारात निकाली गई तथा नगर भ्रमण कराया गया। इस दौरान जगह-जगह पर श्रद्धालुओं ने पुष्पवृष्टि करने के साथ आरती उतारकर दूल्हे का स्वागत किया। नगर भ्रमण के बाद बारात के जानकी द्वार पर पहुंचते ही लोगों ने जोरदार स्वागत किया गया। जहां कि परिछन के बाद विवाह मंडप के बाहर दूल्हा बने भगवान श्रीराम की आरती उतारी गई तथा उसके बाद द्वार पूजा किया गया।
इस दौरान दूल्हे से सखियों की हंसी-ठिठौली देख लोग काफी आनंदित हो रहे थे। उसके बाद आदर के साथ ले जाकर उन्हें विवाह मंडप के आसन पर विराजमान कराया गया तथा माता जानकी को भी विवाह मंडप में लाया गया। यहां नाखून काटने से लेकर कन्यादान की सभी रस्में पूरे विधि विधान के साथ पूरी की गई तथा सिया ने रघुवर और रघुवर ने सिया को वरमाला पहनाई। इसके बाद विवाह की सभी रस्में वैदिक मंत्रोच्चार एवं मिथिला के पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ संपन्न कराया गया।
जहां कि पीठासीन आचार्य राजकिशोर शरण ने जनक के रूप में कन्या दान का विधान पूरा किया। पीठासीन आचार्य राजकिशोर शरण ने बताया कि सिय रनिवास का जानकी महोत्सव वैष्णव माधुर्य भक्ति की पराकाष्ठा एवं महान श्रृंगार का उच्चतम ही नहीं, बल्कि अनिवर्चनीय रस है। आध्यात्मिक गुरु की कृपा से परब्रह्म के अलौकिक विवाह महोत्सव में शामिल होने का सौभाग्य मिलता है। मिथिला ने परब्रह्म श्रीराम को दामाद रूप में अपनाकर सबके लिए पाहुन बना दिया और पाहुन भाव से परम ब्रह्म की आराधना से श्रीराम से शाश्वत संबंध जुड़ता है।
सबसे बड़ी बात है कि यहां ना सिर्फ विवाह का महोत्सव मनाया जाता है। बल्कि वैष्णव माधुर्य भक्ति के परिचायक विश्वनाथ मंदिर बीहट में बेटी की शादी की तरह मिथिला परंपरा के अनुसार सभी रस्म निभाए जाते हैं। अवध (अयोध्या) से आए श्रीराम के स्वरूप दूल्हा से मिथिलांचल की बेटियां हास-परिहास करती है और विवाह की रस्म पूरा होने के बाद सम्मान के साथ उन्हें दामाद की तरह अवधपुरी अयोध्या के लिए विदा किया जाता है।
पंचमी को भगवान श्रीराम का विवाहोत्सव होता है
उन्होंने बताया कि लोक उत्सव और लोक पर्व की जागृत परंपरा के वाहक मिथिला के हर घर में श्री राम जानकी की पूजा होती है। विश्वनाथ मंदिर में प्रत्येक दिन रामार्चन के माध्यम रस्में निभाई जाती है। प्रत्येक माह के शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम का विवाहोत्सव होता है। लेकिन प्रत्येक वर्ष अगहन शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्री जानकी विवाह महोत्सव का आयोजन होता रहा है। लोग यहां परब्रह्म की आराधना दासभक्ति से करते हैं।
ब्रह्म का ब्रह्मत्व खोकर शक्ति में समर्पित हो जाना तथा शक्ति के हाथों का खिलौना बने रहना ही मिथिला की वैष्णव मार्धुय भक्ति का मर्म है तथा विवाह महोत्सव के दौरान यह भावना साकार दिखती है। परब्रह्म श्री राम ने मिथिला के कोहवर में आकर अपना ब्रह्मत्व खोया तथा जानकी ने अपना सतित्व। आध्यात्मिक गुरु ने परब्रह्म को पाहुन के रूप आराधना करने का अधिकार दिया और इससे बीहट के लोगों का शाश्वत संबंध परमब्रह्म से जुड़ता है।
गुरु घराना के रूप में विख्यात विश्वनाथ मंदिर बीहट के तत्कालीन पीठासीन आचार्य पंडित वासुकीशरण उपाध्याय उर्फ नुनू सरकार ने 1931 में यहां श्री जानकी विवाह महोत्सव की शुरुआत की थी और तब से यह अनवरत जारी है। रामायण काल में स्वयंवर के बाद सीता ने बीहट के बगल सिमरिया से गंगा नदी पार कर अवध के लिए प्रस्थान किया था। जिसके कारण इसकी काफी प्रसिद्धि है तथा विवाह महोत्सव के अवसर पर बिहार के विभिन्न जिले के ही नहीं, उत्तर प्रदेश और नेपाल से भी लोग आते रहे हैं।
इस महोत्सव में विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, उनके पौत्र इलील्लाह खान, दरभंगा घराना के गायक विदुर मल्लिक, रमेश मल्लिक एवं संगीत मल्लिक समेत देश के कई चर्चित शास्त्रीय संगीत गायक और वादक सहित अन्य विधा के कलाकार शिरकत कर चुके हैं।