दुख में नहीं सुख के दिनों में भी भगवान को याद करें: परमहंस स्वामी आगमानंद
पटना।खगड़िया.श्री राम जानकी ठाकुरबाड़ी सन्हौली के प्रागंण में श्रीश्री 108 श्री विष्णु महायज्ञ सह श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन मंगलवार को पूजा अर्चना व महाविष्णु यज्ञ हवन हुआ। श्री शिव शक्ति योगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्वर एवं श्री उत्तरतोताद्रि मठ विभीषणकुंड अयोध्या के उत्तराधिकारी श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद के सानिध्य में यह कार्यक्रम हुआ। इसमें शिक्षक नेता मनीष कुमार सिंह, जिप सदस्या प्रियदर्शना सिंह के साथ योगपीठ के विद्वान आचार्य पंडित अनिरुद्ध शास्त्री, अण्णु बाबा, ब्रजेश बाबा, उदय ठाकुर एवं अन्य पंडितों के द्वारा पूजा अर्चना एवं महाविष्णु यज्ञ में हवन किया। उत्तर चरण में योगपीठ से जुड़े कलाकारों के द्वारा भजन माला के साथ कार्य शुरू हुआ। कलाकारों में माधवानंद ठाकुर, पवन दुबे, बलवीर सिंह, बग्घा, गुलशन, नंदन, कुंदन, राजू, तिरपाल के भजन पर झूम उठे।
वहीं कथा व्यास परमहंस, स्वामी आगमन जी महाराजश्रीमद्भागवत कथाज्ञान महायज्ञ केदूसरे दिनभगवान भक्त ध्रुव प्रसंग पर विस्तार पूर्वक से चर्चा करते हुए कहा कि राजा उत्तानपाद जी की दो रानियां थी सुनीति और सुरुचि। लेकिन राजा का सुरुचि से अधिक प्रेम था और सुनीति से कम था। सुरुचि के पुत्रका नाम उत्तम और सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था। सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नाम के पुत्र हुए। महाराज उत्तानपाद अपनी छोटी रानी सुरुचि से अधिक प्रेम करते थे और सुनीति प्राय उपेक्षित रहती थी। इसलिए वह सांसारिकता से विरक्त होकर अपना अधिक से अधिक समय भगवान के भजन पूजन में व्यतीत करती थी। एक दिन बड़ी रानी का पुत्र ध्रुव अपने पिता महाराज उत्तानपाद की गोद में बैठ गया। यह देख सुरुचि उसे खींचते हुए गोद से उतार देती है।
इसके बाद मां के कहने पर पांच वर्ष का बालक ध्रुव वन की ओर चल पड़ा और तपस्या की। इसके बाद भगवान ने दर्शन दिए और भगवान ने राज करने का वरदान दिया। स्वामी जी ने कहा कि ध्रुव महाराज ने 6 महीने की अखंड भक्ति करके भगवान श्रीनारायण के दर्शन करके सभी को सत्य के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया। यदि मनुष्य समय निकालकर भक्ति एवं सत्संग कर ले तो जीवन का कल्याण हो सकता है। सिर्फ दुख में नहीं सुख के दिनों में भी भगवान को याद करना चाहिए। अधिकतर लोग भगवान को तभी याद करते हैं जब वह मुसीबत में होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। भगवान की भक्ति हर पल करनी चाहिए। दुख में ही सुख के दिनों में भी प्रार्थना करनी चाहिए। भक्ति का भाव पवित्र होना चाहिए। तभी भगवान की कृपा मिल सकती है। जो बालक ध्रुव ने कर दिखाया।