सोनपुर मेला;लौंडा नाच, न्यूड डांस से थिएटर तक:सिर्फ थिएटर से 5 करोड़ से ज्यादा का कारोबार
सोनपुर मेला:पटना। मेला कभी पशुओं के व्यापार के लिए जाना जाता था। हाथी-घोड़े इसकी पहचान हुआ करते थे। इतिहास बताता है कि इस मेले में चंद्रगुप्त मौर्य आए, अकबर आए। स्वतंत्रता सेनानी वीर कुंवर सिंह भी यहां घोड़ा खरीदने आते थे।
राजधानी पटना से करीब 25 KM और हाजीपुर से 3 KM दूर सोनपुर में गंडक के तट पर लगने वाले सोनपुर पशु मेले में मध्य एशिया के व्यापारी भी आते थे। इस मेले में हाथी-घोड़े की खरीद-बिक्री के साथ-साथ मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते थे।
समय के साथ पशुओं की खरीद-बिक्री पर रोक लगी तो हाथी-घोड़े आने बंद हो गए या फिर गिनती के आने लगे। आज करीब 2000 साल पुराने इस मेले का स्वरुप पूरी तरह से बदल चुका है। सांस्कृतिक कार्यक्रम की जगह लौंडा नाच, न्यूड डांस और फिर थिएटर ने ले ली। आज ये जानवरों के लिए कम और थिएटर के लिए ज्यादा फेमस है।थिएटर का खुद का कारोबार 5 करोड़ से ज्यादा का होता है। मेले में पहुंचने वाले कारोबारियों का कहना है कि थिएटर की वजह से ही उनकी दुकान चलती है। थिएटर बंद तो मेला बंद। इस बार के मंडे स्पेशल में पढ़िए समय के साथ कैसे बदला सोनपुर मेला और कैसे थिएटर बन गया इसकी पहचान…
समय के साथ बदला मेले का स्वरूप
जानकर बताते हैं कि करीब 1980 के पहले मेले की पूरी इकोनॉमी पशुओं के व्यापार पर टिकी थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया, वैसे-वैसे मेले का स्वरूप भी बदलता गया। आज मेला में भीड़ बुलाने के थिएटर एक जरिया बन गया है।
जब मेले में हाथी, घोड़े की खरीद-बिक्री होती थी, तब लोग हाथी देखने मेले में आते थे। सरकार की ओर से लागू किए गए पशु क्रूरता अधिनियम के बाद इस मेले पर काफी बुरा असर पड़ा था। इस नियम के तहत पशुओं की खरीद बिक्री पर रोक लगा दी गई। इसमें हाथी, कई प्रकार के घोड़े, जंगली बैल, पक्षी के खरीद बिक्री पर रोक लगा दी गई थी।इधर, मेले में पशुओं की घटती बाजार की जगह थिएटर ने ली। आज मेले में थिएटर का कारोबार करोड़ों का है। आज मेले की लोकप्रियता थिएटर की वजह से है।
कैसे हुई थिएटर की शुरुआत
करीब 1600 ई. के पहले यहां राजा-महाराजा, अपनी सेना में शामिल करने के लिया हाथी और घोड़ा खरीदने आते थे। उस दौरान राजाओं के ठहरने और मनोरंजन की व्यवस्था की जाती थी। तब गीत-संगीत के माध्यम से राजाओं का मनोरंजन होता था। मध्य एशिया के साथ दक्षिणी भारत से भी व्यापारी यहां हाथी और घोड़े खरीदने आते थे। धीरे-धीरे व्यापारियों के लिए भी मनोरंजन की व्यवस्था की जाने लगी।
1700 ई. के बाद गीत-संगीत में डांस भी शामिल होने लगा। तब लौंडा डांस और नाटक होता था। लौंडा डांस और नाटक सभी के लिए था। ठहरने का कोई उचित इंतजाम नही होने के कारण दूर-दूर से मेले में पहुंचे व्यापारी और आम आदमी रात में नाटक देखकर मनोरंजन करते थे।1920 ई. के बाद अंग्रेज इस मेले में मनोरंजन के लिए लड़कियों को लाने लगे। धीरे-धीरे इस मेले में गीत-संगीत के कार्यक्रम ने थिएटर का रूप ले लिया और थिएटर को बिजनेस के रूप में स्थापित कर दिया गया।
मेले में गुलाब बाई की एंट्री हुई और चमका थिएटर
लेखक सुरेंद्र मानपुरी बताते हैं, ‘पहले सोनपुर मेले में शास्त्रीय संगीत और शेर-ओ-शायरी की महफिल लगती थी। तब सूफी साहित्य और सूफियाना गीतों के जलवे भी कायम थे। साहित्यकार अपने-अपने नजमों को पेश करते थे। बाद में राजा-महाराजाओं के लिए महफिल सजने लगी। तवायफ यहां आकर मुजरा करती थीं। कभी मनोरंजन के लिए होने वाला यह नाच-गाना धीरे-धीरे मेले की पहचान बनते चला गया।’सुरेंद्र मानपुरी ने आगे बताया कि ‘पहले छोटे-छोटे शामियाने बनाकर दर्शक गैलरी बनाई जाती थी, लेकिन फिर उसकी जगह टेंट ने ले ली। साल 1945 में सोनपुर मेले में गुलाब बाई की एंट्री हुई, जिन्हें नौटंकी (नाटक की एक शैली) की मल्लिका कहा जाता था। दरअसल, स्टेज शो के लिए थिएटर से पहले नौटंकी शब्द का इस्तेमाल किया जाता था।
थिएटर में मर्द ही औरतों का निभाते थे किरदार
नौटंकी का बदला हुआ स्वरूप बाद में थिएटर आया। भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर भी अपने नाटक की प्रस्तुति के लिए आते थे। एक समय ऐसा भी था, जब थिएटर में मर्द ही औरतों का किरदार निभाया करते थे।70 के दशक में थिएटर में एक दिन में तीन शो हुआ करते थे। यह सभी शो नाटकों से जुड़े हुए थे और पर्शियन शैली में थे। हल्दी घाटी का खेल, मीर कासिम, लैला मजनू, शीरी फरहाद जैसे नाटक दिखाए जाने लगे। इससे होने वाले अच्छे आमदनी के कारण मेले में थिएटर की संख्या धीरे-धीरे 7-8 हो गई।
कैबरे डांस में लड़कियां एक-एक कर अपने कपड़े उतारती जाती थीं
सुरेंद्र मानपुरी ने बताया, ‘सोनपुर मेले के थिएटर के लिए साल 1977 एक टर्निंग पॉइंट था। तब न्यूड डांस काफी चर्चा में आया। कुछ आधुनिक व्यवसायी थिएटर में मुंबई, दिल्ली, मद्रास के कैबरे डांसर को बुलाने लगे। कैबरे डांस करते हुए लड़कियां एक-एक कर अपने कपड़े उतारती जाती थीं।’सोनपुर नगर पंचायत के पूर्व कार्यकारी नगर अध्यक्ष बिनोद सम्राट बताते हैं, ‘80 के दशक का जो दाग थिएटर पर लगा, वह आज तक नहीं धुल पाया है। वह ऐसा दौर था, जब थिएटर में न्यूड डांस हुआ। कैबरे डांस के कारण मेले में थिएटर की पहचान ही अलग बन गई।’
एक कड़क SP ने अश्लीलता पर रोक लगाई
न्यूड डांस को लेकर मीडिया में खबरें छपने लगी थीं। दिल्ली के एक अखबार ने छापा था, ‘इस साल हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में हाथी, घोड़े, बैल के साथ-साथ मानवता भी नीलाम हुई।’ इस हेडलाइन के बाद बिहार सरकार ने इसे बहुत गंभीरता से लिया। उसी समय सोनपुर में SP डीएन गौतम की पोस्टिंग हुई थी। वो अपने कड़क मिजाज के लिए जाने जाते थे। उन्होंने थिएटर के संचालन पर सख्त निगरानी रखी।रात में डीएन गौतम ने अपने एक-दो खास साथियों के साथ घोड़े पर बैठकर छापेमारी शुरू कर दी थी। इस दौरान कई लोगों पर मुकदमा दर्ज किया और आरोपियों को जेल तक भेजा। इस एक्शन के बाद थिएटर में अश्लीलता पर अंकुश तो लगा, लेकिन मेले की वही पहचान बन गई। फिर रिकॉर्ड गाने पर कलाकारों के डांस की शुरुआत की गई, जो अभी तक जारी है। आज कलाकार भोजपुरी गानों में डांस करती हैं।
पशुओं के घटते बाजार की जगह थिएटर ने ले ली
अर्थशास्त्री विश्वनाथ बताते हैं, ‘करीब 1980 के पहले मेले की पूरा इकोनॉमी पशुओं के व्यापार पर टिकी थी। जब मेले में हाथी, घोड़े की खरीद-बिक्री होती थी। तब लोग हाथी देखने के लिए मेले में आते थे। जिन्होंने अपने जीवन में कभी हाथी नही देखे होते थे, वह भी इसी बहाने मेले में आते थे।
पार्ट- 2 इस बार के सोनपुर मेले में थिएटर में क्या खास
इस साल मेले में आए करीब 500 कलाकार
इस साल मेले में आए ‘पायल एक नजर’ थिएटर के मालिक विनय कुमार सिंह ने कहा, ‘इस बार मेले में 6 थिएटर लगे हैं। करीब 500 कलाकार इस साल आ रहे हैं। दिल्ली, वर्धमान, आसनसोल, दुर्गापुर, गाजियाबाद, गोरखपुर, बनारस, लखनऊ, कानपुर से महिला कलाकार रहेंगी। 1500 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था की गई है।’
गंगा स्नान से ज्यादा भीड़ थिएटर देखने के लिए आती है
विनय कुमार सिंह बताते हैं, ‘थिएटर में एक शो शाम 7 बजे से सुबह 4 बजे तक चलेगा। पहले 7 से 12 बजे तक ग्रुप डांस होगा और फिर सिंगल-सिंगल लड़कियां कार्यक्रम करेंगी। थिएटर देखने के लिए सबसे ज्यादा भीड़ गंगा स्नान के दिन देखने को मिलती है। फिर शनिवार और रविवार को सबसे ज्यादा दर्शक पहुंचते हैं। कभी-कभी गंगा स्नान से भी ज्यादा भीड़ थिएटर देखने के लिए आती है।’
1000 तक जाते हैं थिएटर टिकट के दाम
विनय कुमार सिंह ने बताया, ‘इस साल थिएटर में टिकट का रेट तीन कैटेगरी में है। VVIP का 600, VIP का 300 और सुपर स्पेशल का 150 है। हालांकि, दूसरे थिएटर में टिकट के दाम 1000-1200 तक जाते हैं।’ ‘इस साल निगरानी के लिए हर एक थिएटर में 7-8 सीसीटीवी कैमरा लगाए गए हैं। स्टेज से लेकर अंदर आने वाले पब्लिक की रिकॉर्डिंग होगी। अब थिएटर में सभी कार्यक्रम साफ सुथरे होते हैं, जो अश्लीलता की बात है वह पहले की थी।’
युवाओं में थिएटर का ज्यादा क्रेज
थिएटर के सबसे अधिक दीवाने युवा हैं। आज भी थिएटर के अंदर की भीड़ में 90 प्रतिशत स्टूडेंट्स और युवा हैं। सोशल मीडिया के जमाने में थियेटर की पब्लिसिटी और बढ़ गई है। हर थिएटर वालों के अपने यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज हैं। थिएटर में डांस करती लड़कियों का वीडियो यूट्यूब और फेसबुक पर अपलोड करते हैं, जो युवाओं को अपने तरफ आकर्षित करता है।थिएटर की लकड़ियों के डांस का वायरल वीडियो लोगों को एक बार फिर से मेले के तरफ खींचने लगा है। यूट्यूब और फेसबुक से भी थिएटर संचालक कमाई कर रहें हैं।
थिएटर चलेगा तभी मेले में जान आएगी
मेला का पूरा कारोबार थिएटर पर टिका है। मेले के छोटे-छोटे दुकानदार भी इस थिएटर पर ही निर्भर हैं। कपड़ा दुकानदार सूरज ने कहा कि ‘थिएटर की वजह से ही हमारी दुकानदारी चलती है। अगर थिएटर चालू नहीं होगी तो पब्लिक नहीं आएगी और फिर हमारी दुकान नहीं चल पाएगी। ऐसे में खर्च भी नहीं निकल पाएगा। हम लोग दूर से इस मेले में अपना दुकान लगाने आए हैं।’एक थिएटर में 60 से 80 फीमेल डांसर होती हैं, जो कानपुर, मेरठ, गाजियाबाद, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान से आती हैं।
करोड़ों में होता है थिएटर का कारोबार
थिएटर सरकार को बड़ा राजस्व देता है। जिस जगह पर थिएटर लगाया जाता है, उसकी पर्यटन विभाग के द्वारा बोली लगाई जाती है। करीब 25-30 लाख रुपए की बोली लगती है। पिछले साल सोनपुर मेले का राजस्व 3 करोड़ 80 लाख रुपए का था।इस हिसाब से एक थिएटर को 32 लाख रुपए तक सिर्फ जमीन के लिए ही दे देने पड़े थे। पर्यटन विभाग के अनुसार पिछले साल 80 लाख से ज्यादा लोग इस मेले में आए थे। इस साल भी 90 लाख से अधिक लोगों के आने की उम्मीद है।
5 करोड़ से ज्यादा का होता थिएटर का कारोबार
सोनपुर मेले में लोग थिएटर के महंगे टिकट भी खरीदते हैं। ऐसा एक कारण यह भी माना गया है कि यहां बाहर से काफी संख्या में मजदूर और व्यापारी काम करने आते हैं। प्रशासन की तरफ से मेले में रहने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.यहां आने वाले लोग टिकट लेकर मनोरंजन करते हैं और वहीं सो जाते हैं। वहीं, दूर से पहुंचे पर्यटक भी रात में थिएटर में ही मनोरंजन करते हैं और सुबह निकल जाते हैं। पूरे एक महीने में करीब साढ़े 5 करोड़ का सिर्फ थिएटर का कारोबार होता है।
100 करोड़ से अधिक का कारोबार होने की संभावना
पर्यटन विभाग के अनुसार, पिछले साल 80 लाख से ज्यादा लोग इस मेले में आए थे। इस साल भी 90 लाख से अधिक लोगो के आने की संभावना है। थिएटर के अलावा मनोरंजन के लिए झूले, वाटर पार्क, चार धाम यात्रा, वैष्णो माता यात्रा थीम बनाया गया है। जिसे पर्यटक खूब पसंद कर रहे है। इस साल करीब 100 करोड़ से अधिक का कारोबार होने की संभावना है।
बिहार के इकोनॉमी पर पड़ता है असर
सोनपुर मेले का असर बिहार के इकोनॉमी पर भी पड़ता है। सोनपुर का राजधानी पटना से नजदीक होने के कारण यहां बिहार के दक्षिणी और उत्तरी हिस्से से व्यापारी पहुंचते हैं। बाहर से पहुंचे व्यापारियों का कहना है कि यहां भले की एक महीने का मेला लगता है, लेकिन लोग 2 महीने तक घूमने के लिए आते है। इस दो महीने में हुई कमाई से साल भर के कमाई के बराबर होती है।आज से करीब 30 साल पहले काफी कम बाजार हुआ करता था। शॉपिंग मॉल और ऑनलाइन ई-कॉमर्स साइट भी नहीं था। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के पास अपने जरूरत की सामान खरीदने के लिए मेला ही विकल्प था। तब लोग साल भर इस मेला का इंतजार करते थे और मेला से अपने घर की जरूरत की सामान खरीदते थे।सोर्स :दैनिक भास्कर।