पश्चिम चंपारण की नदियों के कटाव से वीटीआर के जंगल को नुकसान, वन्यजीवों पर खतरा ।
पटना।बगहा। भारी बरसात के कारण वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) को भी नुकसान हुआ है। जंगल से होकर बहने वाली नदियों ने कहर ढाया है। गोबर्द्धना वन क्षेत्र में तकरीबन छह एकड़ जमीन का कटाव हुआ है। बहुत से पेड़ उखड़ गए हैं। इसके अलावा जलजमाव से पेड़ों और वन्यजीवों पर खतरा उत्पन्न हो गया है। बाढ़ से जंगल की बहुत सी सड़कें भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं। ऐसे में वीटीआर प्रशासन कटावरोधी काम की तैयारी में जुटा है। इसके अलावा आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल कर जलजमाव की समस्या से निपटने की कोशिश की जा रही है। जंगल के बीच में जलजमाव को खत्म करने के लिए स्वाइल माइस्चर कंजर्वेशन तकनीक का उपयोग किया ज रहा। इसमें पत्थरों की सहायता से नालीनुमा रास्ता बनाकर बारिश के पानी को नदी में पहुंचा दिया जाता है। इसके अलावा जियो बैग में बालू भरकर किनारे को कटाव रोका जाता है। बरसात से पहले कुछ जगहों पर यह कार्य कराया गया था, लेकिन उसका बहुत लाभ नहीं हुआ।
चार नदियों के समीप कटाव की संभावना
गोबर्द्धना वन क्षेत्र में चार पहाड़ी नदियों का जलस्तर बरसात में उफान पर होता है। इन नदियों मेें सिंगहा, द्वारदह, गांगुली व ढोंगही शामिल हैंं। अभी इनके जलस्तर में उतार-चढ़ाव जारी है। बीते कुछ दिनों में हुए कटाव से सर्वाधिक नुकसान सिंगहा और ढोंगही नदी ने पहुंचाया है। बता दें कि बारिश के कारण जंगल में जगह जगह जलजमाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कटाव वाले भाग में पहले से एसएमसी विधि अपनाई जा चुकी है। साथ ही जाली लगे पत्थर व जियो बैग में बालू भरकर नदियों के किनारे पर कटाव को रोकने की कवायद भी चल रही है।
बरसात में बंद हो जाते हैं रास्ते
बरसात के दिनों में जंगल से गुजरने वाले रास्तों पर आवागमन बिल्कुल बंद हो जाता है। जिसके कारण कटाव रोधी कार्य कराने में काफी असुविधा होती है। इसके साथ नुकसान का आकलन कर पाना भी काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। वन अधिकारी बताते हैं कि बरसात के बाद ही कटावरोधी कार्य कराया जाना संभव है। जंगल में जलजमाव व कटाव के कारण छोटे वन्य जीवों यथा सांप, खरगोश, हिरण, जंगली कुत्ते, सांभर आदि पर भी खतरा उत्पन्न हो जाता है। रेंजर, गोबर्द्धना सुजीत कुमार कहते हैं कि जंगल में तकरीबन छह एकड़ वन भूमि का कटाव हुआ है। एसएमसी विधि की सहायता लेकर बारिश कम होते ही कटावरोधी काम किया जाएगा। इस तकनीक से पहले भी जंगल के संरक्षण में कदम उठाए जाते है। अमूमन 15 सितंबर से जंगली सड़कों की मरम्मत शुरू हो जाती है। जिसके बाद कटाव के लिए आवश्यक सामग्री को पहुंचाने में सुविधा होती है।