Friday, September 27, 2024
Samastipur

समस्तीपुर में शिक्षण संस्थानों में व्यवसायिक कोर्स के नाम पर फर्जीवाड़ा, खर्च का नहीं मिल रहा हिसाब

समस्तीपुर : नई शिक्षा नीति के तहत विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए व्यवसायिक शिक्षा भी दी जा रही है. शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में सूबे के 43 माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में व्यावसायिक शिक्षा की पढ़ाई को मंजूरी दी थी. जिले के दो प्लस टू विद्यालय में दो-दो व्यावसायिक कोर्स की मंजूरी दी गई थी.

 

 

अब सरकार ने इन स्कूलों में संचालित व्यावसायिक कोर्स की जांच कराने का निर्णय लिया है. राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी रंजन सिंह ने डीईओ को 12 कॉलम के फॉर्मेट में जांच कर रिपोर्ट मांगी है. डीईओ कामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने बताया कि माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत करने का उद्देश्य छात्र-छात्राओं के कौशल एवं दक्षता का विकास कर उन्हें रोजगारोन्मुख बनाना है. साथ ही विभिन्न आर्थिक एवं उत्पादक क्षेत्र की गतिविधियों के लिए प्रशिक्षित कर कौशलयुक्त कर्मी उपलब्ध कराना है. भारत सरकार द्वारा नेशनल वोकेशनल क्वालिटी फ्रेमवर्क के तहत मार्गदर्शिका भी उपलब्ध कराई गई है.

 

व्यावसायिक शिक्षा के नाम पर हो रहा कोरम पूरा

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के ऑनलाइन फैसिलेशन सिस्टम फोर स्टूडेंट (ओएफएसएस) पोर्टल पर जारी की गयी सूची के मुताबिक जिले के दो इंटर स्तरीय विद्यालयों में तथा जिले के एक इंटर स्तरीय विद्यालय में वैकल्पिक विषय के रूप व्यावसायिक शिक्षा प्रदान किया जाता है. शहर आरएसबी इंटर स्कूल, मोडेल इंटर स्कूल व उच्च माध्यमिक विद्यालय ताजपुर में अलग अलग ट्रेड विषय में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान किया जाता है. शहर के आरएसबी इंटर स्कूल में एकाउंटेंसी एंड ऑडिटिंग,इलेक्ट्रॉनिक्स तकनीक व पोल्ट्री प्रोडक्शन की शिक्षा दी जाती है.

 

 

इसी तरह मोडेल इंटर स्कूल में नर्सिग और मिडवाइफरी,फिशरीज व एमएलटी की शिक्षा दी जाती है. वही उच्च माध्यमिक विद्यालय ताजपुर में ऑटोमोबाइल व सिक्योरिटी से संबंधित शिक्षा दी जाती है. व्यावसायिक शिक्षा के नाम पर हो रहे ‘व्यवसाय’ पर विभाग ने नकेल कसी भी थी. तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा निदेशक आरबी चौधरी ने कागज पर चल रहे व्यावसायिक कोर्स के लिए अधिकारियों को आड़े हाथ लिया था. साथ ही हाईस्कूलों में चल रहे इन कोर्स के नाम पर मिलने वाले लाखों रुपये का हिसाब मांगा था. कथित तौर पर चलने वाले इन कोर्स के लिए हर साल विभाग की ओर से लाखों रुपये दिए जाते हैं.

 

 

इंटरमीडिएट स्तर के इन कोर्स की जमीनी सच्चाई यह कि मुश्किल से किसी-किसी स्कूल में 3-5 बच्चों मिलते हैं. कहीं-कहीं तो एक भी बच्चा नहीं हैं. वही शिक्षकों का कहना है कि माध्यमिक स्कूलों में छात्रों को रोजगारपरक शिक्षा देने की तैयारी विभाग ने शुरू कर दी है लेकिन इसके लिए जो मूलभूत सुविधाएं होनी चाहिए वह नहीं होने के कारण खानापूर्ति की जा रही है. छात्र व्यावसायिक पाठ्यक्रम के बारे में कितना व्यवहारिक ज्ञान हासिल कर पा रहे होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

Pragati
error: Content is protected !!