“तांती-ततवा अनुसूचित जाति की सूची से बाहर… आरक्षण के मिले लाभ वापस होंगे, जानिए कोर्ट ने क्या कहा
पटना.अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का बढ़ा हुआ कोटा (50 से 65 प्रतिशत) पटना हाई कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने से पहले से मुश्किल में फंसी बिहार की नीतीश सरकार को अब दूसरा बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने तांती-तंतवा जाति को अनुसूचित जाति की सूची से बाहर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि बिहार सरकार ने 01 जुलाई 2015 को जो संकल्प जारी किया था उसे निरस्त किया जाता है। डॉ. भीम राव आंबेडकर विचार मंच और आशीष रजक की दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने यह आदेश बिहार सरकार को दिया।
कोर्ट ने कहा कि संसद के बनाए कानून के अलावा राज्यों या केंद्र सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता, अधिकार या शक्ति नहीं है। पीठ ने कहा कि यह अवैध और गलत है। पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और सांविधानिक प्रावधानों के विरुद्ध पायी गई है। राज्य को इस शरारत के लिए माफ नहीं किया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत सूची में शामिल अनुसूचित जातियों के सदस्यों को वंचित करना एक गंभीर मुद्दा है।
अब तक…मिल रहा था कोटा का लाभ
दरअसल 1 जुलाई 2015 को बिहार सरकार ने एक संकल्प जारी कर तांती और ततवा को अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से हटा दिया था। इन्हें अनुसूचित जाति के क्रमांक-20 में पान स्वासी के साथ जोड़ दिया गया था। इस संकल्प के बाद तांती-ततवा को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र भी जारी किया जाने लगा। जिसके आधार पर ये सरकारी नौकरी हासिल करने में इसका लाभ उठाने लगे। अनुच्छेद 341 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि इसके खंड-1 के अंतर्गत अधिसूचना के अंतर्गत निर्दिष्ट सूची को केवल संसद से बनाए गए कानून के जरिए ही संशोधित या परिवर्तित किया जा सकता है।
जानिए… कोर्ट के फैसले का असर क्या
सुप्रीम कोट ने कहा कि संकल्प जारी होने के बाद तांती-ततवा को एससी का जो लाभ दिया गया उसे वापस एससी कैटेगरी में वापस करें। तांती-ततवा जाति के जिन लोगों को एससी का लाभ मिल चुका है उन्हें ईबीसी कैटेगरी में समायोजित किया जाए। वहीं बिहार सरकार ने अपने कदम को उचित ठहराने का प्रयास करते हुए तर्क दिया था कि राज्य ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए 2 फरवरी, 2015 के राज्य आयोग की अनुशंसा पर ही कार्य किया है। लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि राज्य भली-भांति जानता था कि उसके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है।