अस्ताचगामी सूर्य को अर्घ्य आज:ऋग्वैदिक काल से छठ महापर्व की परंपरा,जानें अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त
पटना।आज रविवार को चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि में आर्द्रा नक्षत्र में अस्ताचगामी सूर्य को संध्याकाल में पहला अर्घ्य दिया जाएगा। सप्तमी सोमवार 15 अप्रैल को पुनर्वसु नक्षत्र व सुकर्मा योग में उदीयमान सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाएगा।
भगवान भास्कर को जल से अर्घ्य देने से मानसिक शांति और जीवन में उन्नति होती है। लाल चंदन, फूल के साथ अर्घ्य से यश की प्राप्ति होती है। कलयुग के प्रत्यक्ष देवता सूर्य को जल में गुड़ मिलाकर अर्घ्य देने से पुत्र और सौभाग्य का वरदान मिलता है। वहीं, प्रातःकाल में जल में रक्त चंदन, लाल फूल, इत्र के साथ ताम्रपात्र में आरोग्य के देवता सूर्य को अर्घ्य देने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है।
ऋग्वैदिक काल से छठ महापर्व की परंपरा
पंडित राकेश झा ने कहते हैं कि आज चैत्र शुक्ल षष्ठी को सायंकालीन सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस बार छठ महापर्व ग्रह गोचरों के शुभ संयोग में मनायी जा रही है। यह पर्व पारिवारिक सुख समृद्धि व मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रती पूरे विधि-विधान से छठ का व्रत करती है। इस पर्व को करने से रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति मिलती है। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चला आ रहा है। भगवान भास्कर को अर्घ्य देने से कई जन्मो के पाप नष्ट होते हैं।
सूर्य के साथ इनकी पत्नी की भी होगी पूजा
उन्होंने आगे बताया कि सूर्य ऐसे देवता हैं जिनको प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। सूर्य की शक्ति का मुख्य स्त्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा हैं। छठ में सूर्य के साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। पहले सायंकालीन अर्घ्य में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्युषा) और फिर उदीयमान सूर्य की पहली किरण (उषा) को अर्घ्य देकर नमन किया जाएगा।
आरोग्यता व संतान के लिए उत्तम है छठ व्रत
पंडित गजाधर झा के मुताबिक सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। स्कन्द पुराण तथा वर्षकृतम में भी इस प्रतिहार षष्ठी की वर्णन है।
छठ महापर्व के सामग्री का विशेष महत्व
सूप,डाला- अर्घ्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का इस्तेमाल किया जाता है। सूप से वंश वृद्धि और रक्षा होती है।
ईख- ईख आरोग्यता का घोतक है।
ठेकुआ- ठेकुआ समृद्धि का घोतक है।
ऋतुफल- ऋतुफल से विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
अर्घ्य मुहूर्त
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय- शाम 06:19 बजे तक
प्रातः कालीन सूर्य को अर्घ्य- सुबह 05:40 बजे के बाद दिया जाएगा