आर्थिक तंगी से बदला हवा का रुख, माउंट एवरेस्ट फतह नहीं कर पाई लक्ष्मी
पटना।कुंदन कुमार, सहरसा। फिल्म कालाबाजार का गीत “ये दुनिया है कालाबाजार.. ये पैसा बोलता है”। आज 21वीं सदी में जब हम बेटियों की उड़ान भरने की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, तब भी ये गीत अपनी प्रासांगिकता खो नहीं पाया है। दुनियां के कई ऊंचे पर्वतों पर तिरंगा लहरानेवाली जिले के बनगांव की बेटी लक्ष्मी झा के जज्बे, जुनून और सपने को आखिरकार अर्थाभाव में टूट जाना पड़ा।रविवार को यह तय हो गया कि 37 लाख रुपये नहीं जुटा पाने के कारण अब वह माउंट एवरेस्ट फतह करने के लिए नहीं जाएगी। कई महीने से वह शासन-प्रशासन को अपनी फरियाद लगाकर थक गई। उसकी फरियाद नक्कार खाने में तूती की आवाज बनकर रह गई।
इस मिशन के लिए वर्षों से की गई उसकी मेहनत पर आखिरकार पानी फिर गया। आगे उसे यह मौका मिल पाएगा या नहीं यह को वक्त बताएगा, परंतु फिलहाल उसके लक्ष्य पर यहीं विराम लग गया है।
सिर्फ जज्बा व दृढ़ संकल्प नहीं बन सका सफलता का आधार
पिताविहीन लक्ष्मी गरीबी से जूझते हुए तुर्किए की सबसे ऊंची चोटी, उत्तराखंड के चंद्रकाशी, साउथ अफ्रिका के किलिमिंजारों पर्वत, नेपाल स्थित काला पिंक और माउंट एवरेस्ट के बैस कैंप तक तिरंगा लहरा चुकी है। इसी अप्रैल माह में माउंट एवरेस्ट फतह करने की दो वर्ष से जी तोड़ तैयारी कर चुकी लक्ष्मी सिर्फ पैसे के अभाव में इस मिशन से पीछे हट कई।लक्ष्मी ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के पूर्व रविवार को पायोनियर एडवेंचर को 37 लाख रुपये जमा करना था, हालांकि इसके लिए वह कई महीने से सरकारी महकमा में आवेदन देकर चक्कर लगाती रही है, परंतु किसी ने उसकी नहीं सुनी और उसकी तमाम मेहनत, जुनून और जज्बा पर पानी फिर गया।
टूट गई हिम्मत और फफक पड़ी लक्ष्मी
लक्ष्मी एक ऐसी मजबूत लड़की है, जो विपरीत परिस्थिति में भी गाइड के मना करने के बाद डरी नहीं और जान पर खेलकर कई ऊंची पर्वतों को फतह करने में सफल रही। उसका यह मानना कि मजबूत संकल्प और दृढ निश्चय के बल पर हर सफलता को हासिल किया जा सकता है, वह सही साबित नहीं हुआ।
माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराना उसका सपना और अपनी तमाम तैयारियों के बाद पैसे के अभाव में मिली असफलता से वह टूट गई। जागरण से बात करते हुए वह फफक कर रोने लगी। उसने कहा कि देश के हर राज्य में इस कार्य के लिए सरकार सहयोग करती है, परंतु हमारी सरकार को शायद यह उचित नहीं लगा।उसने कहा कि इस वर्ष सिर्फ हमारे जिला सहरसा में जितना महोत्सव हुआ अगर एक का भी धन इस कार्य में लग जाता, तो सहरसा की बेटी देशभर में अपनी मिट्टी का खुशबू बिखर सकती थी। कहा कि हमारा समाज बेटी की शादी में सबकुछ बेच सकता है, परंतु अब भी शायद बेटी को आगे बढ़ाने पर पैसे का रिस्क लेना नहीं चाहता।
लक्ष्मी ने कहा कि हमने अपने स्तर से शुभचिंतकों के सहयोग से 17 लाख रुपये का प्रबंध किया था, परंतु वह लक्ष्य से काफी पीछे रह गया। इस वर्ष तो उसका यह सपना टूट चुका, परंतु वह इसके लिए एक और प्रयास करना चाहती है।