Sunday, November 24, 2024
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इलेक्टोरल बॉन्ड से BJP को सबसे ज्यादा 6000 करोड़ चंदा, चुनाव आयोग ने 763 पेजों की 2 लिस्ट अपलोड की

नई दिल्ली।चुनाव आयोग ने गुरुवार (14 मार्च) को इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा अपनी वेबसाइट पर जारी किया। इसके मुताबिक भाजपा सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी है। 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक पार्टी को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपए मिले हैं।

 

 

लिस्ट में दूसरे नंबर पर तृणमूल कांग्रेस (1,609 करोड़) और तीसरे पर कांग्रेस पार्टी (1,421 करोड़) है। हालांकि, किस कंपनी ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया है, इसका लिस्ट में जिक्र नहीं किया गया है। चुनाव आयोग ने वेबसाइट पर 763 पेजों की दो लिस्ट अपलोड की हैं। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है।चुनावी बॉन्ड इनकैश कराने वाली पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, AIADMK, बीआरएस, शिवसेना, TDP, YSR कांग्रेस, डीएमके, JDS, एनसीपी, जेडीयू और राजद भी शामिल हैं।सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को 15 मार्च तक डेटा सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने 12 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट में डेटा सबमिट किया था। कोर्ट के निर्देश पर SBI ने चुनाव आयोग को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दी थी।

 

 

 

किसने-किसको चंदा दिया, यह पता नहीं चलता

 

दोनों लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों और इन्हें इनकैश कराने वालों के तो नाम हैं, लेकिन यह पता नहीं चलता कि किसने यह पैसा किस पार्टी को दिया?

इस मामले में याचिका लगाने वाले ADR के वकील प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया कि एसबीआई ने वह यूनिक कोड नहीं बताया, जिससे पता चलता कि किसने-किसे चंदा दिया। ऐसे में कोड की जानकारी के लिए वे फिर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।

कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड के डेटा पर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने कहा, दानदाताओं और इसे लेने वालों के आंकड़े में अंतर है। दानदाताओं में 18,871 एंट्री है, जबकि लेने वालों में 20,421 की एंट्री है। पार्टी ने यह भी पूछा है कि यह योजना 2017 में शुरू हुई थी तो इसमें अप्रैल 2019 से ही डेटा क्यों है?

आयोग का कहना है कि उसे यह जानकारी एसबीआई से ऐसी ही मिली है। 2019 से 2024 के बीच 1334 कंपनियों-लोगों ने कुल 16,518 करोड़ रु. के बॉन्ड खरीदे। 27 दलों ने भुनाए।

सबसे ज्यादा चंदा देने वाले सेंटियागो मार्टिन का बेटा भाजपा का सदस्य

 

 

सबसे बड़ा चुनावी चंदा फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस ने दिया है। कंपनी सिक्किम, नगालैंड और पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश में लॉटरी के टिकट बेचती है। इसे लॉटरी किंग मार्टिन सेंटियागो चलाते हैं। उन्होंने 1,368 करोड़ रुपए का चंदा 21 अक्टूबर 2020 से जनवरी 24 के बीच दिया है।सेंटियागो मार्टिन के बड़े बेटे चार्ल्स जोस ने 2015 में भाजपा जॉइन की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कंपनी 10 साल से ED और IT डिपार्टमेंट की रडार पर है। दिसंबर 2021 में ED ने कंपनी की 19.6 करोड़ की प्रॉपर्टी अटैच की थी। 2019 में IT ने मार्टिन के देशभर के 70 ठिकानों पर छापा भी मारा था। कंपनी के खिलाफ लॉटरी रेगुलेशन एक्ट 1998 के तहत और आईपीसी के तहत कई मामले दर्ज हैं।

 

कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में भ्रष्टाचार के 4 कारण बताए

 

इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा जारी होने के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि भाजपा ने स्कीम के जरिए करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया है। उन्होंने इसके 4 कारण बताए। उन्होंने कहा कि हम यूनीक बॉन्ड ID नंबर मांगेंगे, जिससे पुख्ता तौर पर पता चलेगा कि किसने किसको कितना चंदा दिया है।

 

जयराम रमेश ने कहा- मेघा इंजीनियरिंग एंड इन्फ्रा ने 800 करोड़ रुपए चंदे में दिए हैं। अप्रैल 2023 में कंपनी ने 140 करोड़ रुपए डोनेट किए। इसके ठीक एक महीने के बाद कंपनी को 14,400 करोड़ रुपए का ठाणे-बोरीवली ट्विन टनल प्रोजेक्ट मिल गया। वहीं, जिंदल स्टील एंड पावर ने 7 अक्टूबर 2022 को 22 करोड़ रुपए का चंदा दिया। इसके ठीक 3 दिन बाद 10 अक्टूबर को गियर पाल्मा कोल माइन कंपनी को मिल गई।

जयराम रमेश ने कहा कि भाजपा की हफ्ता वसूली की स्ट्रैटजी बहुत आसान थी। भाजपा ED, CBI और IT की रेड के जरिए हफ्ता यानी की डोनेशन वसूलती थी। टॉप 30 डोनर्स में से 14 के खिलाफ छापा पड़ चुका है। शिर्डी साई इलेक्ट्रिकल्स पर दिसंबर 2023 में छापा पड़ा था। इसके बाद जनवरी 2024 में कंपनी ने 40 करोड़ का डोनेशन दे दिया। फ्यूचर गेमिंग कंपनी का भी यही ट्रेंड देखने को मिला है।

 

 

जयराम रमेश ने कहा कि कुछ कंपनियों ने केंद्र सरकार से कोई प्रोजेक्ट मिलने के तुरंत बाद भाजपा को चंदा देकर एहसान चुकाया है। जैसे वेदांता ग्रुप को राधिकापुर वेस्ट प्राइवेट कोल माइन 3 मार्च 2021 को मिली। कंपनी ने अगले ही महीने 25 करोड़ रुपए भाजपा को चंदे में दिए।जयराम रमेश बोले- पहले कंपनी के मुनाफे का केवल एक छोटा प्रतिशत ही चंदे में दिया जा सकता था। चुनावी बॉन्ड स्कीम में ये प्रतिबंध हटा दिया गया। इससे शेल कंपनियों के लिए ब्लैक मनी चंदे के रूप में देने का रास्ता खुल गया। चुनाव आयोग की लिस्ट से पता चलता है कि क्विक सप्लाई चेन लिमिटेड ने 410 करोड़ रुपए डोनेट किए, जबकि इस कंपनी का पूरा शेयर कैपिटल 130 करोड़ रुपए ही है।

भाजपा को 1-1 करोड़ कीमत वाले 5854 बाॅन्ड मिले

 

SBI के चेयरमैन दिनेश कुमार ने बुधवार, 13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट फाइल की थी। उन्होंने इसमें कहा- हमने ECI को पेन ड्राइव में दो फाइलें दी हैं। एक फाइल में बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल्स हैं। इसमें बॉन्ड खरीदने की तारीख और रकम का जिक्र है। दूसरी फाइल में बॉन्ड इनकैश करने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी है।

 

लिफाफे में 2 PDF फाइल भी हैं। ये PDF फाइल पेन ड्राइव में भी रखी गई हैं, इन्हें खोलने के लिए जो पासवर्ड है, वो भी लिफाफे में दिया गया है। एफिडेविट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट को दिया गया डेटा 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच खरीदे और इनकैश कराए गए बॉन्ड का है।SBI के मुताबिक, 1 अप्रैल से 11 अप्रैल, 2019 तक 3 हजार 346 चुनावी बॉन्ड खरीदे गए थे। इनमें 1 हजार 609 इनकैश कराए गए। 1 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच कुल 22 हजार 217 बॉन्ड खरीदे गए। 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 तक कुल खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की संख्या 18,871 थी। इनमें 20 हजार 421 बॉन्ड इनकैश कराए गए।

 

 

चुनावी बॉन्ड स्कीम क्या है?

चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।

 

विवादों में क्यों आई चुनावी बॉन्ड स्कीम?

2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

 

बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।

 

 

कोई भी इंडियन खरीद सकता था, 15 दिन की वैलिडिटी

सुप्रीम कोर्ट के तत्काल रोक लगाने से पहले चुनावी बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई 29 ब्रांच में मिल रहे थे। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता था। बशर्ते बॉन्ड पाने वाली पार्टी इसके काबिल हो।

 

खरीदने वाला हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता था। इसके लिए उसे बैंक को अपनी पूरी KYC देनी होती थी। जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट किया जाता, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिलना अनिवार्य था।डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर, बॉन्ड पाने वाला राजनीतिक दल इसे चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवा लेता था। नियमानुसार कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।”:, सोर्स:,दैनिक भास्कर।

Kunal Gupta
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