समस्तीपुर मे जश्न का माहौल,कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने पर मिठाई खिलाकर खुशी का इजहार किया
समस्तीपुर ।कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की अधिसूचना जारी होते ही कर्पूरी ठाकुर के पैतृक गांव पितौझिया में लोग खुशी से उछल पड़े। जनशताब्दी समारोह को लेकर पहले से ही यहां लोगों का जुटान था। भारत रत्न की घोषणा ने इस खुशी में और चार चांद लगा दिया। लोगों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी का इजहार किया।
इस मौके पर कर्पूरी ठाकुर के पुत्र और राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर ने कहा कि करीब 36 सालों के संघर्ष के बाद यह खुशी का मौका आया है। यह हर्ष का विषय है। कर्पूरी ठाकुर अपने जीवन काल तक गरीबों के लिए लड़ते रहे अपने लिए एक घर तक नहीं बनाया। लंबे समय से जदयू इस मांग को उठाती रही है।
कर्पूरी ठाकुर के साथ रहे बनारसी ठाकुर ने कहा इस क्षण के लिए यहां के लोग वर्षों से तरस रहे थे। वहीं मौके पर कर्पूरी ठाकुर की पौत्री खुशी से भावुक हो उठीं। भारत रत्न मिलने की सूचना के साथ ही बड़ी संख्या में कर्पूरी ठाकुर के पैतृक गांव स्थित स्मृति भवन पर लोगों की भीड़ कड़ाके की ठंड में भी जुटने लगी थी। लोग एक दूसरे को बधाई दे रहे थे।
कर्पूरी चर्चा के दौरान भी उठा था भारत रत्न का मामला
कर्पूरी ठाकुर के जन्म शताब्दी समारोह के मौके पर 22 जनवरी को कर्पूरीग्राम में कर्पूरी पर चर्चा का कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम के दौरान भी जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कर्पूरी ग्राम में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग उठाई थी । इसके साथ ही लोगों ने कर्पूरी ठाकुर के नाम पर यूनिवर्सिटी भी खोलने की बात रखी थी।
जननायक कर्पूरी ठाकुर एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिक नेता के रूप में जाने जाते थे। बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और फिर दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर ने राजनीतिक जीवन में अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा। इसकी वजह से वह असली हीरो बन गए। ’कर्पूरी ठाकुर भारत छोड़ो आन्दोलन में कूद पड़े. उन्हें 26 महीने तक जेल में रहना पड़ा। उन्होंने 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। कर्पूरी ठाकुर जैसा समाजवादी विचारधारा पर जीने वाला व्यक्ति अब बहुत कम ही देखने को मिलेंगे।
छात्र जीवन से थे राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था। वह एक नाई परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता गोकुल ठाकुर नाई की दुकान चलाते थे। कर्पूरी ठाकुर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कर्पूरी ठाकुर छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय थे।
1952 में पहली बार बने थे विधानसभा सदस्य
उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 26 महीने जेल में बिताए। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया। सन 1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए। वो सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर ताजपुर विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद वह लगातार चार बार विधानसभा के सदस्य चुने गए। सन 1967 में उन्हें बिहार के उपमुख्यमंत्री बनाया गया। सन 1970 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने गरीबों और दलितों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं लागू की। कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार में पहली बार गैर-लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को खत्म किया गया।
कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर राज्यसभा सांसद हैं
कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर अभी जदयू से राज्यसभा सांसद है। कर्पूरी ठाकुर अपने जीवन में मकान नही बना पाए। वह जीवन काल तक झोपड़ी में ही समय गुजारा। उनके मरने के बाद उस झोपड़ी को स्मृति भवन के रूप में विकसित किया है।