मधेपुरा लोकसभा सीट पर जदयू-राजद में फंसा पेंच:शरद यादव के बेटे शांतनु की दावेदारी
पटना।शरद यादव की पुण्यतिथि के अवसर पर पटना स्थित आरजेडी कार्यालय में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव समेत पार्टी के कई सीनियर नेता मौजूद रहे।जीवन के अंतिम समय में शरद यादव ने 20 मार्च 2022 को अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का विलय आरजेडी में कर दिया था। बीजेपी की राजनीति को मात देने के लिए वे विपक्ष की एकता पर लगातार जोर देते रहे। उनके निधन के बाद विपक्ष एकजुट हुई। बीजेपी को मात देने के लिए ही इंडिया गठबंधन बनाया गया।
शरद यादव कि इच्छा थी कि उनके बेटे शांतनु बुंदेला को राजनीति में अच्छी जगह मिल जाए। अब सामने लोकसभा का चुनाव है। शांतनु बुंदेला पिछले कई दिनों से पटना में हैं। वे मधेपुरा से अपने पिता की विरासत संभालना चाहते हैं। पेंच यह है कि यहां से जेडीयू के दिनेश चंद्र यादव सांसद हैं।शरद यादव की पुण्यतिथि पर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने अपने भाषण के दौरान उन्हें याद किया। तेजस्वी ने स्वीकार किया कि शरद यादव से उन्होंने काफी कुछ सीखा है। उन्होंने शरद यादव के परिवार के प्रति सहानुभूति भी दिखाई, लेकिन मधेपुरा सीट की चर्चा किसी रूप में नहीं की।
पिछले लोकसभा चुनाव में शरद यादव की हार हुई थी
पिछले लोकसभा चुनाव में मधेपुरा लोकसभा संसदीय सीट से शरद यादव चुनाव हार गए थे। यहां से जेडीयू के प्रत्याशी दिनेश चंद्र यादव जीते थे, उनको 6 लाख 24 हजार 334 वोट मिला था। वहीं, आरजेडी से शरद यादव को 3 लाख 22 हजार 807 वोट मिले थे।
जबकि, राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्होंने 97 हजार 631 वोट हासिल किया था। शरद यादव का ना तो जन्म स्थान बिहार है और ना उन्होंने बिहार से अपनी राजनीति की शुरुआत की। हालांकि, उन्होंने लंबे समय तक बिहार को अपनी राजनीति का कर्म क्षेत्र बनाए रखा।शरद यादव आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद से भी भिड़ गए थे और बाद में नीतीश से भी। उनका जन्म 1 जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद अब नर्मदा पुरम जिले के बाबई तहसील के गांव आंखमऊ में हुआ था। वे जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने।शरद यादव ने महज 27 साल की उम्र में 1974 में पहली बार जबलपुर से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा था और उसमें बड़ी जीत हासिल की थी। उन्हें लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने प्रत्याशी बनाया था।मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने वाले महत्वपूर्ण नेताओं में वे गिने जाते हैं। तब मधेपुरा के मुरहो से उन्होंने मंडल रथ निकाला था। मुहरो बीपी मंडल का पुस्तैनी गांव है।
शरद यादव के पूरे परिवार का नाम वोटर लिस्ट में
शरद यादव मधेपुरा लोकसभा सीट से 1991,1996,1999 और 2009 में सांसद चुने गए थे।1998 और 2004 के लोकसभा चुनाव में उनको राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से शिकस्त भी मिली। 1991 में शरद यादव ने आनंद मोहन को हराया।
1996 में वे फिर से सांसद बने। 1998 में शरद यादव को राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के हाथों हार का सामना करना पड़ा। अगले ही साल 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में शरद यादव, लालू प्रसाद यादव को हरा कर एक बार फिर मधेपुरा सीट पर काबिज हुए। 2004 के चुनाव में भी शरद यादव को मधेपुरा से लालू प्रसाद यादव के सामने हार मिली।मधेपुरा के बारे में एक कहावत है रोम पोप का और मधेपुरा गोप का। आरजेडी अगर यहां से चुनाव लड़ेगी तो किसी यादव को ही उतारेगी। अभी सीटों पर बातचीत बाकी है। देखना यह है कि जेडीयू अपनी सीटिंग सीट छोड़ती है या नहीं।
शरद यादव के बेटे वहां से चुनाव लड़कर पिता की विरासत को आगे ले जाना चाहते हैं। जब लालू प्रसाद की विरासत तेजस्वी यादव और मीसा भारती संभाल रही हैं तो शरद के बेटे शांतनु यादव पिता की विरासत क्यों नहीं संभाल सकते।जानकारी है कि शरद यादव की पत्नी डॉ. रेखा यादव मधेपुरा में ही रह रही हैं। शरद यादव के परिवार का नाम मधेपुरा के वोटर लिस्ट में शामिल है। शांतनु पढ़े-लिखे हैं। उन्होंने इंग्लैंड से एमए किया है।शरद यादव की बेटी सुभाषिणी बुंदेला ऊर्फ सुभाषिणी शरद यादव 2020 में मधेपुरा जिला के बिहारीगंज विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं। उनकी हार हो गई थी।
पप्पू यादव यहां से इंडी गठबंधन को चैलेंज देने को तैयार
मधेपुरा से जाप सुप्रीमो पप्पू यादव भी चुनाव लड़ सकते हैं। पप्पू यादव चाहते हैं कि इंडी गठबंधन में उन्हें जगह मिल जाए। इसको लेकर वे लालू प्रसाद से भी मिल चुके हैं, लेकिन उन्हें गठबंधन में जगह नहीं मिली।कई अवसरों पर दिख चुका है कि नीतीश कुमार से उनके संबंध बहुत बेहतर नहीं हैं। शरद यादव के बेटे शांतनु के लिए नीतीश कुमार मधेपुरा की सीटिंग सीट छोडे़ंगे, इस पर संशय बरकरार है।हालांकि, जानकारी है कि शरद यादव ने पार्टी का विलय ही इसलिए किया था कि आरजेडी से बेटे को टिकट मिल जाए। लालू प्रसाद कैसे वादा निभाते हैं इसका इंतजार है।
नीतीश से शरद का रिश्ता खराब होता चला गया
शरद यादव, जयप्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी के साथ सक्रिय रहे। शरद, नीतीश कुमार के साथ भी लंबे समय तक रहे पर उनके रिश्ते खराब होते चले गए।2013 में नीतीश कुमार ने जब बीजेपी से रिश्ता तोड़ने का फैसला लिया तो शरद यादव साथ नहीं छोड़ना चाहते थे। वे बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक थे। 2014 की हार के बाद नीतीश और शरद के बीच खटास शुरू हो गई।
नीतीश ने बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए शरद के कट्टर प्रतिद्वंदी माने जाने वाले लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया। नीतीश कुमार ने 2017 में फिर से बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया।शरद का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने विपक्षी खेमे में रहने का मन बना लिया और 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल नाम से नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया। आगे वे बीमार रहने लगे और उनकी नई पार्टी सुस्त रही। आखिरकार शरद यादव ने अपनी पार्टी का विलय लालू प्रसाद की पार्टी में कर दिया।
शरद यादव, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के साथ राजनीतिक करने वाले लेखक, राजनेता प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि शरद यादव नास्तिक समाजवादी नेता थे। वे वैसे समाजवादी नहीं थे जो चुपके-चुपके पूजा-पाठ करते हैं।शरद यादव 2006 से 2017 तक जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, लेकिन अंत में वे जातिवादी राजनीति में घिरने लगे। जाति को अपनी राजनीति का केन्द्र बना लिया। वे स्पष्टवादी थे और कहा था कि हवाला में रुपए लिए हैं। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इसको लेकर कोई साक्ष्य नहीं मिला।
वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार कहते हैं कि शरद यादव के बेटे शांतनु मधेपुरा से उनकी विरासत संभालने के लिए घूम रहे हैं। चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल की ओर से उन्हें आश्वासन भी मिला है कि उन्हें टिकट दिया जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि मधेपुरा सीट जेडीयू के पास है। वहां से जेडीयू के सांसद हैं। यह सीट जेडीयू क्यों देगी?नीतीश कुमार का शरद यादव से छत्तीस का आंकड़ा था। दोनों के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई थी कि अंतिम संस्कार में नहीं गए। मुझे नहीं लगता कि नीतीश ये सीट छोडे़ंगे। लालू प्रसाद के दबाव में नीतीश कुमार को कोई पसंदीदा सीट मिल जाती है तो वे भले छोड़ दें।हालांकि, पिछले पांच वर्षों से शांतनु मधेपुरा में घूम रहे हैं, टिकट का प्रयास कर रहे हैं। चुनाव का समय नजदीक आ रहा तो पता चलेगा कि उनको टिकट मिलेगा कि नहीं। सोर्स; दैनिक भास्कर।