सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल की पहल,स्कूल को प्राइवेट से भी बेहतर बनाया,क्लासरूम में लगाया CCTV-WIFI; 400 बच्चे अब रोज आ हैं
पटना।गोपालगंज के मांझागढ़ प्रखंड के कर्णपुरा गांव निवासी प्रिंसिपल लोकेश कुमार की सच्ची सोच लगन और मेहनत के बदौलत एक आम स्कूल की सूरत बदल गई है। आलम यह है कि कभी इस स्कूल में बच्चे पढ़ने नहीं आते थे। सिर्फ शिक्षक ही आकर अपना दायित्व निभाते थे। लेकिन आज इस स्कूल में करीब 400 बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस स्कूल में वह सभी सुविधाएं मौजूद है, जो एक प्राइवेट स्कूल में होनी चाहिए।
दरअसल, सरकारी स्कूल का नाम सामने आते ही मन में बदहाली की तस्वीर उभर जाती है। लेकिन इस बदहाली की तस्वीर को उलट कर यहां के प्राचार्य ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो व्यवस्था बदलने में देर नहीं लगती, इसकी एक बानगी मांझा प्रखंड के कर्णपुरा अहिरटोला गांव स्थित नवसृजित प्राथमिक स्कूल में देखने को मिल रहा है। इसके सामने प्राइवेट स्कूल भी फेल है।
बेहतरीन मैनेजमेंट के साथ आकर्षक कैंपस, जगह-जगह लगे वॉश-बेसिन और स्कूल की दीवारों पर महापुरुषों की पेंटिंग। बच्चों में प्रेरणा के साथ पढ़ाई के प्रति रुचि जगाने के लिए लगाई गई है। साल 2006 में अपनी करोड़ों की मेडिसिन मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट को छोड़कर इस स्कूल में नियोजित शिक्षक के तौर पर लोकेश कुमार ने जॉइन की। तब यहां कुछ ही बच्चे पढ़ने आते थे। अब इस प्राइमरी स्कूल में 400 से ज्यादा बच्चे नियमित तौर पर आते हैं।
प्रिंसिपल ने अपनी सैलरी से स्कूल को चमकाया
इस स्कूल के प्रिंसिपल लोकेश कुमार ने समग्र राशि के तहत मिलने वाले सरकारी फंड और अपनी सैलरी के पैसे को पढ़ाई के लिए बेहतरीन माहौल बनाने के लिए खर्च किया। नवसृजित प्राथमिक स्कूल कर्णपुरा अहिरटोली के प्राचार्य लोकेश कुमार ने बताया कि इस स्कूल में WIFI से लेकर सभी क्लास में और कैंपस में CCTV लगाए गए हैं। हर कमरे में LED टीवी लगाया गया है। ताकि बच्चों को स्मार्ट क्लासेस की तर्ज पर उन्हें एक बेहतर माहौल में अच्छी शिक्षा दी जा सके। MDM के लिए चार रसोइया है। क्लास रूम में बच्चों को बैठने के लिए कारपेट लगाया गया है। जरूरत के हिसाब से हाथ धोने के लिए वॉश-बेसिन लगाए गए हैं।
सरकारी को स्कूल को प्राइवेट स्कूल से भी बेहतर बनाया।
जबकि यूरिनल शीट के साथ छात्राओं के लिए अलग से टॉयलेट बनाया गया है। स्कूल कैंपस को फलदार और फूलों वाले पौधों से इको फ्रेंडली बनाया गया है। बच्चों को गर्मी न लगे इसके लिए कमरों में पंखा के साथ-साथ कूलर भी लगाए गए हैं। पांचवी क्लास तक की इस स्कूल की मिसाल अब किसी बेहतरीन निजी स्कूलों से ज्यादा दी जाती है।
पेरेंट्स को समझाकर बच्चों को स्कूल बुलाया
प्राचार्य लोकेश कुमार ने बताया कि इस स्कूल में पहले बच्चे पढ़ने नही आते थे। छात्र-छात्राओं की संख्या काफी कम थी। सबसे ज्यादा छात्राएं इस स्कूल से नहीं जुड़ पाती थी। लेकिन घर-घर जाकर बच्चों के माता-पिता को समझाया, पढ़ाई का मर्म बताया।
इसके बाद माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू किए। इसके बाद स्कूल के व्यवस्था में परिवर्तन करने लगा। मेरी इच्छा शक्ति के अनुसार हुआ है, जो भी मैंने काम किया उसके लिए मैंने एक कार्य योजना बनाई और उसी के अनुरूप कार्य किया। आज भी मैं सोता हूं तो एक बार जरूर सोच कर सोता हूं की कल मैं क्या करूंगा। मैं भी सरकारी स्कूल से पढ़ा हूं, जिस परिवेश में यह स्कूल है। वह काफी पिछड़ा हुआ इलाका है। साथ ही आर्थिक रूप से तंग हालत में यहां के लोग हैं।
मैंने सोचा था कि इस सरकारी स्कूल को ऐसा बनाऊं की यह गरीबों को प्राइवेट स्कूल लगे। बच्चे यहां आकर अपने पेरेंट्स को यह नहीं कोसे की पैसे के अभाव में प्राइवेट स्कूल में नहीं पढ़ाया। उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में आर्थिक और सामाजिक समस्या आई। लेकिन मैं जूझता रहा और आज कोई समस्या नहीं है। सरकार द्वारा मिलने वाली राशि को इमानदारी पूर्वक खर्च किया। उन्होंने इच्छा जाहिर की कि यहां बच्चों के लिए कंप्यूटर की क्लास चले। बायोमेट्रिक तरीके से बच्चों का हाजिरी बने।