Monday, November 18, 2024
DalsinghsaraiSamastipur

दलसिंहसराय शिव का शिष्य होने के लिए किसी पारंपरिक औपचारिकता और दीक्षा की आवश्यकता नहीं: बरखा आनंद 

दलसिंहसराय के आर बी कॉलेज के मैदान में शिव शिष्य हरिंद्रानंद फाउंडेशन द्वारा एक दिवसीय शिव गुरु महोत्सव आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन आओ चले शिव की ओर व् महेश्वर शिव के गुरू स्वरूप से एक-एक व्यक्ति का शिष्य के रूप में जुड़ाव हो सके। इसी बात को सुनाने और समझाने के निमित्त किया गया। इस आयोजन में शामिल होने के लिए बिहार के कई जिलों से पहुंचे शिव शिष्यों का जन सैलाब उमड़ पड़ा।महोत्सव का शुभारंभ हर भोला जागरण धुन से किया गया। शिव शिष्यों ने भी भगवान शिव के गुरु स्वरूप की चर्चा की। वहीं कई गुरु भाइयों ने शिव चर्चा भजन सुनाकर शिव शिष्यों को मंत्र मुग्ध कर दिया।

 

 

 

सभी शिष्यों के लिए शिव शिष्य हरिंद्रानंद का संदेश दिया गया।

 

शिव शिष्य साहब हरिंद्रानंद के संदेश को लेकर आई कार्यक्रम की मुख्य वक्ता दीदी बरखा आनन्द ने कहा कि शिव केवल नाम के नहीं अपितु काम के गुरू हैं। शिव के औढरदानी स्वरूप से धन, धान्य, संतान, सम्पदा आदि प्राप्त करने का व्यापक प्रचलन है। उनके गुरू स्वरूप से ज्ञान भी क्यों नहीं प्राप्त किया जाए।

 

 

किसी संपत्ति या संपदा का उपयोग ज्ञान के अभाव में घातक हो सकता है। दीदी बरखा आनन्द ने कहा कि शिव जगतगुरू हैं।

अतएव जगत का एक-एक व्यक्ति चाहे वह किसी धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग का हो शिव को अपना गुरू बना सकता है। शिव का शिष्य होने के लिए किसी पारंपरिक औपचारिकता और दीक्षा की आवश्यकता नहीं है। केवल यह विचार कि “शिव मेरे गुरु हैं ” शिव की शिष्यता की स्वमेव शुरुआत करता है।

इसी विचार का स्थायी होना हमको आपको शिव का शिष्य बनाता है।

 

 

उन्होंने अपने वाणी में कहा कि आप सभी को ज्ञात है कि शिव शिष्य साहब हरिंद्रानंद ने 1974 में शिव को अपना गुरु माना। 1980 के दशक तक आते-आते शिव की शिष्यता की अवधारणा भारत भूखण्ड के विभिन्न स्थानों पर व्यापक तौर पर फैलती चली गई। शिव शिष्य साहब हरिंद्रानंद और उनकी धर्मपत्नी दीदी नीलम आनंद द्वारा जाति, धर्म, लिंग, वर्ण, सम्प्रदाय आदि से परे मानव मात्र को भगवान शिव के स्वरूप से जुड़ने का आह्वान किया गया। मौके पर दलसिंहसराय के सभी शिव गुरु बहना मौजूद थे।

Kunal Gupta
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