समस्तीपुर;मिथिलांचल के लोकपर्व सामा चकेवा की भीड़ 80- 500 रुपए तक कीमत मे मिल रही
समस्तीपुर में छठ पर्व के बाद मिथिलांचल इलाकों में सोमवार से लोकपर्व सामा-चकेवा शुरू हो गया है हुआ। पर्व को लेकर सोमवार देर रात तक शहर के जितवारपुर हसनपुर में प्रजापति समाज के यहां सामा-चकेवा की मूर्ति खरीदारी के लिए भीड़ जुटी रही। कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले इस पर्व को लेकर महिलाओं में गजब का उत्साह देखा गया। सामा चकेवा की मूर्ति 80-500 रुपए तक बिक रहा था।
बहनें अपने भाई के दीर्घ आयु की करती हैं कामना
इस पर्व के दौरान अब प्रत्येक दिन शाम ढ़लते ही घरों की महिलाएं सामा-चकेवा की गीत गाती हैं। पूर्णिमा के दिन खेत में मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। रक्षाबंधन और भैया दूज की तरह सामा चकेवा भी भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक पर्व है। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ ही उम्रदराज महिला साथ-साथ उल्लास से मनाती है। इस पर्व की खास बात यह है कि जहां बहनें अपने भाई के दीर्घ आयु की कामना करती है। वहीं इसके गीत पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया जाता है।
पुराणों में भी है इसकी चर्चा
लोकपर्व सामा-चकेवा का उल्लेख पद्म पुराण में भी है। पंडित पवन मिश्रा बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्री सामा और पुत्र साम्ब के पवित्र प्रेम पर आधारित है। चुड़क नामक एक चुगलबाज ने एक बार श्रीकृष्ण से यह चुगली कर दी कि उनकी पुत्री साम्बवती वृंदावन जाने के क्रम में एक ऋषि के संग प्रेमालाप कर रही थी। क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री और उस ऋषि को शाप देकर मैना बना दिया। साम्बवती के वियोग में उसका पति चक्रवाक भी मैना बन गया। यह सब जानने के बाद साम्बवती के भाई साम्ब ने घोर तपस्या कर श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया और अपने बहन और जीजा को श्राप से मुक्त कराया। तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है।
सात दिनों तक चलता है यह त्योहार
7 दिनों तक बहने भाई की खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं। इस पर्व में बहनें पारंपरिक गीत गाती हैं। सामा-चकेवा व चुगला की कथा को गीतों के रूप में प्रस्तुत करती हैं। आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ सामा चकेवा का विसर्जन हो जाता है।
शिल्पकारों ने कहा- मूर्ति बनाने का फायदा नहीं
शिल्पकार मनोज कुमार पंडित ने कहा कि महंगाई बढ़ रही है। लेकिन मूर्तियों के दाम नहीं बढे। इस वर्ष पिछले वर्ष की तहत ही 80- 500 रुपए तक में सामा-चकेबा की मूर्ति बिकी। अब इस कारोबार में फायदा नहीं हो रहा है। लेकिन लोक आस्था का पर्व होने के कारण वह इसका निर्माण करते हैं।