CM फेस की रेस में गिरिराज सिंह ने नित्यानंद राय के सामने सम्राट चौधरी को क्यों खड़ा कर दिया?
देश की नजर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उस मुहिम पर है जो बीजेपी विरोधी दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रही है। 2024 से आगे की फिलहाल कोई सोच नहीं रहा है। लेकिन बिहार में बीजेपी के नेताओं की नजर इस पर है कि 2025 में राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो राज्य का मुख्यमंत्री कौन बनेगा। बिहार बीजेपी के नए अध्यक्ष सम्राट चौधरी का 2 मई को केंद्रीय मंत्री और फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह के लोकसभा क्षेत्र बेगूसराय में स्वागत कार्यक्रम था। नारे लग गए- सम्राट चौधरी, बिहार का मुख्यमंत्री।
नारा किसी कार्यकर्ता ने नहीं लगाया। नारा मंच पर बैठे किसी तीसरी और चौथी पंक्ति के नेता ने भी नहीं लगवाया। नारा खुद गिरिराज सिंह ने लगवाया। बोले- “सम्राट चौधरी जिस दिन से अध्यक्ष बने हैं। नारे लग रहे हैं। सम्राट चौधरी, बिहार का…” इसके बाद उन्होंने सभा में मौजूद लोगों की तरफ इशारा किया और नीचे से पहले धीमे और बाद में तेज जवाबी नारा आया- मुख्यमंत्री। फिर उन्होंने यह भी कहा कि मैंने नहीं कहा। सम्राट चौधरी के बोलने की बारी आई तो उन्होंने इस नारेबाजी पर सिर्फ इतना कहा कि भाजपा अपने मंडल अध्यक्ष को भी मुख्यमंत्री बना दे तो वो भी नीतीश कुमार से अच्छा काम करेगा।
बिहार में भाजपा सरकार में शामिल रही है लेकिन अपना मुख्यमंत्री बनाना अब तक उसकी टू डू लिस्ट में है। भाजपा की बिहार में सरकार बनेगी या नहीं बनेगी ये तो चुनाव तय करेंगे लेकिन केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय 2015 के विधानसभा चुनाव से ही पार्टी के सीएम कैंडिडेट समझे जाते रहे हैं। सुशील कुमार मोदी का नाम लेने वाले संगठन में एक तो कमजोर और दूसरे कम हो गए हैं लेकिन वो लंबे समय से सीएम-इन-वेटिंग हैं। आरजेडी से करियर शुरू करने वाले सम्राट चौधरी को बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो यही कहा गया कि नीतीश और उनके लव-कुश वोट बैंक पर आक्रामक हमला करने के लिए भाजपा ने एक कुशवाहा को कमान सौंपी है।
भूमिहार जाति के बड़े नेता गिरिराज सिंह का सम्राट चौधरी के लिए मुख्यमंत्री का नारा लगवाने से बाकी कुछ हुआ ना हुआ, ये जरूर हो गया है कि सम्राट चौधरी को अपने अध्यक्ष कार्यकाल के शुरुआती दिनों में ही पार्टी के राज्य में सबसे मजबूत नेता नित्यानंद राय के सामने चाहे-अनचाहे खड़ा कर दिया गया है। बिहार भाजपा में गुटबाजी हमेशा रही है। कैलाशपति मिश्र के जमाने में सीपी ठाकुर, सुशील मोदी, नंद किशोर यादव, अश्विनी चौबे का गुट हुआ करता था। समय बदला तो नित्यानंद राय का गुट बन गया। सम्राट चौधरी का इस समय कोई गुट नहीं है। लेकिन सीएम पद पर सम्राट चौधरी की दावेदारी की जो नींव बेगूसराय में रखी गई है, उसकी चोट नित्यानंद राय को भी लगेगी।
सवाल है कि कभी खुद को सीएम की रेस में मानने वाले गिरिराज सिंह ने सम्राट चौधरी का नाम मुख्यमंत्री कैंडिडेट के तौर पर क्यों उछाला। इसका कोई सीधा जवाब नहीं है। यहां-वहां की चीजें और बातें जोड़कर ही समझा जा सकता है कि भूमिहारों के गढ़ में एक भूमिहार नेता किसी पिछड़े को सीएम बनवाने का नारा क्यों लगवा सकता है। 2025 के चुनाव में देर है। उससे पहले 2024 का चुनाव है। बिहार में बीजेपी के कम से कम 8 सांसद ऐसे हैं जो अगले साल 70 की उम्र पार कर जाएंगे। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दौर में बने नियमों से एक उम्र के बाद टिकट मिलने की संभावना खत्म नहीं तो कम जरूर हो जाती है।
गिरिराज सिंह इस समय 70 हैं और अगले साल 71 के हो जाएंगे। भाजपा संगठन वाली पार्टी है जिसमें प्रदेश अध्यक्ष का पद बहुत ताकतवर और प्रभावशाली होता है। फिर से लोकसभा चुनाव का टिकट मिले इसके लिए 70 पार वाले नेता संगठन की मजबूत सिफारिश की जरूरत महसूस करेंगे। 70 प्लस वाले नेताओं के सामने सम्राट चौधरी की सबसे बड़ी उपयोगिता एक तो ये है। गिरिराज सिंह केंद्रीय नेतृत्व के भी दुलारे हैं इसलिए उनको दिल्ली से भी टिकट मिल सकता है लेकिन संगठन की रिपोर्ट, लिस्ट में सब ठीक रहे ये काम भी दुरुस्त रखना चुनावी दावेदारी के मौसम में एक चुनौती होती है। गिरिराज सिंह वैसे भी बेगूसराय के ही राकेश सिन्हा की दावेदारी से परेशान हैं।
गिरिराज सिंह और नित्यानंद राय का आपसी समीकरण भी गिरिराज को सम्राट चौधरी की तरफ ले गया है। नित्यानंद सिंह केंद्र की राजनीति में काफी मजबूत हैं और केंद्र में रहकर गिरिराज सिंह बखूबी ये जानते हैं। सम्राट चौधरी उस हिसाब से नए हैं और कमजोर भी हैं। नित्यानंद राय को केंद्रीय नेतृत्व के सामने गिरिराज सिंह की मदद की जरूरत नहीं है। सम्राट चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बनने से आरएसएस बैकग्राउंड वाले बीजेपी नेता बहुत खुश नहीं हैं। गिरिराज सिंह भी आरएसएस बैकग्राउंड वाले नेता हैं। तो यह कहा जा सकता है कि सम्राट चौधरी के यहां गिरिराज की पूछ है इसलिए गिरिराज भी उनको पूछ रहे हैं।