Monday, October 7, 2024
BusinessNew Delhi

भारत में Apple का पहला स्टोर मुंबई में खुला,Apple Store में जो कुछ है कभी देखा नहीं होगा!

भारत में Apple का पहला स्टोर (Apple BKC) मुंबई में आज यानी 18 अप्रेल 2023 को ओपन (Apple Store In India) होने जा रहा है. मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉमप्लेक्स में खुलने वाले इस स्टोर का फीता काटने के लिए खुद CEO Tim Cook भारत आए हुए हैं. कंपनी इसके साथ दिल्ली में भी ऐसा ही स्टोर ओपन करने जा रही है. दिल्ली के साकेत (Apple Saket) में 20 अप्रेल 2023 से स्टोर पब्लिक के लिए खुल जाएगा. दोनों ही स्टोर को इस तरह से डिजाइन किया गया है, जिससे उस शहर की पहचान की एक झलक मिले. इसके साथ और भी बहुत कुछ है. सबकुछ विस्तार से जानते हैं.

Reliance Jio World Drive mall में ओपन हो रहा स्टोर 20,800 स्क्वेर फीट में फैला हुआ है. मुंबई स्टोर को लोकल फील देने के लिए वहां की मशहूर काली-पीली टैक्सी थीम पर बनाया गया है. मुंबई का ये ऐप्पल स्टोर दुनिया के सबसे एनर्जी इफिशिएंट ऐप्पल स्टोर में से एक है. ये पूरा ऐप्पल स्टोर सोलर एनर्जी से चलेगा और इसके लिए कंपनी ने सोलर पैनल्स का यूज किया है. स्टोर में किसी भी तरीके से फॉसिल फ़्यूल का इस्तेमाल नहीं होगा. कंपनी के मुताबिक, स्टोर पूरी तरह से कार्बन न्यूट्रल है.

Apple BKC स्टोर में 100 कर्मचारी काम करेंगे जो हिंदी-इंग्लिश सहित कुल 20 भाषाओं में बातचीत कर सकेंगे. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कुल स्टाफ में 50 प्रतिशत कर्मचारी फीमेल हैं. ऐप्पल के ऑनलाइन स्टोर के जैसे यहां भी यूजर्स को ट्रेड इन प्रोग्राम का ऑप्शन मिलेगा. कहने का मतलब, आप अपने पुराने डिवाइस को एक्सचेंज करके नया डिवाइस खरीद सकेंगे.

स्टोर के अंदर भी देशी टच
Apple BKC स्टोर की छत को हाथ से बनी हुई टिंबर टाइल्स से सजाया गया है. इसके साथ ही दीवारों को राजस्थान से लाए गए स्टोन से देशी लुक दिया गया है. डिजाइन और सर्विस से इतर स्टोर का सबसे बड़ा आकर्षण यहां मिलने वाले प्रोडक्टस हैं. ऐप्पल स्टोर पर कंपनी के हर प्रोडक्ट का लाइव डिस्प्ले मिलेगा. इसके साथ वो प्रोडक्ट भी देखने को मिलेंगे, जो अभी तक इंडिया में नहीं मिलते हैं. अब कुछ और बातें जानते हैं.

एक खास बात और. ऐप्पल स्टोर के आसपास टेक से जुड़ी कोई भी कंपनी जैसे एमेजॉन, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, सैमसंग इत्यादि का स्टोर या आउटलेट नहीं हो सकता है. किसी भी देश में स्टोर ओपन करने की ये पहली शर्त है.

क्यूआर कोड कितने काम का है ये अब शायद बताने की जरूरत नहीं. डिजिटल होते इंडिया की एक सीढ़ी तो क्यूआर कोड ही है. फट से मोबाइल निकाला और झट से पेमेंट हो गया. इसके अलावा क्यूआर कोड कहां-कहां इस्तेमाल हो सकता है वो भी हमने आपको डिटेलमें बताया है. लेकिन मेरे दिमाग में ख्याल आया कि आखिर क्यूआर कोड आया कहां से. दूसरा आड़ा-तिरछा होने पर भी फटाक से स्कैन कैसे कर लेता है. जानकारी हैरान करने वाली है क्योंकि क्यूआर कोड का कनेक्शन टोयोटा कंपनी से है. सोचा आपसे भी साझा कर लूं कार और क्यूआर के इस जोड़ को.

क्यूआर कोड और जापान
साल 1994 में DENSO WAVE नाम की कंपनी ने सबसे पहले क्यूआरकोड का इस्तेमाल करना चालू किया. DENSO WAVE मशहूर जापानी कार निर्माता टोयोटा की एक सहायक कंपनी है. हालांकि पहले-पहल क्यूआर कोड का टोयोटा से कोई सीधा कनेक्शन नहीं था, लेकिन आगे चलकर ये कनेक्शन जुड़ा और क्यूआर कोड को लोकप्रिय बनाने में इसका अहम रोल रहा. पहले कोड की कहानी जानते हैं.

क्यूआर कोड मतलब कंप्यूटरी भाषा में लिखे गए Machine Readable Label. इनके अंदर बहुत सारी जानकारी डाली जा सकती है और इनको स्कैन करने के लिए किसी विशेष मशीन की भी जरूरत नहीं होती. ये सब हुआ साल 1994 में. लेकिन DENSO WAVE काफी पहले से ही बार कोड बना रही थी. बार कोड काम का तो था लेकिन इसका इस्तेमाल बहुत सीमित था. एक तो उसको स्कैन करने के लिए एकदम सटीक एंगल की जरूरत पड़ती थी, दूसरा बार कोड सिर्फ 20 अल्फान्यूमेरिक कैरेक्टर (जानकारी) स्टोर कर सकता था. ऐसे में पब्लिक डिमांड पर कंपनी के डेवलपमेंट हेड Masahiro Hara ने क्यूआर कोड बनाया. असल में कहें तो रिसर्च करके बार कोड में बदलाव किये.

जहां बार कोड सिर्फ एक डायरेक्शन (One D) में काम करता था वहीं क्यूआर कोड दो डायरेक्शन (2D) में काम कर सकता था. कोड को बहुत जल्दी पढ़ने के लिए इसमें तीन कोनों पर जरूरी जानकारी डाली गई. कोड में ब्लैक और व्हाइट डॉटस के बैलेंस को एकदम सटीक रखने के लिए 1:1:3:1:1 का अनुपात चुना गया. ऐसा करने से कोड को लगभग 360 डिग्री का एरिया कवर करने के लिए मिला. इसके साथ इसमें 20 की जगह 7 हजार जानकारियां भी एक साथ स्टोर हो सकती थीं.

यहां मुझे अपने पहले ख्याल का जवाब मिला. माने कि कोड की डिजाइन की वजह से तीनों कोनों पर मौजूद स्क्वेर, स्कैन करने वाली डिवाइस को संकेत देते हैं कि कोड सीधा किधर से है भले डिवाइस आड़ा-तिरछा क्यों ना हो. आज तो तकनीक इतनी आगे आ चुकी है कि क्यूआर कोड भी कई किस्म के हो गए हैं जैसे माइक्रो क्यूआर, फ्रेम क्यूआर, आदि. लेकिन बेसिक आज भी वही है. अब चलते हैं मेरे पहले ख्याल पर.

क्यूआर कोड और टोयोटा
Masahiro Hara ने क्यूआर कोड बना तो लिया, लेकिन उनको भरोसा नहीं था कि इसका उपयोग होगा या नहीं. इसलिए उन्होंने वाहनों और वाहन के तमाम कल-पुर्जों को ट्रेक करने के लिए इनका इस्तेमाल करना शुरू किया. टोयोटा के बाद जल्द ही आटो इंडस्ट्री ने क्यूआर कोड को हाथों-हाथ लिया और साल 2002 तक जापान में हर जगह इसका खूब इस्तेमाल होने लगा. हालांकि DENSO WAVE ने एक अच्छा काम और किया था. कंपनी ने साल 1994 में ही इस तकनीक को पूरी दुनिया के लिए रिलीज कर दिया था जबकि वो चाहती तो पेटेंट अपने पास रख सकती थी. सोर्स:द ललान टॉप।

Kunal Gupta
error: Content is protected !!