अति कुपोषित बच्चों की हुई पहचान, दिया गया उचित परामर्श
भभुआ/ 27 मार्च- विगत 4 वर्षों से प्रत्येक वर्ष मार्च माह में पोषण पखवाड़ा का आयोजन किया जाता है. पोषण पखवाड़ा के दौरान समग्र रूप से व्यक्तिगत एवं सामुदायिक स्तर पर व्यव्हार परिवर्तन के माध्यम से गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं, किशोरियों एवं 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के पोषण स्तर में अपेक्षित सुधार लाने के उद्देश्य से जन भागीदारी से गतिविधियों का आयोजन कर जन-आन्दोलन का रूप देने का प्रयास किया जाता है. इस वर्ष पोषण पखवाड़ा का थीम स्थानीय तौर पर उपजाए जाने वाले श्री अन्न जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, चीन आदि के स्वास्थ्य लाभों और कठोर जलवायु की परिस्थितियों में श्री अन्न की खेती की उपयुक्तता के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना है.
निर्धारित कैलेंडर के मुताबिक हो रहा गतिविधियों का आयोजन:
प्रभारी जिला प्रोग्राम पदाधिकारी, आईसीडीएस, कुमारी सरिता ने बताया कि निदेशालय द्वारा प्राप्त तिथिवार निर्धारित गतिविधियों के हिसाब से जिले में पोषण पखवाड़ा के तहत प्रतिदिन गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है. आज आंगनवाड़ी केंद्रों पर बच्चों की वृद्धि निगरानी की जा रही है और अति कुपोषित बच्चों की पहचान की जा रही है. ऐसे बच्चों के अभिभावकों को उचित परामर्श के साथ पोषण के महत्त्व के बारे में जागरूक किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इसके अलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा गृह भ्रमण कर डायरिया के बारे में जागरूक किया जा रहा है. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता लाभार्थियों को पोषण के पांच सूत्र के बारे में जानकारी साझा कर रहीं हैं. साथ ही दीवाल लेखन के माध्यम से समुदाय में पोषण का संदेश प्रसारित किया जा रहा है.
हाथों की स्वच्छता के बारे में दी गयी जानकारी:
कुमारी सरिता ने बताया कि आज सभी आंगनवाड़ी केंद्रों पर बच्चों एवं अन्य लाभार्थियों को हाथों की स्वच्छता की महत्ता के बारे में जानकारी दी गयी. बच्चों एवं उनके अभिभावकों को सही तरीके से हाथ धोने की जानकारी दी गयी. उन्होंने बताया कि गंदे हाथों से भोजन करना बच्चों में डायरिया का सबसे प्रमुख कारण होता है. लाभार्थियों को बताया गया कि भोजन बनाने का स्थान एवं बर्तन स्वच्छ होने चाहिए तथा भोजन बनाने के पहले हाथों एवं बर्तन की अच्छी तरह से सफाई की जानी चाहिए.
यह हैं पोषण के पांच सूत्र:
कुपोषण पर लगाम लगाने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा पांच सूत्र बताये गए हैं-
पहले सुनहरे 1000 दिन ( गर्भावस्था की अवधि से लेकर बच्चे के जन्म से 2 साल तक की उम्र तक ), पौष्टिक आहार ( शिशु जन्म के एक घंटे के भीतर माँ का गाढ़ा पीला दूध बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. 6 माह के बाद बच्चे को स्तनपान के साथ ऊपरी आहार की काफी जरूरत होती है. घर का बना मसला एवं गाढ़ा भोजन ऊपरी आहार की शुरुआत के लिए जरूरी होता है ), एनीमिया प्रबंधन ( गर्भवती महिला को 180 दिन तक आयरन की एक लाल गोली खानी चाहिए. 10 वर्ष से 19 साल की किशोरियों को सप्ताह में सरकार द्वारा दी जाने वाली आयरन की एक नीली गोली का सेवन करना चाहिए. 6 माह से 59 माह के बच्चों को सप्ताह में दो बार 1 मिलीलीटर आयरन सिरप देनी चाहिए ), डायरिया प्रबंधन ( साफ-सफाई एवं स्वच्छ भोजन डायरिया से बचाव करता है. डायरिया होने पर लगातार ओआरएस का घोल एवं 14 दिन तक जिंक देना चाहिए ), स्वच्छता एवं साफ-सफाई ( साफ पानी एवं ताजा भोजन संक्रामक रोगों से बचाव करता है. घर में तथा घर के आस-पास सफाई रखनी चाहिए. इससे कई रोगों से बचा जा सकता है ).