कुशवाहा-चिराग-सहनी पर मेहरबान मोदी सरकार, सिक्योरिटी के सहारे बिहार में गठबंधन की श्योरिटी?
लोकसभा चुनाव में भले ही एक साल का वक्त बाकी हो, लेकिन बिहार में सियासी जोड़तोड़ और राजनीतिक बिसात अभी से ही बिछाई जाने लगी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के बाद अकेली पड़ी बीजेपी अपना कुनबा बढ़ाने की दिशा में कवायद तेज कर दी है. महागठबंधन से दो-दो हाथ करने के लिए बीजेपी की नजर ऐसे नेताओं पर है, जो पिछड़े या दलित वर्ग से आते हैं और नीतीश के खिलाफ मुखर है. उपेंद्र कुशवाहा से लेकर चिराग पासवान और मुकेश सहनी जैसे नेताओं को मोदी सरकार ने हाई प्रोफाइल सुरक्षा दी है. ऐसे में माना जा रहा है कि सिक्योरिटी के सहारे बीजेपी गठबंधन की श्योरिटी पाना चाहती है?
कुशवाहा-सहनी-चिराग को VIP सुरक्षा
जेडीयू से नाता तोड़कर राष्ट्रीय लोक जनता दल नाम से अपनी पार्टी बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा को केंद्र की मोदी सरकार ने वाई प्लस (Y+) कैटेगरी की सुरक्षा उपलब्ध कराई है. इसके तहत अब कुशवाहा की सुरक्षा में हर समय 11 जवान तैनात रहेंगे, जिसमें CRPF के चार कमांडो और बाकी पुलिस कर्मी शामिल होते हैं. उपेंद्र कुशवाहा की तरह बीजेपी ने बिहार के ओबीसी नेता और वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को वाई प्लस (Y+) सुरक्षा दे रखी है. ऐसे ही लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान को जेड (Z) कैटेगरी की सुरक्षा प्रदान की है.
उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी और चिराग पासवान तीनों ही नेता कभी एनडीए के साथ रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार की एंट्री के बाद एक-एक कर दूर होते गए. अगस्त 2022 में नीतीश कुमार महागठबंधन में वापसी करने के बाद बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव आया है.
महागठबंधन में जेडीयू से लेकर आरजेडी, कांग्रेस, वामपंथी दल और मांझी की पार्टी HAM सहित करीब सात दल शामिल हैं जबकि बीजेपी के साथ सहयोगी दल के तौर पर फिलहाल पशुपति पारस की पार्टी एलजेपी है. इस आधार पर बीजेपी के लिए महागठबंधन से मुकाबला करने की बड़ी चुनौती है.
वहीं, उपेंद्र कुशवाहा अब जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली है जबकि रामविलास पासवान की लोजपा के दो धड़ों में बट जाने के बाद चिराग पासवान के सामने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को बचाए रखने की चुनौती. मुकेश सहनी भी अलग-थलग पड़े हुए हैं. इन तीनों ही नेताओं में एक बात समान है कि ये सभी फिलहाल नीतीश कुमार के खिलाफ गरम तो बीजेपी के प्रति नरम रुख अपना रखे हैं.
केंद्र की मोदी सरकार ने कुशवाहा से लेकर चिराग पासवान और मुकेश सहनी पर मेहरबान नजर आर रही है और उन्हें वाई प्लस और जेड कटेगरी जैसी वीआईपी सुरक्षा प्रदान किया है. इसे राजनीतिक विश्लेषक सियासी चश्मे से देख रहे हैं. उनका कहना है कि नीतीश कुमार के अलग होने के बाद से बीजेपी लगातार उनकी काट तलाशने में जुटी है. इसी मद्देनजर चिराग पासवान, मुकेश सहनी और अब उपेंद्र कुशवाहा को सुरक्षा दी गई है. इस कड़ी में बीजेपी की नजर जीतनराम मांझी पर भी है, जो फिलहाल महागठबंधन के साथ हैं.
दरअसल, बीजेपी 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह ही बिहार में सियासी बिसात बिछाने की कवायद कर रही है. बीजेपी ने 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडिडेट का चेहरा बनाया था तो जेडीयू अलग हो गई थी. ऐसे में बीजेपी ने कुशवाहा की आरएलएसपी और रामविलास पासवान की एलजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी गठबंधन 31 सीटें जीतने में कामयाब रहा था. बीजेपी 22, एलजेपी 6 और कुशवाहा के 3 सांसद जीतकर आए थे. जेडीयू को महज 2 सीटें मिली थी, आरजेडी 4, कांग्रेस 2 और एनसीपी ने एक सीट जीती थी.
2014 के फॉर्मूल से 2024 की जंग
बीजेपी बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 2014 वाले फॉर्मूले को अमलीजामा पहनाने में जुटी है. उपेंद्र कुशवाहा इन दिनों बिहार में ‘विरासत बचाओ नमन यात्रा’ निकाल रहे हैं. मोदी सरकार ने उन्हें वाई-प्लस श्रेणी की सुरक्षा देकर बड़ा सियासी दांव चला है. इसी तरह से मुकेश सहनी और चिराग पासवान को भी साधने की कवायद की है. कुशवाहा बिहार में कोइरी समुदाय से आते हैं तो मुकेश सहनी मल्लाह जाति से हैं. ये दोनों ही ओबीसी समुदाय में आतें है और नीतीश कुमार के कोर वोटबैंक माने जाते हैं.
चिराग पासवान बिहार में दलित समुदाय से आते हैं और उनके पिता रामविलास पासवान बिहार के दलित समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहे हैं. हालांकि, रामविलास पासवान के बाद लोजपा दो गुटों में बंट गई है. चिराग पासवान के खिलाफ उनके चाचा पशुपति पारस ने बगावत कर पार्टी के सभी सांसदों को अपने साथ मिला लिया था, पर चिराग की तरह उनका जनाधार नहीं है. चिराग बिहार में दलित वोटर खासकर पासवान जाति के बड़े नेता हैं. यह उन्होंने मोकामा, गोपालगंज और कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में साबित किया है.
कास्ट कांबिनेशन पर बीजेपी का फोकस
2024 के चुनाव में नीतीश कुमार के अगुवाई वाले महागठबंधन से मुकाबला करने के लिए बीजेपी एक मजबूत गठबंधन को बनाने का सियासी तानाबाना बुन रही है. बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स आज भी हावी है, जिसके चलते बीजेपी ने कास्ट कांबिनेशन पर ही अपना फोकस कर रखा है. ऐसे में वह नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रमक तरीके से मोर्चा खोलने वाले उपेंद्र कुशवाहा से लेकर चिराग पासवान और मुकेश सहनी जैसे नेताओं को अपने पाले में लाने की कवायद कर रही है.
बिहार में दलितों का जाति समीकरण
वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी बिहार में मल्लाह जाति के बड़े नेता हैं. वह भले ही अपने दम पर 1 सीट पर भी जीत दर्ज नहीं कर पाए, लेकिन साथ आने के बाद कमाल कर सकते हैं. बिहार में निषाद जाति की आबादी करीब 3-4 फीसदी है. बिहार में 5 लोकसभा सीटों पर निषादों का सीधा प्रभाव है. इसी तरह से उपेंद्र कुशवाहा का 13 से 14 जिलों में प्रभाव है और वोट के हिसाब से प्रदेश में कुशवाहा की करीब 5 से 6 फीसदी आबादी है. पासवान समाज दलित में आता है और प्रदेश में उसकी करीब 4.2 फीसदी हिस्सेदारी है. इस तरह मांझी समुदाय की आबादी भी करीब 4 फीसदी है.
बीजेपी बिहार में ओबीसी और दलित जातियों के नेताओं को मिलाकर एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने की कोशिशों में जुटी है. हालांकि, 2014 के चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू और राजद अलग-अलग चुनाव लड़ी थी, लेकिन इस बार ये दोनों एक हैं और उनके साथ कांग्रेस व लेफ्ट पार्टियां भी है. 2015 के चुनाव में नीतीश के अगुवाई में जेडीयू-राजद-कांग्रेस के गठबंधन के आगे बीजेपी की एक नहीं चली थी. इन सात सालों में बिहार के राजनीतिक समीकरण बदले हैं. नीतीश पहले की तुलना में कमजोर हुए हैं. ऐसे में बीजेपी 2014 वाले गठबंधन के फॉर्मूले को फिर से अमलीजामा पहनाकर चुनावी मैदान में उतरने की कवायद में है. देखना है कि इस बार यह प्रयोग कितना सफल होता है?