इंटरनेशनल अवार्ड 2022 से नवाजी गई मेघा श्रीवास्तव, जानें कैसा रहा सफर
रांची : झारखंड की रहने वाली मेघा श्रीवास्तव इंटरनेशनल अवार्ड 2022 से नवाजी गई है. दरअसल, बता दें कि मेघा रांची के एक बैंक में काम करती है और उन्होंने लिखने का बहुत शौक है. हाल ही में उन्होंने एक आर्टिकल लिखा जिसका नाम ‘सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग’ के नाम से छपा था. जब यह आर्टिकल छपा तो उनकी प्रशंसा जोर शोर से हुई. नई पहचान के साथ उन्होंने नया सफर शुरू किया और देशभर के बड़े-बड़े किताबों के संस्थाओं ने संपर्क करना शुरू किया. इन संस्थानों के माध्यम से उन्हें लिखने का एक रास्ता मिल गया.
संघर्ष के सफर पर परिवार का मिला साथ
मेघा श्रीवास्तव ने बताया कि संघर्ष से सफर पर वह बिलकुल अकेली थी. परिवार के साथ और प्यार ने उनको आगे बढ़ाने का काम किया. धीरे-धीरे उन्होंने अपने लेखन को सुधारने का कार्य किया. उसके बाद सफलता की नींव, बेटी, भाई बहन का अटूट प्यार, जिंदगी एक कश्मकश, पापा के लिए है क्या कहना वह तो है परिवार का गहना, जितना कठिन संघर्ष उतनी ही शानदार जीत जैसे कई आर्टिकल्स लिखे. लोगों के बीच इन आर्टिकल की खूब चर्चा बनी रही और उनका लेखन लोगों की पहली पसंद बनने लगा. उन्होंने बताया कि जब लोगों का प्यार मिलने लगा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. जब बेहतर शीर्षक छपने लगे तो उनकों ओएमजी बुक ऑफ रिकॉर्ड ने उनसे संपर्क किया और फिर लिखने की दुनिया में लगातार आगे बढ़ती चली गई.
इस किताब से मिली पहचान
बता दें कि मेघा को ओएमजी बुक रिकॉर्ड मिलने के बाद देश के नामी-गिरामी पब्लिकेशन ज्ञानवाणी के लिए श्री कृष्ण लीला नाम की एक किताब लिखी. जिसमें वह सह लेखक के रूप में चर्चित हुई. मेघा ने ब्राउन पेज जैसे बड़े पब्लिकेशन हाउस के लिए आवर फोर्स आवर प्राइड नाम की किताब लिखी जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में खूब हुई. इस किताब को लिखने के बाद उनका नाम इंटरनेशनल एजुकेशन अवार्ड में से जोड़ा गया. इसमें उनको बेहतर महिला लेखक का अवार्ड प्रदान किया गया.
रांची से शुरू हुआ मेघा का करियर
बता दें कि मेघा को बचपन से ही लिखने का शौक था और रांची में रहकर मेघा ने अपनी पढ़ाई पूरी की है. शुरूआथी करियर में उनकों कई संघर्ष के बीच रहना पढ़ा, उनके सामने लाख परेशानी थी लेकिन उनके लिखनमे का शौक कभी खत्म नहीं हुआ. मेघा श्रीवास्तव की मां पूनम कुमारी के अनुसार बता दें कि बेटी को इंटरनेशनल अवार्ड 2022 मिला है. इस अवार्ड के मिलने के बाद पूरा परिवार बेटी की उपलब्धि से खुश है. मेघा की मां ने समाज को संदेश देते हुए कहा कि झारखंड बिहार और अन्य पिछड़े राज्यों में बेटी और बेटे के बीच अंतर किए जा रहे है, अगर बेटियों को पढ़ाने की इच्छा लोगों ने कर ली तो देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है.