जिन महिलाओं ने कभी दहलीज तक पार नहीं की वे आज बनीं स्वावलंबन की देवी,सच हो रहे सपने..
मुजफ्फरपुर। सकरा के मंसूरपुर की शैल देवी की स्थिति चार साल पहले ऐसी नहीं थी। उनका कोई काम बिना कर्ज लिए नहीं होता था। शराब पीने से पति खो चुकीं शैल पर चार बच्चों का बोझ था। ऐसे में जीविका का साथ मिला तो किस्मत बदल गई। चाय-नाश्ते की दुकान खोल ली। मेहनत रंग लाई और स्वावलंबन की राह पर चल पड़ीं। आज एक हजार रुपये की रोज बचत हो रही। चारों बच्चे स्कूल जा रहे। कुछ ऐसी ही कहानी मीनापुर के रामनगर की रूबी देवी की भी है। ताड़ी बेचने वाले तीन बच्चों के पिता के साथ ब्याह दी गईं। रूबी के भी दो बच्चे हो गए। पति दूसरा काम करने को तैयार नहीं था। दबाव डाला तो घर छोड़कर चला गया। कम उम्र में पांच बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी ने रूबी को विचलित कर दिया, लेकिन जीविका टीम की मदद से उन्होंने किराने की दुकान खोली। अब अच्छे से परिवार चला रहीं।
महिलाएं अब स्वावलंबन की राह पर
कुछ ऐसी ही कहानी 1429 महिलाओं की है। घर की दहलीज तक सिमटी ये महिलाएं अब स्वावलंबन की राह पर हैं। इनकी उम्मीद बन रहीं जीविका की जिला कार्यक्रम प्रबंधक (डीपीएम) अनिशा और उनकी प्रशासनिक एवं प्रबंधन क्षमता। अब ये महिलाएं मरीजों को भोजन उपलब्ध कराने से लेकर उद्यम तक संभाल रही हैं। बेला लेदर पार्क में क्लस्टर से जुड़ीं 40 महिलाएं इसका उदाहरण हैं।
घर की रसोई का बढ़ता जा रहा कारवां
गांव की इन महिलाओं के पास होटल मैनेजमेंट की डिग्री नहीं है, मगर उनकी रसोई का कारवां बढ़ता जा रहा है। सदर अस्पताल से अभी 10 दीदियां रसोई से जुड़ी हैं। इससे जुड़ी दिव्या कहती हैं, अस्पताल में इसकी शुरुआत हो रही थी तो डीपीएम सुबह सात बजे पहुंच जाती थीं। स्वास्थ्य विभाग से समन्वय कर दीदियों को एक रास्ता बताया। पंचायत चुनाव में दीदी की रसोई का भोजन उपलब्ध कराया गया। अब जिले के तीन अनुसूचित जाति/जनजाति स्कूल और एसकेएमसीएच में यह रसोई चलेगी। इससे करीब 90 दीदियों को रोजगार मिलेगा। दीदियों की पहचान कर उन्हें सात दिनों का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
दो प्रखंडों में दीदी का बीटामिक्स
दीदियों के लिए महत्वपूर्ण कार्य में आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों के लिए पौष्टिक पेय बीटामिक्स का भी उत्पादन है। इसमें गेहूं, चावल, दाल व चीनी सहित अन्य पौष्टिक अनाज मिलाकर इसे बनाया जाता है। इसकी पिसाई के लिए आटा चक्की लगाई गई है। मुशहरी और बोचहां के केंद्रों को इसकी आपूर्ति की जा रही। दो दर्जन से अधिक दीदियां इससे जुड़ी हैं। मांग कम होने पर इसी चक्की में दीदियां गेहूं की पिसाई कर आमदनी करती हैं। अनिशा कहती हैं, महिलाओं में प्रबंधन का गुण जन्मजात होता। इसे बस तराशने की जरूरत होती। यही काम किया। डीडीसी आशुतोष द्विवेदी कहते हैं, विपरीत परिस्थितियों में रह रहीं महिलाओं के लिए उनका टीम वर्क बेहतर है। काम दिख भी रहा है।