Saturday, November 16, 2024
Patna

श्रावणी मेला:सावन में यहां बहती है दो गंगा, शिव और पार्वती वैद्यनाथ धाम और अजगवीनाथ धाम में विराजते हैं..

श्रावणी मेला : सावन का पावन मास शुरू होते ही उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर स्थित सुल्तानगंज के अजगबीनाथ धाम में बिहार और झारखंड के साथ देश के कोने-कोने से तथा नेपाल-भूटान से केसरिया वस्त्रधारी शिवभक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है, जहां से वे अपने कांवरों में गंगा का पवित्र जल लेकर देवघर स्थित द्वादश वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के पूजन की पैदल साधनायुक्त यात्रा पर निकल पड़ते हैं। वस्तुत: यह यात्रा है आस्था की डगर पर भक्ति की साधना की जिसका अभीष्ट है ‘शिवतत्त्व’ के ‘सत्त’ को प्राप्त करना।

अवकाशप्राप्त जनसंपर्क उपनिदेशक शिव शंकर सिंह पारिजात बताते हैं ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति अपने कांवर में उत्तरवाहिनी गंगा का जल लेकर बाबा वैद्यनाथ को अर्पित करता है, वह अश्वमेघ यज्ञ के बराबर के पुण्य का भागी बनता है। कहते हैं कि त्रेता युग में भगवान श्रीरामचंद्र ने सुल्तानगंज के जल से वैद्यनाथ महादेव का जलाभिषेक किया था। तभी से यहां से गंगाजल लेकर इसे बाबाधाम में चढ़ाने की परम्परा शुरू हुई है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में सभी देवी-देवता शयन में चले जाते हैं और सिर्फ भगवान भोलेशंकर ही गौरा पार्वती के संग वैद्यनाथ धाम और अजगबीनाथ धाम में विराजमान रहकर प्राणियों के कष्ट-कलेश हरते हैं। तभी तो श्रावणी मेले में शिव-कृपा की प्राप्ति हेतु शिवभक्तों का रेला उमड़ पड़ता है। और ऐसा लगता है मानों देवघर के साथ सुल्तानगंज व कांवरिया-पथ पर, अर्थात चारों ओर शिव की कृपा बरसती प्रतीत होती है।

यह शिव की कृपा नहीं तो और क्या कि सावन में सुल्तानगंज में दो-दो गंगा बहती है। एक तो ‘उत्तरवाहिनी गंगा’ जो अजगबी पहाड़ी, जिसपर शिवस्वरूप बाबा अजगबीनाथ विराजते हैं, के चरण पखारते हुए बंगाल की खाड़ी की ओर अपने अंतिम पड़ांव को जाती है, तो दूसरी ‘कांवर वाहिनी गंगा’ जो शिवभक्तों के कांवरों पर सवार होकर लचकती-मचलती वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर अर्पित होने देवघर को जाती है। सुल्तानगंज से लेकर देवघर तक के 105 कि.मी. लंबे कांवर-मार्ग पर पूरे श्रावण मास केसरिया वस्त्रधारी शिवभक्तों का दिन-रात अटूट सिलसिला जारी रहता है। इन हजारों-लाखों शिवभक्तों के कांवरों के जल-पात्रों में संयोजित गंगाजल को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि भक्ति की रसधार में बहती गंगा ने अपनी धारा बदलकर ‘कांवर वाहिनी’ बनकर देवनगरी देवघर की ओर मोड़ लिया। जाहिर है, ऐसा चमत्कार देवों के देव महादेव को छोड़ अन्य कोई नहीं कर सकता।

Kunal Gupta
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