स्नैक मैन;ये हैं बिहार के स्नेक मैन,लोगों के साथ-साथ सांपों का भी बचा रहे जीवन..
मुजफ्फरपुर। उत्तर बिहार में एक नहीं कई ऐसे लोग हैं, जो सांपों के मित्र हैं। उनके संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। लोग इन्हें स्नेक मैन कहते हैं। किसी के घर या अन्य जगह पर सांप निकलता है तो एक सूचना पर पहुंच जाते हैं। उन्हें पकड़कर जंगल में छोड़ देते हैं। लोगों से सांप को नहीं मारने की अपील करते हैं।
सर्पदंश से रक्षा का संकल्प
दरभंगा के जाले निवासी इशराफिल उनमें से एक हैं। लोग उन्हें सांपों का मित्र कहते हैं। बीते दो साल में वे 100 से अधिक विषैले सांपों को पकड़ चुके हैं। इनमें कोबरा, करैत, गेहुंअन जैसी विषैली प्रजाति के सांप शामिल हैं। सांप पकड़ने के लिए उन्हें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर और बेगूसराय तक से बुलाया जाता है। 23 वर्षीय इशराफिल स्नातक पास हैं। वह कहते हैं कि मुजफ्फरपुर में सांप काटने से लोगों के जीवन की रक्षा करनेवाले एक अस्पताल में काम करने के दौरान इसकी प्रेरणा मिली। विचार आया कि सांप से कैसे लोगों की रक्षा होगी और सांपों को भी कैसे सुरक्षित रखा जा सकेगा? फिर निकल पड़ा इस अभियान में। हालांकि, उन्हें इस बात का मलाल है कि वन विभाग की ओर से उन्हें इसके लिए किसी भी स्तर पर कोई मदद नहीं मिलती। यदि सहायता मिलती तो वो इस काम को बड़े पैमाने पर करते।
परिवार में झेलना पड़ा विरोध
इशराफिल किसान मो. मोईन और माता सबरुल निशा के पुत्र हैं। चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। परिवार में माता-पिता के अलावा तीनों भाई इनके इस काम का विरोध करते हैं। वजह यह कि एक तो सांपों को पकडऩे में जान का खतरा है और वन विभाग की ओर से कोई सहयोग भी नहीं मिलता। उनके पिता कहते हैं कि सरकार अथवा वन विभाग से कोई सहयोग नहीं मिलता। बेटा जिनके यहां सांप पकडऩे जाता है, वे ही थोड़ी आर्थिक मदद करते हैं। वे यदि मदद नहीं करते तो फिर यह काम भी आधा-अधूरा ही रहता। वन विभाग को ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इस तरह से इनका समायोजन करना चाहिए कि लोगों को सहूलियत हो और सांप पकड़ने वालों के स्वजन भी किसी अनहोनी की आशंका से नहीं डरें
सांपों के लिए मसीहा से कम नहीं शिवनाथ
समस्तीपुर के दलसिंहसराय के पगरा गांव के रहने वाले 20 वर्षीय शिवनाथ को लोग स्नेक मैन कहते हैं। ये सांपों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। वे अबतक दो हजार सांप को पकड़कर जंगल में छोड़ चुके हैं। पेशे से मोबाइल रिपेयरिंग का काम करने वाले शिवनाथ ने बताया कि 10 साल की उम्र में उनके बगान में एक बार सांप निकला था। मजदूर उन्हें मारने लगे थे, लेकिन मुझे लगा कि इस मासूम को क्यों मारा जाए? उसके बाद उसे भगा दिया। उसी दिन से सांपों को बचाने की एक जिज्ञासा मेरे मन में पनपने लगी। उसके बाद सांप पकडऩे का प्रशिक्षण लेकर उसे बचाने के प्रयास में जुट गया। जब भी किसी घर में या आसपास सांप निकलता है तो सूचना मिलने पर पकड़कर जंगल में छोड़ देते हैं। आसपास गांवों के लोग घरों में निकलने वाले सांपों को पकडऩे के लिए बुलाते हैं। उनका कहना है कि सांप पर्यावरण मित्र हैं। वे किसानों के भी मददगार हैं। खेत में चूहे खाकर फसल की रक्षा करने में मदद करते हैं।
इस तरह पकड़ते सांप
सांप बहुत ही फुर्तीला होता है, इसलिए पकड़ने में बहुत ही सावधानी की जरूरत होती है। इसके लिए एक लंबी व पतली वस्तु का इस्तेमाल किया जाता है। यह लोहे या लकड़ी का होता है। इसकी बनावट इस तरह रहती है कि सांप के फन को मोड़कर दबाया जा सके। इसके बाद उसे बैग या किसी बोरे में डाल दिया जाता है।