मिथिलांचल का एक ऐसा लोकपर्व,जिसमें यजमान व पुरोहित महिलाएं..
Madhushravani 2022 ।मधुबनी, {राजीव रंजन झा}। ‘आयल हे सखि सर्व सोहाओन, साओन केर महिनमा, ठांओ कयलहुं अरिपन देलहुं लीखल नाग नगिनियां…’ अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु होने की कामना के साथ मिथिलांचल का लोकपर्व मधुश्रावणी शुरू हो चुका है। 15 दिनों तक चलने वाला यह अनुष्ठान पूरी तरह महिलाओं पर केंद्रित है। इसमें यजमान भी महिलाएं हैं तो विधि विधान बताने से लेकर कथावाचन कर व्रत का माहात्म्य समझाने वाली पुरोहित भी। ये गांव-घर की बुजुर्ग महिलाएं होती हैं। महिला पुरोहित प्रतिदिन महादेव-पार्वती सहित कई अन्य देवी-देवताओं की कथा सुनाकर दांपत्य जीवन से जुड़ी विभिन्न पक्षों से नवविवाहिताओं को अवगत कराती हैं। महिला पुरोहित को विशेष रूप से घरों में आमंत्रित किया जाता है। महिला पुरोहित के नहीं मिलने पर घर की महिलाएं दादी, चाची, बुआ आदि पूजा करवाती हैं। अंतिम दिन दक्षिणा स्वरूप उन्हें अन्न, वस्त्र एवं रुपये दिए जाते हैं।
व्रत के नियमों और कथा वाचन में होतीं पारंगत
परंपरानुसार मधुश्रावणी की पूजा महिला पुरोहित ही कराती हैं। गांव-समाज की उम्रदराज महिलाएं, जिन्हें व्रत के विधि विधानों की पूरी जानकारी होती है, इस भूमिका को निभाती हैं। वह नवविवाहिताओं को अच्छी तरह दांपत्य जीवन का निर्वाह करने की सीख देती हैं। हालांकि धीरे धीरे बुजुर्ग महिला पुरोहितों की संख्या कम होती जा रही है। पुरोहित विशाखा देवी (65) कहती हैं 30 वर्षों से यह काम कर रही हूं। मेरी सास भी पुरोहित का काम करती थीं। रहिका की हेमलता देवी (68) ने कहा, अब शरीर साथ नहीं देता, इसलिए अपना विकल्प तैयार कर रही हूं। बदलते दौर में युवतियां भी पुरोहित का काम कर रही हैं। यह अच्छी बात है।
15 दिनों तक बिना नमक का भोजन करतीं ग्रहण
सावन की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से शुरू मधुश्रावणी पर्व 15 दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान नवविवाहिताएं मायके चली जाती हैं। वे 15 दिनों तक बिना नमक का भोजन ग्रहण करती हैं। उनके लिए ससुराल से फल, राशन और खाने की अन्य वस्तुएं भेजी जाती हैं। नवविवाहिताएं एक दिन पहले ही फूल लोढ़ी कर लेती हैं। पूजा में मैना और पान के पत्तों के अलावा दूध, लावा, सिंदूर, पिठार, काजल, सफेद, लाल व पीले फूलों का विशेष महत्व है। वे पति की अकाल मृत्यु एवं सर्प दोष से रक्षा के लिए यह पर्व करती हैं, इसलिए शिव-पार्वती संग जया, देव, दोतरी, नाग, नागेश्वरी की पूजा करती हैं।