बेगूसराय में 9 धुर के लिए बिक गई 10 बीघा जमीन, 55 साल बाद आया फैसला
बेगूसराय।मंझौल कोर्ट में जमीन विवाद से जुड़ा एक ऐतिहासिक फैसला 55 साल बाद आया। 9 धुर जमीन को लेकर 3 पुस्तों ने कोर्ट में केस लड़ा। जिसमें दोनों पक्षों के लगभग 10 बीघा जमीन बिक गई। कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को ही जारी रखा है। केस नम्बर मुंसिफ अपील 1/1980 था। यह टीएस नम्बर 83/71 के फैसले के विरोध में वादी द्वारा लाया गया था। यह मामला बेगूसराय जिला बनने से पहले 1971 में टीएस नंबर 83/71 के तहत दाखिल हुआ जमीन विवाद का मुकदमा था जो अब जाकर खत्म हुआ।
बसही पंचायत के भेलवा गाँव निवासी यदु यादव बनाम जगदीश यादव के वंशजों के बीच चल रहा था। जगदीश यादव के चार बेटे थे। तीन की मौत हो चुकी है। एक जीवित हैं। अब डेढ़ दर्जन पोते इस केस की लड़ाई लड़ रहे थे। विवाद 9 धुर जमीन को लेकर था। इस जमीन पर खेसरा संख्या 44, 45 और 88 भी चला था । केस लड़ने में दोनों पक्षों की 10 बीघा जमीन बिक गई। जगदीश यादव को यह जमीन उनके नाना से मिली थी। वे यहीं बस गए थे। उनके चचेरे मामू पहले से खेत जोत रहे थे। 1997 में जगदीश यादव का निधन हो गया। मुंशी यादव की मौत 2010 में हुई।
छलका दर्द बोले भगिनमान कहके टॉर्चर किया गया, सच्चाई की जीत हुई घूरन यादव ने दैनिक भास्कर को बताया कि उनके दादाजी के नाना की जमीन थी। उसी जमीन को लेकर गोतिया पक्ष ने झगड़ा खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि विपक्षी पक्ष कुछ लोगों के बहकावे में आकर विवाद करने लगे। यह कहकर की भगिनमान हो टॉर्चर करते हुए मामला कोर्ट तक पहुंचा दिया। उस समय घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। केस लड़ने के लिए जमीन तक बेचनी पड़ी। बाद में कमाई से केस को आगे बढ़ाया। घूरन यादव ने कहा कि हम लोग सच्चाई की लड़ाई लड़ रहे थे। इसलिए पीछे नहीं हटे। विपक्षियों ने जानबूझकर विवाद खड़ा किया।
मंटून यादव ने बताया कि जब उनके पूर्वजों ने घर बनाना शुरू किया, तभी पड़ोसियों ने जमीन पर अवैध दावा कर दिया। जमीन को विवादित बनाने के लिए कोर्ट में टाइटल सूट किया गया। यह मामला 44, 45 और 88 में भी चला। लेकिन अंत में जीत सच्चाई की हुई। परिवार के अन्य सदस्यों ने बताया कि विपक्षियों ने 9 धुर जमीन को अपना बताया। यह हमारे सम्मान की लड़ाई थी। यह फैसला हमारी बाकी जमीनों से भी जुड़ा हुआ है। यदु यादव ने 9 धुर जमीन के बाद बाकी जमीनों पर भी दावा किया। इसके खिलाफ लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। हम लोग शुरू से ही जमीन पर दखल काबिज हैं। हमारा कब्जा बना हुआ था।