“नहाय-खाय के साथ चैती छठ महापर्व की शुरुआत:भरणी नक्षत्र और रवियोग का बन रहा संयोग
पटना.बिहार में आज से नहाय-खाय के साथ चैती छठ महापर्व की शुरुआत हो रही है। 2 अप्रैल को खरना है। 3 को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। 4 को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही 4 दिन का महापर्व खत्म होगा।आज के दिन छठ व्रती गंगा में स्नान करने के बाद भगवान सूर्य की पूजा करेंगी। इसके बाद पवित्र जल से सात्विक रूप से बनाए जाने वाले कद्दू-भात का प्रसाद ग्रहण करेंगी। आज भरणी नक्षत्र और रवि योग का शुभ संयोग बन रहा है।
सीएम नीतीश कुमार ने प्रदेश वासियों को चैती छठ की बधाई दी है। उन्होंने कहा…
छठ आत्मानुशासन का पर्व है। इसमें लोग आत्मिक शुद्धि और निर्मल मन से अस्ताचलगामी और उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। चैती छठ लोगों के लिए सुख, समृद्धि एवं शांति लेकर आए।
नहाय-खाय में लहसुन-प्याज का नहीं होता इस्तेमाल
आचार्य राकेश झा ने बताया कि चैत्र शुक्ल चतुर्थी मंगलवार को भरणी नक्षत्र और रवि योग में महापर्व की शुरुआत हो रही है। छठ पर्व मुख्य रूप से भगवान भास्कर की उपासना का पर्व है।नहाय-खाय के दिन भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं होता है। इस दिन लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चटनी, पापड़, तिलौरी, आदि बनते हैं, जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इसका विशेष महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे पुत्र की प्राप्ति होती है। वहीं, वैज्ञानिक मान्यता है कि गर्भाशय मजबूत होता है।
कद्दू भात खाने का क्या महत्व है?
नहाय खाय के दिन छठ व्रत करने वाली महिलाएं सबसे पहले सुबह स्नान कर नए वस्त्र पहनती हैं। कद्दू यानी लौकी और भात यानी चावल का प्रसाद बनाती हैं। इस प्रसाद को खाने के बाद ही छठ व्रत की शुरुआत हो जाती है।
ऐसा माना जाता है कि मन, वचन, पेट और आत्मा की शुद्धि के लिए छठ व्रतियों का पूरे परिवार के साथ कद्दू-भात खाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अलावा कद्दू खाने के और भी बहुत सारे फायदे हैं। जैसे कि इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है। जिससे इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग होता है।
प्रसाद ग्रहण करने से दूर होते हैं कष्ट
2 अप्रैल बुधवार को कृत्तिका व रोहिणी नक्षत्र के युग्म संयोग और प्रीति योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग में व्रती पूरे दिन निराहार रहकर संध्या में खरना पूजा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी। खरना के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा। चैत्र शुक्ल षष्ठी 3 अप्रैल दिन गुरुवार को रोहिणी नक्षत्र व आयुष्मान योग में डूबते सूर्य को अर्घ्य तथा मृगशिरा नक्षत्र, शोभन योग व रवियोग में व्रती 4 अप्रैल शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूरे तप और निष्ठा के साथ इस महाव्रत को पूर्ण करेंगी।
36 घंटे तक निर्जला उपवास रखती हैं व्रती
छठ व्रत को काफी कठिन माना जाता है, क्योंकि व्रती महिलाएं और पुरुष करीब 36 घंटे तक निर्जला उपवास करते हैं। वैदिक मान्यताओं के अनुसार नहाय-खाय से छठ व्रतियों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है, जो श्रद्धा पूर्वक व्रत-उपासना करते हैं। इस पर्व को करने से संतान की प्राप्ति होती है। वहीं वैज्ञानिक मान्यता है कि गर्भाशय मजबूत होता है।