“नाबालिगों के आधारकार्ड पर निकालीं 12 सिम:डिजिटल अरेस्ट केस में गिरफ्तार, यूपी में बेचीं सिमें
भोपाल में टेलीकॉम इंजीनियर को डिजिटल अरेस्ट करने के केस में गिरफ्तार आरोपी से नई बात पता चली है। उसने 150 सिम दूसरे लोगों के आधारकार्ड पर निकालकर बेची हैं। 12 सिम तो नाबालिगों के नाम पर हैं। इसके लिए वह जगह-जगह कैम्प लगाकर आधारकार्ड अपडेट करने का काम करता था।
भोपाल शहर में बजरिया इलाके के गायत्री नगर में रहने वाले टेलीकॉम इंजीनियर प्रमोद कुमार (38) को साइबर क्रिमिनल्स ने 12 नवंबर को डिजिटल हाउस अरेस्ट कर लिया था।
इस केस में पहली गिरफ्तारी धीरेंद्र कुमार विश्वकर्मा की 28 नवंबर को हुई। पूछताछ में उसने बताया कि ई-केवाईसी (इलेक्ट्रॉनिक नो योर कस्टमर) के जरिए वह फर्जी तरीके से सिम इश्यू करा लेता था। कानपुर के दुर्गेश को 1 हजार रुपए में 1 सिम बेचा करता था। दुर्गेश ने उसे बता रखा था कि वह ऑनलाइन गेम खेलता है, इसके लिए उसे अलग-अलग सिम की जरूरत पड़ती है।बता दें, नाबालिगों के नाम से सिम इश्यू नहीं होती। पुलिस का कहना है कि इस बारे में पीओएस (पॉइंट ऑफ सेल) के संचालक से पूछताछ की जाएगी। सिम डिस्ट्रीब्यूटर से भी पूछताछ करेंगे। टेलीकॉम कंपनी को लेटर लिखकर जानकारी देंगे।
धीरेंद्र को भोपाल क्राइम ब्रांच ने महोबा (उत्तरप्रदेश) से गिरफ्तार किया था। दुर्गेश की तलाश में दो टीमें जुटी हुई हैं।
टेलीकॉम इंजीनियर प्रमोद कुमार (राइट) को बदमाश 6 घंटे तक डिजिटल हाउस अरेस्ट किए रहे थे। पुलिस ने पहुंचकर उन्हें छुड़ाया था। एडिशनल डीसीपी क्राइम ब्रांच शैलेंद्र सिंह चौहान (लेफ्ट) ने उनकी काउंसिलिंग कर बताया था कि डिजिटल अरेस्ट जैसा कुछ नहीं होता।
वीडियो कॉल पर धमकाने वालों की पहचान नहीं
टेलीकॉम इंजीनियर को वीडियो कॉल पर पुलिस की वर्दी में धमकाने वाले तीन में से एक आरोपी दुर्गेश के होने का पता चला है। दो आरोपियों की अभी पहचान नहीं हो सकी है। पुलिस का कहना है कि दुर्गेश की गिरफ्तारी के बाद गिरोह के दूसरे सदस्यों की जानकारी हो सकेगी। इसके बाद ही खुलासा होगा कि धीरेंद्र के जरिए बेची जा चुकीं 150 सिमों का इस्तेमाल कहां और कौन-कौन लोग कर रहे थे।
ऐसे आरोपी तक पहुंची पुलिस
पुलिस ने प्रमोद को कॉल पर धमकाने वाले डिवाइस का आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस ट्रेस किया था। इसकी लोकेशन कानपुर में मिली थी। फौरन भोपाल पुलिस ने कानपुर पुलिस को इनपुट दिया। हालांकि, इससे पहले ही कॉलर नंबर बंद कर अपनी लोकेशन को चेंज कर चुका था।
अगले दिन पुलिस की टीम कानपुर रवाना हुई। इसके पहले प्रमोद को धमकाने में इस्तेमाल सिम की जानकारी निकाली जा चुकी थी। यह विकास साहू के नाम पर रजिस्टर्ड थी। महोबा का एड्रेस था। टीम महोबा पहुंची और विकास को हिरासत में लिया।
विकास ने पूछताछ में बताया कि उसे ठगी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। हाल ही में उसने आधार को अपडेट कराया था। इसे गांव के धीरेंद्र ने अपडेट किया। धीरेंद्र कैम्प लगाकर गांव-गांव पहुंचकर आधार अपडेट करता है। शक होने पर पुलिस ने धीरेंद्र को हिरासत में लिया। इसके बाद फर्जीवाड़े का खुलासा हो गया।
फर्जी तरीके से ऐसे निकालता था सिम
आरोपी ग्रामीणों के आधारकार्ड को अपडेट करने के नाम पर ई-केवाईसी करता था। उनके नाम पर सिम कार्ड जारी करा लेता था। ई-केवाईसी एक डिजिटल प्रोसेस है। इसके जरिए फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन, बिजनेस, कस्टमर की पहचान और एड्रेस को आधार प्रमाणीकरण के जरिए इलेक्ट्रॉनिक रूप से वेरिफाइड करते हैं। इसमें भौतिक दस्तावेजों की जरूरत नहीं होती।