“घरों में पहुंचे भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक सामा-चकेवा, बहनें पूर्णिमा तक करेंगी गुणगान, जानिए सामा चकेवा के बारे मे..
समस्तीपुर।शिवाजीनगर.प्रखंड अंतर्गत 17 पंचायतों में बंधार , बल्लीपुर, करियन, रामभद्रपुर, दसौत, लक्ष्मीनिया, भटौरा, डुमरा मोहन, बाघोपुर, परशुराम, शिवाजीनगर, ठनका, रमौल समेत विभिन्न गांव में रक्षाबंधन की तरह ही भाई-बहन के अटूट प्रेम के रूप में मनाया जाने वाला सामा-चकेवा का खेल शुक्रवार की देर शाम से शुरू हो गया। यह त्योहार बड़ी श्रद्धा के साथ बहनें एक सप्ताह तक मनाएगी। बहनें इनका गुणगान पूर्णिमा तक हर शाम को करेंगी। बताया जाता है कि राज्य के मिथिलांचल में भाई-बहन के बीच प्रेम के प्रतीक के रूप में यह परंपरा समाज में आज भी निभाई जा रही है। छठ के पारण के साथ ही इनके साथ बहनों का प्रतीकात्मक खेल प्रारंभ हो गया।
इसे एक या दो-चार परिवार की महिलाओं व लड़कियों ने संयुक्त रूप से मिलकर खेलना आरंभ किया। इस दौरान भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक गीतों को गाकर सामां-चकेवा का भी गुणगान किया गया। महिलाओं ने बारी-बारी से अपने भाईयों का नाम लेकर गीत का सुर मिलाया। शिवाजीनगर प्रखंड के हबका, बल्लीपुर कुम्हार टोल के मूर्तिकारों के यहां इसे विशेष रूप से बनाया व बेचा गया। बताया जाता है कि पूर्णिमा के एक दिन पहले तक बहनें सामा चकेवा खरीदती हैं।
भाई-बहन के परंपरागत प्रेम प्रतीक खेल में सामा बहन व चकेवा भाई है। इनकी मूर्ति एक साथ बनाकर सदियों से भाई-बहन के अटूट प्रेम का संदेश दिया जाता है। वहीं इस बंधन को तोड़ने वाले को चुगला व चुगली के रूप में बनाया जाएगा। वहीं ”चुगला करे चुगली, बिलैया करे म्यांउ, चुगला के मुंह हम नोंची नोंची खाउं” गीत के अनुरूप उन्हें रोज थोड़ा-थोड़ा जलाकर संदेश दिया जाएगा कि भाई-बहन के प्रेम को तोड़ने वालों का बुरा हाल होगा।
पर्व में भाई की झोली भरने का है विशेष महत्व वहीं पूर्णिमा के दिन बहनें लड्डू, पेड़ा, बतासा, मूढ़ी व चूड़ा आदि से भाई की झोली भरती है। ग्रामीण बुजुर्गों का बताना है कि बहनें भाई की झोली भरकर उनके यहां हमेशा धन-धान्य भरे रहने की कामना करती हैं। वहीं भाई छोटी व बड़ी बहनों को बदले में पैसा या कपड़े देकर उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि उनकी खुशी व दुख में वे हमेशा उनके साथ रहेंगे। पूर्णिमा की शाम को सामां-चकेवा की मूर्ति को तालाब व नदी में विसर्जित किया जाएगा।