समस्तीपुर के दुर्गाबारी में बंगाली समाज ने किया धुनुची नाच:बंगाल जैसे दुर्गा पूजा का दिखा नजारा
समस्तीपुर.दुर्गा पूजा का जो नजारा बंगाल में देखने को मिलता है, वैसा शायद ही कहीं और देखने को मिले। लेकिन यह संभव कर दिखाया है समस्तीपुर के बहादुरपुर में बंगाली समाज द्वारा दुर्गाबारी में आयोजित पूजा के दौरान।
समस्तीपुर बंगाली समाज के लोगों ने बंगाल की संस्कृति को समस्तीपुर में उतार दिया। समाज के युवक और युवतियों द्वारा परंपरा का हिस्सा धुनुची नाच का आयोजन कर सबको अपनी ओर आकर्षित किया। दसवीं के दिन मूर्ति विसर्जन का आदेश नहीं मिलने के कारण शनिवार रात दुर्गाबारी के हाल में धुनुची डांस का आयोजन किया गया।
दुर्गा वाली पूजा समिति के सचिन राणा सरकार ने बताया कि बंगाली समाज के 100 युवक और युवतियों द्वारा इस परंपरागत डांस की प्रस्तुति की गई। जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भी जुटी। धुनुची डांस के दौरान लोगों को लगा वह बिहार के समस्तीपुर में नहीं अपितु बंगाल के किसी पूजा पंडाल में हैं। यहां महिलाओं के अलावा पुरुष ने भी इस डांस की प्रस्तुति दी।
क्या है धुनुची नाच?
यह नवरात्रों में दुर्गा पूजा पंडालों में महानवमी में किया जाने वाला नृत्य है, जिसकी शुरुआत सप्तमी से ही हो जाती है। महिलाओं से लेकर पुरुषों तक को यह नृत्य करते हुए देखा जा सकते है। धुनुची को आमतौर पर हाथों से पकड़कर नृत्य किया जाता है।
क्या है धुनुची नृत्य का महत्व?
दुर्गा पूजा के दौरान इस नृत्य की परंपरा आज से नहीं, बल्कि काफी पहले से चली आ रही है। माना जाता है कि धुनुची डांस असल में शक्ति का परिचायक है और इसका संबंध महिषासुर के वध से भी जुड़ा हुआ है। पुराणों में जिक्र है कि अति बलशाली महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने मां दुर्गा की पूजा- उपासना की थी और मां ने महिषासुर के वध से पहले अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए यही धुनुची नृत्य किया था। तब से लेकर आज तक यह परंपरा जारी है। पूजा पंडालों में सप्तमी से ये नृत्य शुरू हो जाता है
धुनुची नृत्य का संबंध शक्ति से है। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करने से पहले अपनी शक्तियों को और बढ़ाने के लिए धुनुची नृत्य किया था। तभी से इस नृत्य की शुरुआत हुई थी, जिसे भक्तजन आजतक करते आ रहे हैं। इसके अलावा, एक मान्यता ये भी है कि धुनुची में जलाई गई धूप और चावल देवी दुर्गा को प्रसन्न करते हैं