बिहार का ये शिल्पकार नए आइडीयाज को दे रहे आकार,बुलेट हो या कबाड़ बना रहा जुगाड़
Vishwakarma Puja:पटना.विश्वकर्मा पूजा हर साल सितंबर के महीने में 17 तारीख को मनायी जाती है. विश्वकर्मा पूजा के दिन वास्तुकार, शिल्पी, कालपुर्जे से संबंधित काम करने वाले लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं. कलयुग में सब कुछ कलपुर्जे से ही चलता है. हर घर में वाहन और मशीनरी होती है इसलिए अब विश्वकर्मा पूजा घर-घर में मनाया जाने लगा है. ऐसी मान्यता है कि इनकी कृपा से सभी कलपुर्जे सही से काम करते रहते हैं और शिल्पकारों की शिल्पकला उन्नत होती है. आज हम बात करेंगे कुछ वैसे शिल्पकारों की जो भले ही बड़े शैक्षणिक प्रमाणपत्रों से लैस न हों, लेकिन अपने हुनर और मेहनत से समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं.
पुरानी बाइक को जुगाड़ गाड़ी का रूप दे रहे गोलू
फतुहा प्रखंड के कल्याणपुर गांव निवासी गोलू कुमार विश्वकर्मा ने अपनी मेहनत और कौशल से पुरानी मोटरसाइकिलों से जुगाड़ु गाड़ियों को बनाते हैं. अब तक उन्होंने लगभग 500 से अधिक जुगाड़ गाड़ियां तैयार की हैं, जिनकी कीमत 30 से 60 हजार रुपये के बीच होती है. गोलू बताते हैं कि इन गाड़ियों के निर्माण में वे पुराने और गैर-कार्यशील मोटरसाइकिलों का उपयोग करते हैं, जिन्हें ठीक कर उनके पीछे ट्रॉली जोड़ते हैं. गोलू ने साल 2010 में 10वीं कक्षा पास की और इसके बाद अपने पिता स्व मोहन विश्वकर्मा के बंद पड़े वेल्डिंग की दुकान को संभाल लिया.
जुगाड़ गाड़ी बनाना उन्होंने सात साल पहले शुरू किया है. यह गाड़ी विशेष रूप से किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रही है, क्योंकि इससे कम लागत में अनाज खेतों से बाजार तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है. गोलू ने बताया कि वह चाहते हैं कि सरकार उन्हें मदद करे ताकि वे ठेला और रिक्शा को कम लागत में बैटरी चालित बना सके. इस पहल से वे न केवल किफायती समाधान प्रदान कर रहे हैं, बल्कि वर्तमान में फूड कार्ट, फूड ट्रक, और फूड स्टाल जैसे अन्य उत्पाद भी बना रहे हैं. इसके लिए वह 5 से 6 लोगों को रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं.
पुरानी बुलेट को मॉडिफाई करते हैं मेहताब
शहर के भट्टाचार्य रोड पर स्थित मोहन बुलेट दुकान के संचालक मेहताब पुरानी बुलेट को नया रूप देने में माहिर हैं. हाल ही में, उन्होंने गोल्ड मैन प्रेम सिंह की बुलेट का सौंदर्यीकरण किया. सड़कों पर जब यह बुलेट निकलती है तो लोग इसकी तस्वीर जरूर लेते हैं. मेहताब बताते हैं कि यह दुकान उनके पिता के नाम से है, जिसे उन्होंने लगभग 50 साल पहले शुरू किया था. पिछले 20 वर्षों से मेहताब खुद इस दुकान को चला रहे हैं, और उनके साथ 15 से 20 लोग भी काम कर रहे हैं. मेहताब का कहना है कि एक बुलेट को नया रूप देने में लगभग 20 से 25 हजार रुपये खर्च होते हैं, लेकिन ग्राहकों की डिमांड के अनुसार इस खर्च में वृद्धि भी होती है. अब तक, उन्होंने 4 से 5 हजार बुलेट्स को मॉडिफाई किया है. उनके काम से ग्राहक काफी खुश हैं, जो उनके काम का गुणवत्ता और सेवा की सराहना करते हैं.
लोहे की स्क्रैप को नया रूप दे रहे हैं रौशन
शहर के कुर्जी मोड़ में स्थित रौशन कुमार का काम अनोखा और प्रेरणादायक है. वह लोहे की स्क्रैप को नया जीवन और रूप देने में माहिर हैं. उन्होंने अपने आर्टवर्क के जरिए पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दे रहे हैं. उन्होंने अभी तक कई डिजाइन तैयार किया है जिसमें पुराने और बेकार लोहे के टुकड़ों से बनाए गए हिरण, सेफ अर्थ, नल से गिरते पानी, बिजली के बल्ब आदि काफी आकर्षक हैं व सामाजिक संदेश भी दे रहे हैं. इसके अलावे वे पटना एम्स व अन्य बड़े संस्थानों में प्रस्ताव दिया है. जिसमें मैन ऑफ मेडिकल साइंस, डॉक्टर के हाथ का परोपकार, हम चिकित्सा स्वास्थ्य के कटोरे में हैं, मानवता का कल्याण, सुपर हीरो (डॉक्टर) आदि को तैयार करने की तैयारी में हैं.
इसी तरह विभाग व संस्थान विशेष कलाकृति बनाते हैं. रौशन कुमार ने स्क्रैप के साथ काम करने की शुरुआत साल 2017 से की है, तब वह पटना विवि से ग्रेजुएशन के लिए दाखिला लिया था. उन्होंने देखा कि बहुत सारे उपयोगी सामग्री सिर्फ बेकार हो रही हैं. उन्होंने इन धातु के टुकड़ों को पुनः प्रयोग में लाने का निर्णय लिया और अपने कौशल और कला के साथ उन्हें आकर्षक रूप में परिवर्तित किया. रौशन के काम से न केवल पर्यावरण को लाभ होता है, बल्कि स्थानीय कला और शिल्प की भी उन्नति हो रही है. उनके इस प्रयास से समाज में स्क्रैप के महत्व को भी पहचान मिल रही है.