जज बनने का सपना छोड़ बच्चों को मुफ्त में शिक्षा, श्मशान घाट में चलाते हैं स्कूल,खुद उठाते बच्चों की पढ़ाई का खर्च
मुजफ्फरपुर के शिक्षक सुमित कुमार ने जज बनने का सपना छोड़कर सिकंदरपुर स्थित श्मशान घाट पर स्कूल चलाते हैं। वो अपने स्कूल में ऐसी बच्चों को शिक्षा देते हैं जो बच्चे कभी श्मशान घाट में आये शव पर फल, फूल और रुपए चुना करते थे। उन्होंने श्मशान घाट पर ही अप्पन पाठशाला के नाम से स्कूल खोला जिसमें वो लगभग इलाके के 120 बच्चों को फ्री में पढ़ाते हैं।
स्कूल में क्लास वन से लेकर दसवीं तक की पढाई करवाई जाती है। इतना ही नहीं सुमित कुमार बच्चों को कॉपी, पेन और ड्रेस भी देते हैं। स्कूल की शुरुआत लगभग 5 साल पहले हुई थी। उस वक्त स्कूल में 10 से 12 बच्चे पढ़ने आते थे।
5 सालों से बच्चों को फ्री में शिक्षा
बच्चों को पढ़ाने के विचार के बारे में बात करते हुए सुमित कुमार ने बताया कि पढ़ाई लिखे करके जो कुछ प्राप्त होता है वो सिर्फ अपने लिए होता है लेकिन अब इन बच्चों को शिक्षा देना उनके लिए करना काफी आनंददायक है। हमलोग पढ़े-लिखे युवा है। इसलिए ऐसे बच्चों को शिक्षा देने का प्रयास कर रहे हैं। 2017 से बच्चों को पढ़ते आ रहे हैं।
श्मशान घाट में बच्चों को देखकर मिली प्रेरणा
उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के पीछे कहानी के बारे में बताया कि श्मशान घाट में एक परिचित का पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने आए थे। इस दौरान देखा कि कुछ बच्चे शव से फल और रूपया चुन रहे हैं। उन से पूछा ऐसा क्यों कर रहे हो पढ़ाई क्यों नहीं करते हो। बच्चो ने कहा कि पढ़ाई करने से क्या होगा। उसी समय मन में प्रेरणा जगी कि इन बच्चों को शिक्षा से जोड़कर शिक्षा का महत्व समझाना चाहिए। उससे पहले शिक्षक बनने का मेरा कभी कोई विचार नहीं था। हालांकि अभी भी इन बच्चों के अलावा कही दूसरी जगह नहीं पढ़ता हूं।
जज बनने का था सपना
शिक्षक ने बताया कि बच्चों को पढ़ाने से पहले जज बनने का सपना था लेकिन अब मेरा सपना यह है कि इन्हीं बच्चों में से कुछ बच्चे जज बने और कोई अधिकारी और पदाधिकारी। तब मेरा शिक्षक बनने का सपना साकार हो जाएगा। पाठशाला की शुरुआत में यहां 7 से 8 बच्चों से हुआ था। आज के समय में स्कूल में 120 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। शिक्षक ने बताया कि यहां पढ़ने वाले बच्चों के परिजन आर्थिक रूप से कमजोर हैं। शुरू में पढ़ाई के महत्व को नहीं समझते थे और काफी शैतानी करते थे लेकिन अब सभी बच्चे अच्छे से पढ़ाई करते हैं। अब यहां दसवीं की पढ़ाई भी होती है। बच्चे आगे जहां तक पढाई करेंगे वहां तक मेरी सोच है कि मैं सहयोग करूंगा। इनमें सभी बच्चों को कॉपी किताब और ड्रेस बाकी अन्य पढाई की जरूरत की सुविधा देने की कोशिश करता हूं।
परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि मैं काम करूं
उन्हें आगे बताया कि शुरू में यहीं बच्चे पढ़ने के नाम पर मुझे देखकर ही भाग जाते थे। बच्चों को मैं खुद पढ़ाता हूं। इसके अलावा सीनियर बच्चा जूनियर बच्चे भी पढ़ते हैं। कुछ मेरे साथी कभी-कभी बीच में आकार पढ़ाते हैं। इन सभी बच्चों का खर्च अपने घर के रुपए से करता हूं। काफी कुछ लोगों द्वारा सहयोग मिल जाता है। शुरू में मेरे परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि मैं काम करूं क्योंकि सबके परिवारवाले चाहते हैं कि कोई अच्छा काम करें.