Friday, September 20, 2024
Patna

गंगा के पानी से बढ़ रहे कैंसर मरीज:आर्सेनिक से गॉल ब्लैडर का कैंसर,बिहार के 20 जिलों से सामने आए केस

पटना.बिहार में गंगा के मैदानी इलाकों में आर्सेनिक पानी ने लोगों में कैंसर का खतरा बढ़ा दिया है। पटना समेत राज्य के 20 ऐसे जिले हैं, जहां गॉल ब्लैडर कैंसर मौत का कारण बन रहा है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में तेजी से बढ़ती बीमारी को लेकर महावीर कैंसर संस्थान एंड रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक जापान के साथ मिलकर रिसर्च करेंगे। मकसद है बिहार को इस गंभीर बीमारी से बाहर निकालना।इसी कड़ी में महावीर कैंसर संस्थान के रिसर्चर डॉ. अशोक कुमार घोष और डॉ. अरुण कुमार जापान के टोक्यो शहर के लिए रवाना हो गए हैं। बता दें कि साल 2023 में महावीर कैंसर संस्थान ने ही अपने रिसर्च में गंगा के मैदानी इलाकों के 20 जिलों में आर्सेनिक पानी से गॉल ब्लैडर के कैंसर का खुलासा किया था।

 

आर्सेनिक पानी के कारण तेजी से बढ़ रहे गॉल ब्लैडर कैंसर के मरीज

 

पटना के महावीर कैंसर संस्थान एंड रिसर्च सेंटर ने शोध में पहली बार यह खुलासा किया कि बिहार में गंगा के मैदानी इलाकों के 20 जिलों में आर्सेनिक पानी के कारण गॉल ब्लैडर में कैंसर तेजी से बढ़े हैं।रिसर्च के लिए 152 पित्ताशय की थैली के रोगियों ने स्वेच्छा से भाग लिया था। उनके पित्ताशय की थैली के ऊतकों में औसत स्तर के साथ आर्सेनिक की भारी मात्रा 340.6 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम, पित्त पथरी के औसत स्तर 78.41 ग्राम प्रति किग्रा, उनके पित्त के औसत स्तर 59.10 ग्राम प्रति किग्रा, उनके रक्त में औसत स्तर 52.28 ग्राम प्रति किग्रा और उनके बालों के नमूनों में औसत स्तर 649.7 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम थी।

 

 

पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में 10 प्रतिशत अधिक खतरा

 

पिछले 10 वर्षों में बिहार के गंगा के मैदानी इलाकों में कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। रिसर्च में सामने आया है कि 10 साल में मामले तेजी से बढ़े हैं, पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में खतरा 10 प्रतिशत अधिक है। महावीर कैंसर संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि बिहार के गंगा के मैदानी इलाके में कैंसर मरीजों की संख्या कई गुना बढ़ गई है जो देश के लिए खासकर बिहार के लिए एक चिंता का विषय है।

 

जापान के लिए पटना से टीम रवाना

 

महावीर कैंसर संस्थान और जापान की संस्था ने इस पर संयुक्त रूप से काम शुरू कर दिया है। इसके संपूर्ण इलाज और इसकी रोकथाम के लिए महावीर कैंसर संस्थान के वैज्ञानिकों को फुकुओका, जापान में जापान कैंसर एसोसिएशन की 83वीं वार्षिक बैठक में अपने शोध निष्कर्ष प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया है।महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र, पटना की दो सदस्यीय टीम डॉ. अशोक कुमार घोष और डॉ. अरुण कुमार 16 से 25 सितंबर 2024 तक जापान में रहेंगे। उन्हें जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय द्वारा आमंत्रित किया गया है। दोनों संस्थान जापान सरकार से प्राप्त प्रतिष्ठित जेएसपीएस अनुदान के माध्यम से पित्ताशय की थैली के कैंसर पर मिलकर काम कर रहे हैं। इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच कैंसर अनुसंधान का आदान-प्रदान करना है।

 

हालिया रिसर्च में सामने आई ये जानकारी

 

भारत-जापान के बीच सहयोग से हाल के अध्ययनों में नए निष्कर्ष सामने आए हैं, जिसमें टीम ने बिहार में पित्ताशय की थैली के कैंसर की घटनाओं के साथ भूजल और भोजन के माध्यम से आर्सेनिक विषाक्तता के बीच संबंध पाया है। यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ‘नेचर-साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुआ है। टीम ने यह भी पाया है कि पिछले 10 वर्षों में बिहार के गंगा के मैदानी इलाकों में कैंसर के मामलों की दर कई गुना बढ़ गई है।पित्ताशय के कैंसर के लिए जोखिम कारक आर्सेनिक, अन्य भारी धातुएं, कीटनाशक, जीवन शैली आदि हैं जो टोक्यो विश्वविद्यालय, जापान और महावीर कैंसर संस्थान, भारत के सहयोग से अध्ययन की प्रक्रिया में हैं।

 

प्रस्तावित अध्ययन के लिए महावीर कैंसर संस्थान में एक अत्याधुनिक प्रयोगशाला भी बनाई गई है। इस संयुक्त अध्ययन ने पित्ताशय की थैली के कैंसर के वास्तविक कारण को जानने के लिए नया प्लान तैयार किया गया है। अध्ययन को लेकर 3 साल की परियोजना के लिए स्वीकृत कुल बजट लगभग 1 करोड़ रुपए है, 100% वित्त पोषण जापान सरकार द्वारा प्रदान किया गया है।

 

 

2023 के शोध को जानिए

 

महावीर कैंसर संस्थान और शोध केंद्र ने पहली बार खुलासा किया है कि आर्सेनिक बिहार में पित्ताशय की थैली के कैंसर की बीमारी के कारण के लिए प्रमुख प्रेरक एजेंट है।

यह शोध कार्य 14 मार्च 2023 को नेचर जर्नल- साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है।

शोध कार्यों से इस दुनिया को पहली बार पता चलता है कि आर्सेनिक प्रभावित आबादी में मानव शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं के साथ बांधता है और फिर सिस्टीन, टॉरिन और चेनोडॉक्सिकोलिक एसिड जैसे अन्य यौगिकों के साथ बांधता है और पित्ताशय की थैली तक पहुंचता है और उनमें पित्ताशय की पथरी बनाता है। लंबे समय तक अनुपचारित बीमारी इसे पित्ताशय की थैली कैंसर रोग में परिवर्तित करती है।

महावीर कैंसर संस्थान के वैज्ञानिकों प्रोफेसर अशोक घोष, डॉ अरुण कुमार, डॉ मोहम्मद अली टोक्यो विश्वविद्यालय से डॉ माइको सकामोटो और अन्य ने इस शोध कार्य में सहयोग किया I

वैश्विक स्तर पर वर्ष 2020 में, 19,292,789 के कुल कैंसर के मामलों में से वर्ष में रिपोर्ट किए गए नए जीबीसी मामले 115,949 थे, जबकि मृतकों की संख्या 84,695 थी। भारत में वैश्विक जीबीसी मामलों का 10% और हर साल लगभग दस लाख नए कैंसर के मामले होते हैं, जिसमें मृत्यु दर हर साल 33% तक होती है। सोर्स :भास्कर.

Pragati

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!