एक-दूसरे को सपोर्ट कर पटना के इन भाई-बहनों करियर में किया कमाल,डॉक्टर से शिक्षक तक..
पटना.Rakshabandhan: भाई-बहन का रिश्ता दुनिया के सभी रिश्तों में सबसे ऊपर होता है. हो भी न क्यों, भाई-बहन दुनिया के सच्चे मित्र और एक-दूसरे के मार्गदर्शक होते हैं. रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के आपसी अपनत्व, स्नेह और कर्तव्य बंधन से जुड़ा है जो रिश्ते में नवीन ऊर्जा और मजबूती का प्रवाह करता है. यह अटूट रिश्ता बचपन से ही शुरू हो जाता है. आज हम आपको पटना शहर के कुछ ऐसे भाई-बहन की जोड़ियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने एक ही प्रोफेशन में एक-दूसरे का साथ दिया और अपने करियर में आगे बढ़े.
पेशे से डॉक्टर हैं भाई-बहन आकृति व अक्षत
यारपुर के रहने वाले अक्षत सुमन और आकृति सुमन पेशे से डॉक्टर हैं. अक्षत ऑर्थोपेडिशियन और आकृति नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं. आकृति ने बताया कि मेरे भैया हमेशा से ब्राइट स्टूडेंट थे और मैं एवरेज. मैंने कभी डॉक्टर बनने का सपना नहीं देखा था, लेकिन जब भाई ने अपने नीट में काफी अच्छा प्रदर्शन किया तो वो मेरे इंस्पिरेशन बने. नीट की तैयारी से लेकर कॉलेज सेलेक्शन तक में उनका मार्गदर्शन मिला. अगर मुझे कोई दिक्कत होती है, तो मैं सबसे पहले उन्हें ही कॉल करती हूं. हमारा काफी ज्यादा हेक्टिक शेड्यूल होता है, तो वीडियो कॉल से एक-दूसरे से कनेक्ट रहते हैं.
परी ने अपने भाई को बनाया शतरंज का खिलाड़ी
कुम्हरार की रहने वाली परी सिन्हा और अतुल्य प्रकाश सिन्हा छोटी सी उम्र में ही शतरंज के खिलाड़ी बन गये हैं. परी कहती हैं, मैं कक्षा नौवीं की छात्रा हूं जबकि मेरा भाई अतुल्य पांचवी कक्षा में पढ़ता है. मुझे चेस खेलना मेरे पिता और चाचा ने सिखाया है. जब मैं किसी चेस टूर्नामेंट में जाती थी, तो भाई भी मेरे साथ जाता था. एक दिन उसने चेस खेलने की इच्छा जताई और मैंने उसे खेलना सिखाया. अब हम दोनों ही चेस प्रैक्टिस एक-दूसरे के साथ करते हैं. अभी हम दोनों ने जूनियर स्टेट चैंपियनशिप में भाग लिया था, जिसमें मुझे दूसरा स्थान मिला है. हम दोनों एक दूसरे को काफी सपोर्ट करते हैं. कभी-कभी लड़ाई भी होती है, पर मनमुटाव नहीं होता.
काफी स्ट्रांग है पूजा कुमारी और कुंदन की बॉन्डिंग
इंद्रपुरी की रहने वाली पूजा कुमारी और कुंदन कुमार पेशे से शिक्षक हैं. पूजा पटना वीमेंस कॉलेज में पढ़ाती हैं जबकि कुंदन रांची के कॉलेज में कार्यरत हैं. पूजा कहती हैं मेरे और मेरे भाई के बीच एक साल का अंतर है. मुझे हमेशा से टीचिंग प्रोफेशन में आना था, इसलिए मैंने मास्टर्स के बाद तैयारी की और नेट निकाला फिर टीचर बनीं. भाई पढ़ने में काफी ब्राइट था और उसे सिविल सर्विसेज में जाना था. मैंने ही उसे सुझाव दिया कि वह टीचिंग के लिए भी ट्राई करें. नेट की तैयारी से लेकर सिलेबस तक के बारे में मैंने उसे बताया और वह अपने मास्टर्स की पढ़ाई करते-करते नेट क्वालीफाई कर लिया. हमारी बॉन्डिंग काफी स्ट्रांग है. मैं बड़ी हूं फिर भी मुझे नाम से बुलाता है.
सिक्की कला को लोगों तक पहुंचा रहे राधा, मुरारी व कृष्ण
राधा कुमारी मूल रूप से मधुबनी की रहने वाली हैं. उनके दो छोटे भाई कृष्ण कुमार ठाकुर व मुरारी कुमार ठाकुर और बहन अर्चना कुमारी ये तीनों अपनी बहन राधा के नक्श ए कदम पर चल रहे हैं. ये सभी मिलकर सिक्की कला की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. राधा कहती हैं, हमने इस क्षेत्र को इसलिए चुना क्योंकि हमें युवाओं को इस कला से जोड़ना था. इस कला को जीवित रखना था और इसके संरक्षण में योगदान देना था. मैं और छोटा भाई मुरारी ट्रेडिशनल सिक्की कलाकार, जबकि कृष्ण सिक्की पेंटिंग तैयार करता है. मैं कई बार उसे पेंटिंग को लेकर सलाह देती हूं. इस दौरान मतभेद भी होते हैं, लेकिन इसका रिश्ते पर इसका कोई असर नहीं पड़ता.