Friday, October 11, 2024
Samastipur

“पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनों ने की वट सावित्री की पूजा-अर्चना, मांगी मन्नतें

समस्तीपुर.जिले में सुहागिन स्त्रियों ने वट-वृक्ष की पूजा की। सुबह से ही सुहागिन स्त्रियों ने जगह-जगह वट-वृक्ष की पूजा-अर्चना की। जेठ -अमावस्या वट-सावित्री व्रत पूजा के रुप में मनायी जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखते हुये स्त्रियां अपने पति, सास-ससुर और पुत्र-पौत्र के सौभाग्य और दीर्घायु की कामना करती हैं। वट-वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु महेश तथा सावित्री माता का वास होता है। सुहागिनों ने वट-वृक्ष में जल अर्पण किया। फूल-चंदन, फल-मिठाई और धूप-दीप आदि अर्पित करते हुये वट-वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सत्यवान, सावित्री और यमराज की पूजा की तथा सदा सुहागिन और सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद मांगी।

पूजा के साथ ही वृक्ष में 7, 21 या 108 बार धागे लपेटने की प्रथा देखी गयी। साथ ही सुहाग वस्तुयें चूड़ी, सिंदूर आदि अर्पित किये गये। भागवत कथा-वाचक पंडित विजयशंकर झा के अनुसार स्कंदपुराण में वर्णित कथा के अनुसार पूर्व काल में एक धर्मात्मा राजा थे। नाम था अश्वपति। संतान-प्राप्ति के लिये उन्होंने सावित्री माता की पूजा की। माता सावित्री की प्रसन्नता से उन्हें एक बेटी की प्राप्ति हुई जिसका नाम भी सावित्री रखा गया। कन्या जब विवाह योग्य हुई तो राजा वर ढ़ूढ़ने लगे। सावित्री को स्वयं भी वर-ढ़ूढ़ने के लिये कहा। सावित्री ने द्युमत्सेन नाम के राजा जो नेत्रहीन थे और शत्रु ने उनका राज्य हर लिया था के पुत्र सत्यवान को पसंद कर लिया। वापस आने पर नारदजी ने कहा कि यह तो दुखद है क्योंकि सत्यवान की आयु मात्र एक वर्ष है। सावित्री ने कहा कि मैंने उन्हें पति रुप में मान लिया।

अब वही मेरे पति रहेंगे। जिस समय सत्यवान की आयु पूर्ण हो रही थी उस दिन सत्यवान के साथ सावित्री भी गई। लकड़ी काटते हुये सत्यवान के सिर में चक्कर आने लगा। सावित्री उसके सिर को अपनी गोद में रख कर वट-वृक्ष के नीचे बैठ गई। इसी समय यमराज ने सत्यवान का प्राण हरण कर लिया। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने कहा कि तुम मत जाओ। तुम्हें हमसे कुछ चाहिये तो मांग लो। सावित्री ने अपने ससुर के लिये नेत्र, राज्य और अपने लिये सौ पुत्र की मांग की। हारकर यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस कर दिये।

मोहिउद्दीननगर | प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न जगहों पर वट सावित्री पूजा को लेकर सुबह से ही व्रतियों की भीड़ वट वृक्ष के निकट लगी रही। सुबह जल्दी उठकर व्रतियों ने स्नान-ध्यान किया। इसके बाद वट वृक्ष के पास पहुंचकर सबसे पहले सत्यवान, सावित्री की तस्वीर या प्रतिमा वट वृक्ष की जड़ पर स्थापित किया। इसके बाद धूप, दीप जलाकर वृक्ष के नीचे फूल, अक्षत आदि अर्पित किया। इस के उपरांत कच्चे सूत को लेकर कवट वृक्ष की 7 बार परिक्रमा की। इसके बाद अपने हाथ में भीगा हुआ चना लेकर वट सावित्री व्रत की कथा पढ़ी व सुनी । यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद व्रतियों ने वस्त्र और भीगा हुआ चना अपनी सास को भेंट किया और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया।

इसके बाद वट वृक्ष का फल खाकर व्रत तोड़ी। व्रत तोड़ने के बाद सामर्थ्य अनुसार दान भी किया। ऐसा माना जाता है कि वट सावित्री व्रत के बाद दान करने से जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।

Kunal Gupta
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