जहां पुस्तकें मिलना कठिन, वहां कंप्यूटर से फैल रहा शिक्षा का उजियारा,बिहार के इस शहर की कहानी
सीतामढ़ी।सोर्स:विनोद कुमार गिरि।जहां गरीब बच्चों को पुस्तकें भी मुश्किल से मिल पाती हैं, वहां वे निश्शुल्क कंप्यूटर शिक्षा पा रहे हैं। यह सब हो रहा है बिहार के सीतामढ़ी जिले में शिक्षक माता-पिता की आईएएस बेटी वंदना प्रेयषी के प्रयास से।तीन साल पहले अपने गांव की झोपड़ी से शुरू उनका प्रयास अब स्मार्ट क्लास रूम तक पहुंच गया है। अब वे इसे विस्तार देने की तैयारी में हैं। वे बच्चों में स्किल डेवलपमेंट पर भी ध्यान देना चाहती हैं, ताकि पढ़ाई के बाद आसानी से रोजगार मिल सके। गांव के लोग उन्हें प्यार से दीदी बुलाते हैं।कोरोना का समय था। स्कूल बंद हो गए थे। संपन्न परिवार के बच्चे तो मोबाइल पर आनलाइन शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, लेकिन गरीब के बच्चे साधन के अभाव में इससे वंचित थे।इनमें ज्यादातर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे थे। उसी दौरान वन एवं पर्यावरण विभाग की सचिव वंदना प्रेयषी अपने गांव सीतामढ़ी जिले के नानपुर प्रखंड के कोयली गांव आईं तो इस ओर उनका ध्यान गया।
वर्ष 2020 में उन्होंने गांव के ऐसे गरीब बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उठाया। उन्होंने अपनी जमीन पर बनी एक झोपड़ी में इसकी शुरुआत की। तब एक-एक कर गांव के 35 बच्चे जुड़े।इन्हें पढ़ाने के लिए उन्होंने अपने खर्च पर एक शिक्षक को रखा, जो कोरोना के नियमों का पालन करते हुए इन बच्चों को शिक्षा देते थे।स्कूल खुले तो इसे उन्होंने कोचिंग संस्थान में बदल दिया। दो लाख रुपये से अधिक खर्च कर अप्रैल 2023 में झोपड़ी की जगह क्लास रूम बनवा दिया।बैठने के लिए बेंच-डेस्क के साथ कंप्यूटर शिक्षा के लिए लैपटाप और डेस्कटाप की भी व्यवस्था करवा दी। अब यहां कक्षा तीन से नौ तक के 75 बच्चे कोचिंग पढ़ने आते हैं।जिस विषय में वे कमजोर रहते, उसकी कोचिंग दी जाती है। पठन-पाठन की पूरी सामग्री भी निश्शुल्क उपलब्ध कराई जाती है।
शिक्षा और बेहतर कार्य के लिए करतीं प्रेरित
यहां पढ़ाने वाले गांव के ही युवा शिक्षक गौरव कुमार कहते हैं कि शाम में चार से सात बजे तक क्लास लगाई जाती है। गणित व विज्ञान के अलावा अन्य जिन विषयों में छात्रों को जो समझ नहीं आता, उसे बताया जाता है।
मुख्य रूप से कमजोर बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। वह कहते हैं कि पहले कोई काम नहीं करता था। अब यहां नौकरी भी मिल गई है।कंप्यूटर पढ़ाने वाले विनीत सिन्हा कहते हैं कि वे बच्चों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ रहे हैं। इसके साथ ही स्किल डेवलपमेंट के लिए उनकी रुचि के अनुसार खेलकूद एवं संगीत सिखाया जाता है।चित्रकला, हैंडीक्राफ्ट व नृत्य की भी अगले कुछ दिनों में शिक्षा दी जाएगी। पूरी व्यवस्था की देखरेख के लिए एक व्यक्ति को भी रखा गया है। ग्रामीण प्रभात कुमार बताते हैं कि दीदी जब भी गांव आती हैं, बच्चों से मिलती हैं।वह खुद भी पढ़ाती हैं। उनका हौसला बढ़ाती हैं। समय-समय पर फोन कर हालचाल पूछती हैं। मुकेश कुमार कहते हैं कि दीदी शिक्षा और बेहतर कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं।
नीट व जेईई की तैयारी कराने की होगी शुरुआत
वंदना बताती हैं कि उनके पिता शिव कुमार सिन्हा और माता रीता सिन्हा प्राध्यापक थे, इसलिए सबको शिक्षित करने का भाव विरासत में मिला है।उनसे यह भी सीखा कि शिक्षा सभी का मौलिक अधिकार है। साधनहीन बच्चे इससे वंचित न हो, इसलिए यह शुरुआत की। इसके लिए माता-पिता की स्मृति में एक सेवा संस्थान बनाया है।इसके माध्यम से गरीब बच्चों को उच्च शिक्षा में भी मदद देने की तैयारी है। 10वीं पास करने के बाद जो छात्र आइटीआइ, पालीटेक्निक आदि करना चाहेंगे, उन्हें वह कराया जाएगा।इंटर के बाद जो छात्र-छात्राएं नीट, जेईई आदि की तैयारी करना चाहेंगे, उन्हें संस्था की ओर से निश्शुल्क कराया जाएगा।
वन एवं पर्यावरण विभाग की सचिव का प्रयास काफी सराहनीय है। इससे बच्चों की दक्षता बढ़ेगी। उनकी प्रतिभा में निखार आएगा। गरीब बच्चों के लिए इस तरह की पहल अन्य को भी करनी चाहिए। – प्रमोद कुमार साहू, जिला शिक्षा पदाधिकारी, सीतामढ़ी”