तितली की नई प्रजाति:बिहार में पहली बार दिखी हिमालयन यलो कोस्टर/बाथ व्हाइट तितली
पटना।बोधगया.रंग-बिरंगी तितलियां सभी के लिए मनमोहक रही हैं। तितलियां स्वस्थ पर्यावरण की सूचक भी हैं और परागण में सहायता कर बीजों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बिहार के अलग-अलग जिलों को सम्मिलित रूप से देखा जाए तो यहां तितलियों की लगभग 120 प्रजातियां हैं।
सोसाइटी फॉर नेचर प्रोटेक्शन एंड यूथ डेवलपमेंट के अध्यक्ष व मगध विवि जंतु शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सिद्धनाथ प्रसाद यादव के अनुसार, बिहार में लगभग 170 प्रजातियों की तितलियों का विस्तार संभावित है। प्रोफेसर सिद्धनाथ के नेतृत्व में मोहम्मद दानिश मसरूर ने बिहार के पूर्वी चंपारण और वैशाली में हिमालयन बाथ व्हाइट और हिमालयन यलो कोस्टर तितलियों को पहली बार देखा है।
अरुणाचल, उत्तराखंड और असम में भी पाई जाती हैं
मो. दानिश मसरूर के अनुसार, ये तितलियां हिमालय की तराई वाले इलाकों में पाई जाती हैं। हिमालयन बाथ व्हाइट तितली नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और उत्तराखंड में पाई जाती है और हिमालयन यलो कोस्टर हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, बंगाल, अरुणाचल, त्रिपुरा और यूपी में पाई जाती है। दोनों प्रजाति बिहार में पहली बार पाई गई।
चल रहा है सूचीकरण
मो. दानिश मसरूर ने बताया कि वे लोग विभिन्न प्रजातियों के सही क्षेत्रीय विस्तार को सूचीबद्ध कर रहे हैं। इसी क्रम में कई तितलियों के विस्तार का बिहार में पता लगा है।
4 माह का जीवनकाल
मो. दानिश के अनुसार, इन दोनों तितलियों का जीवनकाल अधिकतम 4 माह का होता है। हिमालयी क्षेत्र से इस दिशा में इनका आना अनुकूल पर्यावरण का द्योतक है।”हमारा समूह विविध शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर बिहार के प्रजातीय विविधता को सूचीकरण करने, उनके विस्तार और पर्यावरण पर प्रभाव को अध्ययन करने का कार्य कर रहा है।”-प्रोफेसर सिद्धनाथ, पूर्व विभागाध्यक्ष जंतु शास्त्र, मगध विवि बोधगया