Women’s Day; बिहार की इन महिलाओं ने अपने दम पर मुकाम हासिल किया है
पटना। Women’s Day: अवसर व प्रोत्साहन मिले तो महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। आज महिलाएं आत्मनिर्भरता की राह पर हैं। कइयों ने बाधाओं को चीरते हुए हौसले के बल पर अपना मुकाम बनाया है, उनके योगदान काे समाज ने भी सराहा है। हालांकि, यह भी बड़ा तथ्य है कि आज भी महज दो-तीन फीसद महिलाएं हीं सही मायने में आत्मनिर्भर हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर बिहार को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाली ऐसी कुछ बिहारी महिलाओं की उपलब्धियों व उनके संघर्षों पर नजर डालते हैं, जो दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
माया व वंदना: कोरोना संक्रमण से बचाव में किया बड़ा योगदान
कोरोनावायरस संक्रमण से जूझते बिहार में स्वास्थ्यकर्मियों ने सराहनीय योगदान दिया। ऐसी हीं दो महिलाओं माया यादव और वंदना कुमारी को महिला दिवस के अवसर आज भारत सरकार सम्मानित किया है। उन्हें कोरोनावायरस से बचाव के लिए सर्वाधिक टीका देने वाले देश के 74 स्वास्थ्यकर्मियों में नौवां और 10वां स्थान प्राप्त हुआ है। दोनों पटना जिला की वैक्सीनेटर हैं।
डॉ. बिंदा सिंह: कोरोना के अवसाद से निकालने में रही भूमिका
पटना की क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट डॉ. बिंदा सिंह समाज सेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय रहीं हैं। वे कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़ी हैं। कोरोना काल में लोगों की नौकरियां छूट गईं, व्यवसाय भी चौपट हो गए। लोगों ने अपनों को खो दिया। इस कठिन दौर में डाॅ. बिंदा सिंह ने काउंसलिंग कर लाेगों को अवसाद से निकालने में महत्वूपर्ण भूमिका निभाई। महिला दिवस के अवसर पर उन्होंने कहा महिलाओं ने अपने बल पर अपनी मेहनत से अपना मुकाम बनाया है, लेकिन आज सच भी यह है कि केवल दो फीसद महिलाएं हीं सही मायने में आत्मनिर्भर हैं। महिला आत्मनिर्भरता के लिए शिक्षा पहली शर्त है। यह शिक्षा घर पर मां से शुरू होती है। महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं। महिलाओं को अपने महत्व को लेकर सजग होना होगा।
पूनम कुमारी: कोरोना काल में योग से बढ़ाई प्रतिरोधक क्षमता
बात कोरोना की चली है तो शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ा इसके प्रभाव को कम करने एवं से बचाव में योग का महत्व अब दुनिया मान रही है। इस काम में पटना की पूनम कुमारी भी आगे आईं। बिहार के मुंगेर की मूल निवासी पूनम बताती हैं कि कोरोना काल में सैकड़ों मरीजों को योग के माध्यम से संबल दिया तथा हजारों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर संक्रमण से बचाया। योग के अलावा पूनम अभिनय का शौक भी रखती हैं। नाटकों में काम किया है। आगे सीरियल और सिनेमा में भी काम करने का इरादा है। पूनम के अनुसार आज भी महिलाओं की समाज में निर्णायक भूमिका कम है, उन्हें घर से बाहर तक हिंसा का शिकार होना पड़ता है। जरूरत है कि बेटियों को शिक्षित कर उन्हें पर्याप्त अवसर दिए जाएं। ऐसा होने पर वे आगे बढ़ेंगी और सच्चे मायने में महिला दिवस सार्थक होगा।
रूपम त्रिविक्रम: विपरीत हालात में भी रखा हौसला, बनाई पहचान
रेडियो व टीवी प्रस्ताेता रूपम त्रिविक्रम बिहार सहित देश के विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी बतौर एंकर अपनी पहचान बना चुकी हैं। पूर्व मिस बिहार रहीं रूपम को माडलिंग व अभिनय का भी शौक रहा है। वे कवियत्री भी हैं। कोरोना काल में उन्होंने लोगों को महामारी से बचाव को लेकर आगाह किया। मूल रूप से मुंगेर की रहने वाली रूपम के लिए राह आसान नहीं रही। वे बताती हैं कि बाधाएं आईं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और कोशिश जारी रखी। कहा कि हालात कैसे भी हों, महिलाएं हिम्मत से काम लें, रास्ते बनते जाएंगे। उन्होंने महिला आत्मनिर्भरता पर बल देते हुए इसके लिए शिक्षा को जरूरी बताया।
दुर्गा शक्ति: शादी के 18 साल बाद भी रखा हौसला, डीएसपी बनीं
शादी के बाद महिलाएं घरेलू कार्यों में सिमट जाती हैं। उनकी पढ़ाई छूट जाती है। कई तो नौकरी तक छोड़ देती हैं। इस मामले में बिहार की दुर्गा शक्ति एक मिसाल हैं। साल 2002 में शादी के 18 साल बाद वे बिहार लोक सेवा आयोग की 62वीं संयुक्त प्रवेश परीक्षा में सफलता हासिल कर पुलिस उपाधीक्षक बनीं हैं। इस उपलब्धि के लिए उन्हें सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद ने सम्मानित किया था। पहली महिला आईपीएस किरण बेदी और वर्तमान में बिहार में पदास्थापित महिला आईपीएस हरजीत कौर को रोल मॉडल मानने वाली दुर्गा शक्ति बिहार के वैशाली में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहीं हैं। उनके अनुसार महिला दिवस की सार्थकता महिला सशक्तीकरण में है।
शराब व अन्य कुरीतियों के खिलाफ आवाज बनीं रिंकू
वर्ष 2015 में न्यूजीलैंड की राजधानी वेलिंग्टन में आयोजित एक सभा में मुजफ्फरपुर के सकरा की रिंकू देवी का संबोधन भारत में सशक्त होती महिलाओं की तस्वीर है। रिंकू उस समय से शराब का विरोध कर रहीं हैं, जब शाम होते शहर से गांव तक एक बड़ी आबादी नशे की गिरफ्त में आ जाती थी। कोशिश रंग लाई और महिलाएं समूह बनाकर इन ठिकानों पर धावा बोलने लगीं। इस दौरान असामाजिक तत्वों की धमकियां मिलीं, लेकिन वे डरीं नहीं। रिंकू कहती हैं कि वे साल 2000 में महज 15 साल की उम्र में ब्याह कर ससुराल पहुंचीं तो परिस्थितियां आसान नहीं थीं। चार साल तक एक आम महिला की तरह वे भी अपनी किस्मत को कोसती रहीं, लेकिन इसके बाद सबला बनने की ठान ली। सामाजिक और पारिवारिक प्रतिकूलता को तोड़ शराब व नशापान का विरोध करने लगीं। रिंकू के अनुसार नशा से पनपी घरेलू हिंसा समाज को गर्त में ले जा रही थी। उन्होंने शराब के अलावा भ्रूण हत्या, बंधुआ मजदूरी, बालश्रम, अंतरजातीय और बाल विवाह आदि जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी काम किया। वे घरेलू हिंसा की शिकार दो हजार से अधिक महिलाओं को न्याय दिला चुकी हैं। फिलहाल, वे बंधुआ मुक्ति मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष हैं। साल 2019 में सरकार ने उन्हें जल-जीवन-हरियाली कार्यक्रम का ट्रेनर बनाया। वे मुजफ्फरपुर, बोधगया, पटना, नई दिल्ली और न्यूजीलैंड में एक दर्जन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित हो चुकी हैं।
शराबबंदी व नशामुकैत की मुहिम में जुटीं हैं अनामिका
शराब के खिलाफ जंग में कटिहार सदर प्रखंड की गरभैली पंचायत के मधेपुरा गांव की अनामिका देवी ने भी अपनी पहचान बनाई है। वे गांव सहित आसपास के इलाकों में दर्जनों शराब भट्ठियों को नष्ट कर शराब बेचने व पीने वालों को जेल भिजवा चुकी हैं। अनामिका बताती हैं कि पहले उन्होंने तीन सौ महिलाओं की रैली निकालकर शराब के धंधेबाजों से अवैध काम छोड़ने की अपील की, लेकिन इसका कोई भी असर नहीं दिखा। फिर, महिलाओं के साथ बैठक कर शराब भट्ठियों पर धावा बोलने का निर्णय लिया। इसमें पुलिस का भी सहयोग लिया। इस काम में उन्हें धमकियां मिलीं, लेकिन वे डरीं नहीं। शराबबंदी व नशामुक्ति के उनके अभियान का सकारात्मक असर हुआ है।
प्लाईवुड पर लकीर खींच कैरम की प्रैक्टिस की, पाया मुकाम
पश्चिम चंपारण के चनपटिया के श्याम किशोर प्रसाद की छह बेटियों में नेहा कुमारी, निशा कुमारी, ममता कुमारी और सोनाली कुमारी कैरम की राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। निशा कैरम सब जूनियर नेशनल चैंपियन रही है। ममता इंटरनेशनल कैरम प्रतियोगिता में दो बार विजेता रही। नेहा कुमारी ने पिछले वर्ष महाराष्ट्र के जलगांव में आयोजित सीनियर नेशनल प्रतियोगिता को अपने नाम किया था। सोनाली मालदीव में 2019 में आयोजित इंटरनेशनल कैरम प्रतियोगिता की विजेता हैं। चारों बहनों की सफलता अभिभूत करती है, लेकिन उनकी शुरुआत प्लाईवुड पर पेंसिल से लाइन खींच कर 10 पैसे के पुराने छोटे-बड़े सिक्कों से कैरम खेलने से हुई थी। श्याम किशोर के अनुसार गरीबी के कारण वे बेटियों को कैरमबाेर्ड खरीदकर नहीं दे सकते थे, कोचिंग या खेलने के लिए बाहर भेजना तो द दूर की बात थी। उन्होंने घर में रहकर ही प्रैक्टिस की। आगे स्कूल व प्रशासन और कुछ समाजसेवियों की मदद मिली।
10 हजार से अधिक महिलाओं को अक्षर ज्ञान दे चुकीं रोमा
कटिहार जिले के फलका प्रखंड की रोमा श्रीवास्तव निरक्षर महिलाओ को साक्षर बनाने की मुहिम चला रही हैं। उनके प्रयास से अब तक 10 हजार से अधिक महिलाएं साक्षर हो चुकी हैं। शिक्षा क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए उन्हें पुरस्कार भी मिले हैं। रोमा बताती हैं कि महिला दिवस महिला सशक्तीकरण के बगैर बेमानी है और सशक्तीकरण के लिए शिक्षा जरूरी है।”