पुरुषवादी सोच को चुनौती;अपने दादा की तेरहवीं पर पोती ने पगड़ी बांध नारी शक्ति का मान बढ़ाया,हो रही तारीफ
बिहार के नवादा मे पुरुष प्रधान समाज में लड़कियों को चूड़ियों का हवाला देकर कमजोर साबित किया जाता रहा है। लेकिन कई स्वाभिमानी बेटियां अब ऐसी मानसिकता के मुंह पर जोरदार तमाचा मार रही है । नवादा नगर स्थित मालगोदाम रोड के ज्ञानदेव विश्वकर्मा की सबसे छोटी सुपुत्री आर्ची शर्मा, बीए, एल.एल.बी. ने ऐसा ही उदाहरण पेश किया है।दरअसल, आर्ची ने अपने दादा स्व. शिवसहाय विश्वकर्मा के निधन उपरांत संपूर्ण कर्मकांड करके पुरुषवादी सोच को चुनौती दी है। मुखाग्नि से लेकर पीपल जलाभिषेक तक संपूर्ण कर्मकांड शास्त्रीय विधान के तहत एक लड़की द्वारा किया जाना रूढ़ी परंपराओं को चुनौती देना ही है।
यहां तक कि पगड़ी अबतक पौरुषता की निशानी मानी जाती थी किन्तु आर्ची ने तेरहवीं के दिन पगड़बन्धा विधान में हिस्सा लेकर सबको चौका दिया । उसने कर्मकांड के मंत्रोच्चारण के साथ न केवल अपने दादा की पगड़ी धारण की बल्कि समाज को भी सन्देश दे दिया कि बेटियों को चूड़ियों का हवाला देना पुरानी बात हो गई है।
बेटियां भी पगड़ी धारण कर बेटों की तरह सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा बन सकती हैं। 20 वर्षीय आर्ची अभी हरियाणा में रहकर कानून की पढ़ाई कर रही हैं। ये हाल ही में अपनी पढ़ाई में आठवीं सेमेस्टर की परीक्षा देकर अपने घर नवादा लौटी थीं।इस बीच बीते 23 फरवरी को इनके 90 साल के दादा शिवसहाय विश्वकर्मा का निधन हो गया। इनके पिता ज्ञानदेव विश्वकर्मा मधुमेय के मरीज हैं। ऐसे में इनके लिए 13 दिन तक खानपान में वर्जित रहना थोड़ा कष्टप्रद था। ऐसे में अपने फुआ की प्रेरणा से आर्ची ने आगे आकर अपने पिता की सभी जिम्मेवारियों को अपने कंधे पर लेने को ठानी।
हर दिन की परंपराओं को नियमानुसार पूर्ण किया। पिता ज्ञानदेव विश्वकर्मा कहते हैं बेटे-बेटियों में कोई अंतर नहीं है। उनकी तीन बेटियां हैं। वह बताते हैं पिता के निधन पर उनकी सभी बहनों ने अर्थी को कंधा भी दिया था। इस पूरे कर्मकांड को सिंघना के ब्राह्मण विनोद पांडेय ने संपन्न कराया।