6% वोट बैंक की गारंटी, 10 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर समीकरण बिगाड़ने की ताकत रखते है चिराग
पटना।28 जनवरी की शाम जब नीतीश कुमार की अगुवाई में NDA गठबंधन की सरकार बिहार में बनने जा रही थी। तब पुलिस की तरफ से बैरिकेडिंग कर एक कॉरिडोर बनाया गया था, जो राजभवन के गेट नंबर-1 पर था। यहीं से सभी की एंट्री हो रही थी। तभी शपथ ग्रहण समारोह के शुरू होने से चंद मिनट पहले एयरपोर्ट की तरफ से गाड़ियों का काफिला आता है, यह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का था।
मौके पर मौजूद लोग उस वक्त आश्चर्य में पड़ गए जब गाड़ी में नड्डा और सम्राट चौधरी के साथ लोजपा (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व जमुई के सांसद चिराग पासवान बैठे दिखे। उस समय चर्चा का यह सबसे बड़ा विषय बन गया था। उस दिन ये दोनों दिल्ली से ही एक साथ एक ही फ्लाइट से पटना आए थे। शपथ ग्रहण समारोह के बाद उसी रात एक ही फ्लाइट से जेपी नड्डा और चिराग पासवान दिल्ली लौट भी गए। अब सब के मन में एक सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो चिराग को भाजपा इतना महत्व क्यों दे रही है? इसकी पड़ताल की तो एक-दो नहीं, बल्कि कई वजहें सामने आई। चिराग 10 लोकसभा सीटों पर एनडीए का समीकरण बनाने-बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।
पहली – 2020 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी और परिवार, दोनों में ही बंटवारा हो गया था। चाचा व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस सभी सांसदों के साथ अलग हो गए थे। मगर, इसके बाद भी बिहार में चिराग पासवान का क्रेज घटा नहीं। वो समय के साथ और अधिक बढ़ता ही गया।
दूसरी -एक युवा सांसद हैं। पूरी तरह से निर्भिक और बेदाग राजनेता हैं। अपनी बातों को पूरी सरलता और गंभीरता के साथ रखते हैं। युवाओं में चिराग के प्रति क्रेज काफी बढ़ा है।
तीसरी – बिहार में 6 प्रतिशत पासवान वोटर्स हैं। माना जाता है कि ये वोटर्स पूरी तरह से चिराग पासवान के साथ हैं। पिछले साल मोकामा, कुढ़नी और गोपालगंज में विधानसभा में हुए उप चुनाव में चिराग ने NDA उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया था। इस कारण पासवानों का वोट भी बड़े स्तर पर मिला था।
चौथी – राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि चाचा व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की राजनीति अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। पासवान वोटर्स भी उनके साथ नहीं हैं। ऐसे में जाहिर है कि भाजपा चिराग पासवान को ही अधिक तरजीह देगी।
बिहार में भाजपा के लिए बड़ा सहारा बनेंगे चिराग
इस मामले पर लोजपा (रामविलास) के प्रदेश प्रवक्ता प्रो. डॉ. विनीत सिंह ने दावा किया कि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार में भाजपा के लिए बड़ा सहारा बनेंगे। जेपी नड्डा और चिराग पासवान का एक साथ आना और जाना, ये एक विश्वास है कि हम आपके साथ हैं। ये बिहार में चिराग के बढ़ते राजनीतिक कद को और दर्शाता है। हमलोग भाजपा के अच्छे और बुरे वक्त में साथ रहे हैं। दीर्घकालीन संबंध हैं। आने वाले समय में उनका प्रभाव दूरगामी है। इस बात को भाजपा अच्छे से समझती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उम्र हो गई। हमारे नेता बिहार में भाजपा के लिए एक बड़ा सहारा के रूप में हैं। प्रदेश प्रवक्ता ने दावा किया कि चाचा पारस राजनीति के अंतिम पड़ाव पर हैं। उनकी राजनीति कुछ महीनों की मेहमान है। बहुत होगा तो भाजपा उनको कहीं का गर्वनर बना देगी।
28 जनवरी को नीतीश कुमार ने 10वीं बार सीएम पद की शपथ ली। उनके शपथ समारोह में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी शामिल हुए थे। नड्डा ने सीएम नीतीश से मुलाकात की थी।इस मामले पर राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अरूण पांडेय का भी मानना है कि जरूरत पड़ने पर भाजपा चाचा और भतीजे में चिराग पासवान को ही चुनेगी। इसकी वजह पूरी तरह से साफ है। पासवान वोटर्स चिराग के साथ है। पशुपति कुमार पारस सिर्फ अपनी नौकरी बचाने में लगे हैं। जनता के बीच उनका क्रेज भी घटा है। जबकि, चिराग हमेशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान बने रहे हैं। लोकसभा चुनाव में हाजीपुर की सीट भी चिराग को ही मिलने वाली है। युवाओं में क्रेज भी बढ़ा है। जिस तरह से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के विरासत को उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव आगे बढ़ा रहे हैं, ठीक उसी तरह से रामविलास पासवान की विरासत को चिराग पासवान आगे बढ़ा रहे हैं। वो उनके उत्तराधिकारी बन गए हैं।
चिराग को तवज्जो नहीं दी तो क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं?
इस मसले पर नाम न छापने के शर्त पर लोजपा (रामविलास) के एक नेता ने कहा कि चिराग को तवज्जों नहीं देने से जनता के बीच मैसेज सही नहीं जाएगा, खासकर दलित वोटर्स के बीच में। क्योंकि, बंटवारे से पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से पार्टी के 6 उम्मीदवार चुनाव जीत कर सांसद बने, वो उन सीटों पर सपोटर्स की मजबूती को दिखाता है। ऐसे में भाजपा जिस नैतिकता और गठबंधन धर्म को निभाने की बात करती है, उस पर कोई विश्वास नहीं कर पाएगा। पिछले साल हुए विधानसभा के उप चुनाव में भले ही मोकामा की सीट भाजपा महज 16 हजार वोटों से हार गई थी, पर जीत का ये अंतर बहुत कम था। ऐसा सिर्फ चिराग के सपोर्ट और भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने से हुआ था। वरना बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी नीलम सिंह की जीत का अंतर और अधिक होता। इसी तरह चिराग के सपोर्ट से ही कुढ़नी और गोपालगंज में दलित वोटर्स की संख्या बढ़ी और फिर भाजपा के उम्मीदवार दोनों उप चुनाव में जीत गए।
चिराग कैसे खेल बिगाड़ सकते हैं? किन इलाकों में ज्यादा प्रभाव डाल सकते हैं
बिहार में दलितों की आबादी करीब 19 प्रतिशत है। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि अगर चिराग पासवान NDA से अलग हुए तो वो एकला चलो की राह को अपना सकते हैं। लोकसभा की सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकते हैं। बिहार में लोकसभा के सभी क्षेत्रों में एक से डेढ़ लाख की संख्या में दलित वोटर्स हैं। सुरक्षित सीटों गोपालगंज, हाजीपुर, जमुई, समस्तीपुर सहित जनरल की ऐसे कई सीट हैं, जहां चिराग की मौजूदगी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है।
अंदर-अंदर ही क्यों नाराज हैं
2019 से ही चिराग की राजनीति नीतीश कुमार के विरोध में है। इसी कारण 2020 में इनके खिलाफ उम्मीदवार उतारे। NDA में होते हुए जदयू को नुकसान पहुंचाया। अब फिर से नीतीश की वापसी हो गई। 28 जनवरी चिराग दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले थे। इनसे मिलने के बाद वो मीडिया से भी मुखातिब हुए थे।उस वक्त के उनके बॉडी लैंग्वेज को देख कर ही समझा जा रहा था कि नीतीश कुमार की वापसी से वो असहज थे, खुश नहीं थे। सूत्रों के अनुसार चिराग इस बात से नाराज हैं कि जिनकी नीतियों का विरोध वो करते रहे, अब उन्हीं के साथ गठबंधन में रहना होगा।
पशुपति से पेचअप क्यों नहीं कर रहे
पार्टी सूत्र बताते हैं कि चाचा से पैचअप की कोई उम्मीद नहीं है। चिराग परिवारवाद से बाहर निकलना चाहते हैं। क्योंकि, चाचा के साथ उनका बेटा मुस्कान, भतीजा प्रिंस और इसके बड़े भाई कृष्णा राज भी लाइन में है। जब परिवार में विवाद हुआ था तब चाचा उनकी मां को लेकर कुछ ऐसी बात कह गए थे, जो चिराग को बहुत बुरी लगी थी।इस कारण वो आगे भी कभी साथ नहीं आ सकते हैं। इस बात को चिराग कई बार खुले मंच से कह चुके हैं। दूसरी तरफ पशुपति पारस भी कई बार कह चुके हैं कि दिल टूट चुका है। वो किसी कीमत पर जुड़ नहीं सकता है।
लालू कैसे चिराग को अपनी साइड ले सकते हैं
जब 2020 में लोजपा टूटी थी तो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद चिराग के उपर डोरे डाल चुके थे। उनकी चाहत थी कि चिराग महागठबंधन में अपनी पार्टी के साथ शामिल हो जाएं। लालू कह चुके हैं कि चिराग मेरे लिए तेजस्वी यादव जैसे ही हैं।उनका जब मन करे वो साथ आ सकते हैं। उसी दरम्यान लालू प्रसाद की तरफ से दो बार कॉल चिराग से बात भी की गई थी। हालांकि, हाल के दिनों में इन दोनों नेताओं के बीच कोई बात नहीं हुई है।
चिराग के पिता व पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान ने 2004 में राजद और कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी लोजपा का गठबंधन किया था। इन तीनों पार्टियों ने मिलकर लोकसभा चुनाव उस वक्त लड़ा था। इसके बाद ही केंद्र में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में UPA-1 की सरकार बनी थी।मगर, उस सरकार में रेल मंत्रालय लालू प्रसाद को मिल गया था। इस कारण रामविलास पासवान खफा हो गए थे और फिर 2005 के फरवरी महीने में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में एकला चलो का रास्ता अपना लिया था। सोर्स:भास्कर।