Tuesday, October 22, 2024
Patna

कनाडा, पेरिस, टैक्सास और कैलिफोर्निया में छठ व्रती बिहार के बने सूप से अर्घ्य देंगी

Patna :छठ पूजा स्पेशल;’जब मैं 5 साल की थी तो गांव में अपनी मम्मी के साथ ठेकुआ बनाने के लिए बैठती थी। उस वक्त मेरी दादी छठ करती थी। उनको छठ के लिए सारी तैयारी करते हुए देखकर पता चला कि इसमें कितनी मेहनत लगती है। ये पर्व मेरे मन में एक अलग आस्था की छाप छोड़ गया। जब मैं बड़ी हुई तो मैंने अपनी दादी के लिए एक साड़ी खासकर डिजाइन की और उन्हें छठ पर गिफ्ट किया। उस साड़ी में उन्हें देखकर मेरे आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे।

 

 

मैं बहुत एक्साइटेड हो गई थी। मैंने उस साड़ी में उनकी एक तस्वीर खींचकर अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। अब इसे मेरी किस्मत कहे या छठी मैया का आशीर्वाद की इस एक पोस्ट को डालने के बाद मुझे कई ऑर्डर आने लगे और यहीं से शुरू हुआ मेरा यह सफर।’

 

ये कहना है सिन्नी सोसिया का, जिनके द्वारा तैयार किए गए छठ पर्व के सामान से कनाडा, पेरिस, टैक्सास और कैलिफोर्निया में छठ व्रती छठ करती हैं। सिन्नी 2020 से ‘डिजाइन प्वाइंट’ के नाम से अपना बिजनेस चलाती हैं और दुनिया को बिहार के इस महापर्व के बारे में अपने कला के जरिए जोड़ती हैं। उनका शॉप पटना के डाकबंगला चौराहे के पास स्थित है।

 

सिन्नी कहती हैं कि छठ बिहार वासियों के मन में बसा हुआ त्योहार है। जब छठ की धुन बजती है तो अपने आप ही कानों में मिश्री घुलना शुरू हो जाता है। हमने मधुबनी पेंटिंग वाली साड़ियों का काम पोस्ट करना शुरू किया। उन्हें देखकर कई लोगों ने छठ के लिए साड़ी के ऑर्डर दिए। यहीं से हमने सूप और अन्य चीजों पर भी काम करना शुरू किया।

 

इस साल आया 500 साड़ियों का ऑर्डर

 

बचपन की बातों को याद करते हुए सिन्नी बताती हैं कि जब में छोटी थी तब बेगूसराय अपने गांव में उन्हें बस सांचे में ठेकुआ बनाने के सिवाय दूसरे किसी काम का परमिशन नहीं मिलता था। फिर जब वह थोड़ी और बड़ी हुई तब उन्हें घर के आंगन में छोटा सा तालाब बनाने के लिए गोबर से लिपने का काम मिला। उन्हें वह काम करके बहुत मजा आता था और उन्होंने ये काम 10 सालों तक किया।

 

सिन्नी ने जिस साल अपनी दादी को साड़ी गिफ्ट किया था, उसके अगले साल उन्होंने तीन साड़ियां बनाई और देखते-देखते वह तीनों बिक गई। उन्होंने स्पीड बढ़ाने का सोचा। पूरे साल इस पर थिंकिंग किया। सिन्नी कहती हैं कि छठ के धुन के साथ ही साड़ी बनाने में अलग ही मजा है, उससे पहले वह फील ही नहीं आती है। 2021 में उन्होंने 50 साड़ी को बेचा। इस साल उन्हें फरवरी से ही बुकिंग आने लग गई और अब तक उन्हें 500 साड़ियों के ऑर्डर आ गए हैं, जिसे उन्होंने डिजाइन कर लिया है।

 

 

सिन्नी जो साड़ी डिजाइन करती हैं, उसमें मधुबनी पेंटिंग होती है। साड़ी के कॉन्सेप्ट के बारे में सिन्नी बताती हैं कि जब वह गांव में छठ होता देखती थी तो उस समय उनकी दादी और एक चाची या मम्मी पानी में उतरती थी। दो लोग पानी को पूजते थे और बाकी दो लोग हाथ में सूप के साथ प्रसाद लिए रहते थे। इसी कॉन्सेप्ट को उन्होंने अपनी साड़ी में उतारा, जिसमें चार औरतों को पेंटिंग के माध्यम से छठ करते हुए दिखाया गया है। साड़ी में भगवान सूर्य और किनारों पर केले के पत्तों को भी दर्शाया गया है।

 

 

साड़ी बनाते हुए पवित्रता का रखा जाता है काफी ध्यान

 

छठ में पवित्रता का काफी ख्याल रखा जाता है। कोई भी चीज अशुद्ध नहीं होनी चाहिए। इस बात का ध्यान सिन्नी अपने प्रोडक्शन हाउस में भी रखती हैं। प्रोडक्शन करने वाली टीम नहा-धोकर आती है और अपने काम में लग जाती हैं। जितने दिनों तक प्रोडक्शन चलता है, उतने दिनों तक कोई भी प्रोडक्शन वाले एरिया में खा-पी नहीं सकता है। जिसे भी खाना खाना है वह बाहर जाकर खाएगा और उसके बाद अच्छे से हाथ पैर धोकर अंदर आएगा। पैकिंग करने के बाद प्रोडक्ट पर गंगाजल छिड़का जाता है, ताकि अगर कोई अशुद्धि भी हो तो माफी मिल जाए।

 

 

3 दिन के अंदर 250 पीस पूरा करने का आया था ऑर्डर

 

सिन्नी ने ऑर्ट्स कॉलेज में पढ़ाई करते हुए सबसे पहले इस पेंटिंग को दीवार पर बनाया था। फिर उन्होंने इसे साड़ी पर करना शुरू किया। उसके बाद डगरा की भी डिमांड आई। सिन्नी कहती हैं कि अब डगरा का प्रचलन काफी कम हो गया है। छठ के समय में ही इसे फल धोने या फिर ठेकुआ रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

 

सिन्नी छठ के बाद डगरा को अपने गांव से लेकर आई और इस पर पेंटिंग किया। उन्होंने डिजाइन किए डगरे को अपने ऑफिस के बाहर टांग दिया। एक दिन कोई घूमते हुए आया और डगरा की तारीफ करते हुए 3 दिन के अंदर 250 पीस का ऑर्डर दे दिया। उनके साथ कुछ आर्ट के स्टूडेंट ने मिलकर दिन रात काम किया और इस ऑर्डर को पूरा किया। सिन्नी को फिर सूप के ऑर्डर भी आने लगे। सिन्नी छठ के प्रसाद के साथ देने के लिए छोटे सूप भी डिजाइन करती हैं।

 

 

आर्टिस्ट लोगों के लिए कहा जाता कि वह भूखे मरेंगे

 

सिन्नी कहती हैं कि आर्टिस्ट लोगों के लिए ऐसा कहा जाता है कि वह भूखे मरेंगे, सरवाइव नहीं कर पाएंगे। मैंने शुरू से सोच रखा था कि कुछ ऐसा करना है कि लाइफ चलती रहे। शुरुआत में मेरे मम्मी पापा को यह आर्ट वाला फिल्ड समझ में ही नहीं आता था। वह बस यही चाहते थे कि मैं पढ़ लिखकर कोई सिक्योर्ड जॉब कर लूं। पर आज वे लोगों से यह कहते फिरते हैं कि पूरे गांव में जो सब नहीं कर दिखाया वह उनकी बेटी ने किया है। यह बात सुनकर सिन्नी काफी गर्व महसूस करती है, कि वह सही राह पर चल रही हैं।

 

5 हजार रुपए से की थी शुरुआत, आज सलाना कमा रही 20 लाख रुपए

 

उन्होंने शुरु में अपने दो-तीन महीनों की पॉकेट मनी बचाकर 5 हजार रुपए से इसकी शुरुआत की थी। और आज वह सालाना 20 लाख रुपए कमा रही है। उनकी बनाई साड़ियां मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली के साथ-साथ कनाडा, पेरिस, यूएसए, कैलिफोर्निया भी जाती है। सिन्नी कहती हैं कि कैलिफोर्निया वाले क्लाइंट ने इस साल 18 पीस साड़ी का ऑर्डर दिया है, क्योंकि पिछले साल जिन लोगों ने उन्हें छठ में मदद की थी, उन्हें वह ये साड़ियां गिफ्ट करेंगी। सिन्नी का ख्वाब था कि वह एक आर्ट स्टूडियो खोले और आज वह अपने ख्वाब को जी रही हैं।

 

 

बिहार के बने सूप से अर्घ्य देंगे विदेशी छठ व्रती

 

साड़ी का शुरुआती कीमत 1900 रुपए से है। सूप 150 रुपए से शुरू है। डिजाइन के हिसाब से इसके रेट में भी फर्क आता है। बिहार के बने सूप से विदेशी छठ व्रती अर्घ्य देंगी। उनकी टीम में अभी 10 लोग काम करते हैं। सिन्नी कहती हैं कि शुरुआत में सामान विदेश भेजने में काफी दिक्कत आई, क्योंकि टैक्स बहुत ज्यादा देना पड़ता था। पटना डाक विभाग ने मदद की। उन्होंने सारे बनाए गए प्रोडक्ट को अन्य देशों में भी भेजने की पहल की ओर इसमें डिस्काउंट भी दिए। उनकी मदद से एक हफ्ते में विदेशों में छठ के समानों की डिलीवरी आसान हो पाई।

सोर्स:दैनिक भास्कर।

Kunal Gupta
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