महिलाओं ने दो रुपए से शुरु किया अपना बैंक,अब मुसीबतों का समाधान करती हैं यहाँ की महिलाएं
पटना ।नवादा।बात दो दशक पुरानी है। बुधौल की कंचन मिश्रा एक सामाजिक संस्था से जुड़ी थीं। काम बंद हो गया था। आर्थिक परेशानी उत्पन्न हो गई। एक बार अस्वस्थ हो गईं। पैसे की जरूरत पड़ गई। कई लोगों से मदद मांगी लेकिन नहीं मिली। कंचन जब स्वस्थ हुईं तब समूह बनाने का निर्णय लिया। आसपास की 15 महिलाओं को जोड़ा। प्रति सप्ताह दो रुपए एकत्रित करना शुरू किया। अपना बैंक की सफलता की बड़ी वजह है कि इसमें हर कोई मालिक है। आपसी तालमेल और विश्वास से चलता है। माह में कम से कम एक बैठक होती है। सब समूह की अलग अलग तिथियां और दिन निर्धारित है।
बहुत भरोसे के साथ महिलाओं को जोड़ा
कंचन बताती हैं कि शुरुआत में गांव की महिलाएं राजी नहीं थीं। लेकिन बहुत भरोसे के बाद उन्हें जोड़ पाई थी, लेकिन कुछ माह बाद उनकी मुसीबतों में जमा पैसा मददगार साबित होने लगा तब महिलाओं का उत्साह जग गया। लिहाजा, फिर 5 रुपए हफ्ता, यह सिलसिला अब 100 रुपए महीना पहुंच गया है।
बुरे समय में वरदान बन रहा अपना बैंक
माधुरी देवी कहती हैं कि शुरुआत में भरोसा नहीं था। सोचा था कि दो रुपए हफ्ते से क्या होगा। लेकिन आज स्थिति यह है कि 50 हजार रुपए की भी जरूरत पड़ती है तब किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता। अपना बैंक से मदद लेकर बेटी की शादी की, जिसे किस्तों में अदा कर रही हूं।
परेशानियों का हल बैंक से हो जाता है
गीता देवी कहती हैं कि मेरे बच्चे की तबियत काफी खराब हो गई थी। पैसे की जरूरत थी। कई लोगों से मदद मांगी। लेकिन नहीं मिली। बहुत मुश्किल से बच्चे का इलाज हुआ। लेकिन इसके बाद महिलाओं के साथ मिलकर समूह बनाया। रानी देवी बताती हैं कि बुरे समय में कोई पैसा नही देता था।
बैंक से पैसे नहीं मिले तब बनाया अपना बैंक
सामाजिक कार्यकर्ता वीणा कुमारी मिश्रा बताती हैं कि उन्हें एक बार पचास हजार रुपए की आवश्यकता थी। बैंक में उनका पैसा था। लेकिन खाता बंद था। तब मैने गांव के समूह से मदद ली। इसके बाद मैने भी समूह का गठन किया। अब 100 रुपए का दो और 200 रुपए और 500 रुपए का एक-एक समूह संचालित कर रही हूं।