नवजात शिशु के सुरक्षा में न्यू बोर्न केअर कॉर्नर का महत्व सबसे अधिक: एसीएमओ
सासाराम- स्वास्थ्य क्षेत्र में विकास के साथ-साथ शिशु मृत्यु दर में कमी लाने को लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी खास जोर दिया जा रहा है। सरकार के इस प्रयास से लोगों को इलाज में सहूलियत के साथ शिशु मृत्यु दर में भी काफी कमी देखने को मिल रही है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हो या फिर अनुमंडलीय अस्पताल या फिर जिला अस्पताल सभी जगह गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाया जा रहा है। इधर रोहतास जिला स्वास्थ्य समिति सरकार द्वारा उपलब्ध सुविधाओं एवं संसाधनों के बदौलत मातृ मृत्यु दर के साथ साथ शिशु मृत्यु दर में भी कमी लाने में सफलता हासिल कर रही है। शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में सदर अस्पताल का एसएनसीयू अहम भूमिका निभा रहा है। जिला स्वास्थ्य समिति से मिली जानकारी के अनुसार पिछ्ले दो महीनों में जिले के सरकारी अस्पतालें में जन्मे 305 नवजातों को एसएनसीयू में भर्ती कराया गया था। मिली जानकारी के अनुसार जून महीने में कुल 162 नवजातों को एसएनसीयू में भर्ती कराया गया था जिसमे 8 बच्चों की मृत्यु हो गई। वही जुलाई में 143 बच्चों को भर्ती किया गया था जिसमे 7 बच्चों की मृत्यु हुई है।
एसएनसीयू से पहले एनबीसीसी ट्रीटमेंट जरूरी
शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए कमजोर, सांस लेने में तकलीफ वाले नवजातों को एसएनसीयू में भर्ती करने से पहले नवजात शिशु को एनबीसीसी (न्यू बोर्न केअर कॉर्नर) में उचित इलाज किया जाता है उसके बाद ही उक्त नवजात को एसएनसीयू के लिए रेफर किया जाता है। नवजात के जन्म के बाद का 2 मिनट गोल्डन टाइम होता है इस दौरान विभिन्न प्रखण्डों से जिला अस्पताल स्थित एसएनसीयू में लाने में लाने में देर की वजह से बच्चे की मृत्यु न हो ऐसे में कमजोर, कम वजन और सांस लेने में तकलीफ वाले बच्चो के लिए न्यू बोर्न केअर कार्नर अहम भूमिका निभाता है।
एनबीसीसी को किया जा रहा है दुरुस्त
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ अशोक कुमार ने बताया कि जिले में शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है और इसमें सफलता भी मिल रही है| उन्होंने बताया कि शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए जन्म के बाद का 2 मिनट काफी महत्वपूर्ण होता है इस दौरान कमजोर बच्चों को उचित उपचार दी जाती है। उन्होंने बताया कि उपचार सर्वप्रथम न्यू बोर्न केयर कॉर्नर में दी जाती है। एसीएमओ ने बताया कि जिले के सभी केंद्रों पर न्यू बोर्न केअर कॉर्नर का निर्माण किया गया है। जहां वजन में काम एवं सांस लेने में तकलीफ वाले बच्चों को प्रथम उपचार दी जाती है। उसके बाद ही उसे एसएनसीयू के लिए भेजा जाता है। एसीएमओ ने बताया कि एनबीसीसी केंद्र को लगातार दुरुस्त करने का प्रयास किया जा रहा है और इसमें कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों को समय-समय पर प्रशिक्षण भी प्रदान किए जाते हैं।
प्रसव स्थल से लेकर एसेसनसीयू तक देखभाल
डॉ अशोक कुमार ने बताया कि जो नवजात एनबीसीसी से एसएनसीयू के लिए रेफर कर दिए जाते हैं, वैसे बच्चों के लिए प्रसव स्थल से लेकर एसएनसीयू तक लाने में जो समय लगता है वह काफी महत्वपूर्ण समय होता है। ऐसे में एंबुलेंस में ही ऑक्सीजन के साथ साथ एक ई.एम.टी (इमरजेंसी टेक्नीशियन) भी होते हैं जो रास्ते भर बच्चों का ऑक्सीजन लेवल को चेक करते हुए एसएनसीयू तक सुरक्षित पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
एनबीसीसी को और बेहतर करने का प्रयास
डॉक्टर अशोक कुमार ने बताया कि नवजात शिशु की सुरक्षा में न्यूबॉर्न केयर कॉर्नर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है इसलिए सभी डिलीवरी प्वाइंट पर बनाए गए न्यू बोर्न केयर कॉर्नर को लगातार बेहतर करने का प्रयास किया जा रहा है उन्होंने बताया कि इसके लिए इसमें कार्यरत सभी स्वास्थ्य कर्मियों को नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत लगातार प्रशिक्षण प्रदान किए जाते हैं साथ ही हर समय इसकी मॉनीटरिंग भी की जाती है|